सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के सदस्यों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की समिति राष्ट्रपति को सलाह देगी। अपने फैसले में संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता, धन बल के बढ़ते प्रभाव और राजनीति में अपराधीकरण जैसे कई मसलों पर भी सख्त टिप्पणी की है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के सदस्यों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की समिति राष्ट्रपति को सलाह देगी। अपने फैसले में संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता, धन बल के बढ़ते प्रभाव और राजनीति में अपराधीकरण जैसे कई मसलों पर भी सख्त टिप्पणी की है।
आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 10 बड़ी बातें…
धनबल और राजनीति में अपराधीकरण में बहुत वृद्धि हुई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धनबल और राजनीति में अपराधीकरण में बहुत वृद्धि हुई है। कोर्ट ने अपने फैसले में मीडिया पर भी टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि नियुक्तियों में कार्यपालिका की पूर्ण भूमिका का स्थायीकरण नहीं किया जा सकता है
कोर्ट ने कहा कि किसी मौजूदा नियम के तहत नियुक्तियों में कार्यपालिका की पूर्ण भूमिका का स्थायीकरण नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक दलों के पास कानून की मांग नहीं करने का एक कारण होगा, जो कि स्पष्ट है। ऐसे में सत्ता में रहने वाली पार्टी के पास एक भ्रष्ट आयोग के माध्यम से सत्ता में बने रहने के मौके तलाशेगी, ऐसा संभव है।
चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना ही चाहिए
चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना ही चाहिए। वह स्वतंत्र होने का दावा करते हुए अनुचित तरीके से कार्य नहीं कर सकता। सरकार के प्रति सहानुभुति रखने वाला एक व्यक्ति स्वतंत्र मानसिक स्थिति नहीं रख सकता है। एक स्वतंत्र व्यक्ति सत्ता में बैठे लोगों के प्रति जिम्मेदार नहीं होगा।
चुनाव आयोग लोकतंत्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक आम आदमी उनसे करता है उम्मीद
स्वतंत्रता क्या है? क्षमता (Competence) डर से बंधे होने के लिए नहीं है। सक्षमता के गुणों को स्वतंत्रता होकर हासिल किया जाना चाहिए। एक ईमानदार व्यक्ति आमतौर पर उच्च और शक्तिशाली लोगों का सामना करता है। लोकतंत्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक आम आदमी उनसे उम्मीद करता है।
चुनाव आयोग जो कानून के शासन की गारंटी नहीं देता है, लोकतंत्र के खिलाफ है
कोर्ट ने कहा कि एक ऐसा चुनाव आयोग जो कानून के शासन की गारंटी नहीं देता है, लोकतंत्र के खिलाफ है। यदि यह अपनी शक्तियों का अवैध रूप से या असंवैधानिक रूप से प्रयोग करता है तो इसका राजनीतिक दलों के परिणामों पर प्रभाव पड़ता है।
संविधान पीठ के अनुसार गलत साधनों को सही नहीं ठहरा जा सकता
संविधान पीठ के अनुसार गलत साधनों को सही नहीं ठहरा जा सकता। लोकतंत्र केवल तभी सफल हो सकता है जब सभी हितधारक चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता बनाए रखने पर काम करें, ताकि लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित किया जा सके। मीडिया कवरेज और अन्य साधनों में वृद्धि के साथ चुनाव मशीनरी के दुरुपयोग बातें सामने आती हैं।
ऐसे में सरकार को कानून के अनुसार चलना चाहिए
कोई भी प्रक्रिया जो इस न्यायालय के समक्ष चुनाव प्रक्रिया में सुधार करना चाहती है उस पर विचार किया जाना चाहिए। एक बार परिणाम आने के बाद यह विषय काफी हद तक एक काल्पनिक विषय बन जाता है। लिंकन ने लोकतंत्र को लोगों की ओर से और लोगों के लिए शासन घोषित किया। ऐसे में सरकार को कानून के अनुसार चलना चाहिए।
राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों का भाग्य चुनाव आयोग के हाथों में है
नियुक्ति की शक्तियों का दुरुपयोग किया जा सकता है, इसका असर पूरे देश पर हो सकता है। राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों का भाग्य चुनाव आयोग के हाथों में है। महत्वपूर्ण रूप से निर्णय उन लोगों की ओर से लिए जाते हैं जो इसके मामलों को संभालते हैं।
चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें
लोकतंत्र का लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब राजनीतिक दल इसे अक्षरश: बनाए रखने का प्रयास करें। हमने पाया कि चुनाव आयोग के पास राज्यों और संसद के चुनाव कराने के लिए कर्तव्य और शक्तियां हैं। ऐसे उसमें उसकी जवादेही है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।
बैलट (मतपत्र) की शक्ति सर्वोच्च है, जो सबसे शक्तिशाली दलों को सत्ता से हटाने में सक्षम
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ठोस और उदार लोकतंत्र की पहचान को हर हाल में ध्यान में रखा जाना चाहिए। लोकतंत्र लोगों की शक्ति से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। बैलट (मतपत्र) की शक्ति सर्वोच्च है, जो सबसे शक्तिशाली दलों को सत्ता से हटाने में सक्षम है।