प्रदेश की बिजली वितरण निगमों (Electricity Distribution Corporations) की ओर से 20 अक्तूबर को विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) में वर्ष 2023-24 के अप्रैल, मई, जून यानी पहली तिमाही के लिए ईंधन अधिभार में 35 पैसा प्रति यूनिट के आधार पर श्रेणी वार दरें कम की जाती हैं।
लखनऊ। यूपी के बिजली उपभोक्ताओं (Electricity Consumers) को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। क्योंकि ईंधन अधिभार चार्ज के रूप में 18 से 69 पैसे प्रति यूनिट तक की कमी के मामले को टाल दिया गया है। प्रदेश की बिजली वितरण निगमों (Electricity Distribution Corporations) की ओर से 20 अक्तूबर को विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) में वर्ष 2023-24 के अप्रैल, मई, जून यानी पहली तिमाही के लिए ईंधन अधिभार में 35 पैसा प्रति यूनिट के आधार पर श्रेणी वार दरें कम की जाती हैं।
पहली तिमाही में दाखिल प्रस्ताव के तहत अलग-अलग श्रेणी के विद्युत उपभोक्ताओं (Electricity Consumers) को 18 से लेकर 69 पैसे प्रति यूनिट तक अगले तीन महीना तक बिजली दरों में कमी होनी थी। लेकिन विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) ने इसे तिमाही के तौर पर कम नहीं किया है।
आयोग ने तर्क दिया है कि केंद्र सरकार की ओर से माहवार ईंधन अधिभार शुल्क के संबंध में नियम बनाया गया है। इसलिए अब ईंधन अधिभार का मामला उसी नियमावली के तहत थ्रू अप के समय देखा जाएगा। अभी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा।
उपभोक्ता परिषद ने लगाया नियमों की अनदेखी का आरोप
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (Uttar Pradesh State Electricity Consumers Council) के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा (Chairman and member of State Advisory Committee Awadhesh Kumar Verma) का कहना है कि रेगुलेटरी फ्रेमवर्क (Regulatory Framework) के तहत विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) बिजली दरों में कमी न करने के पीछे जो तर्क दे रहा है, वह पूरी तरह गलत है। यह उपभोक्ता के साथ धोखा है। इसके विरोध में उपभोक्ता परिषद ने विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) के सदस्य तकनीकी से अपना विरोध दर्ज कराया है।
वर्मा ने कहा कि जब प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं (Electricity Consumers) के ऊपर फ्यूल सरचार्ज (Fuel Surcharge) में वृद्धि करना था तो नियामक आयोग ने इसकी कार्यवाही शुरू कर दी थी। अब जब उपभोक्ताओं की दरों में तीन महीने तक कमी होनी थी तो नियम विरुद्ध तर्क दिया जा रहा है। विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) की ओर से बनाए गए नियमों के तहत हर तीसरे माह उपभोक्ताओं को लाभ मिलना चाहिए।
सवाल यह है कि बिजली दर बढ़ते समय इस नियमावली का ध्यान क्यों नहीं रखा गया? जब अगस्त 2023 में 28 पैसे से लेकर 1.09 रुपये वृद्धि का प्रस्ताव कंपनियों ने दिया था तो उसे वक्त इस नियमावली का ध्यान क्यों नहीं आया?