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हमें माहौल को नतीजों में बदलना सीखना होगा, राज्यों में चुनाव की तैयारी कम से कम एक साल पहले शुरू कर देनी चाहिए: खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा, पर इसका मतलब ये नहीं की हम चुनावी राज्यों में वहां के जरूरी local मुद्दों को भूल जाए। राज्यों के अलग-अलग मुद्दों को समय रहते बारीकी से समझना और उसके इर्द-गिर्द ठोस Campaign रणनीति बनाना भी जरूरी है। National issues और National Leaders के सहारे राज्यों का चुनाव आप कब तक लड़ेंगे? हाल के चुनावी नतीजों का संकेत यह भी है कि हमें राज्यों में अपनी चुनाव की तैयारी कम से कम 1 साल पहले शुरू कर देनी चाहिए।

By शिव मौर्या 
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नई दिल्ली। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद शुक्रवार को झारखंड कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक हुई। इस बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, 2024 के लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस पार्टी ने नए जोश-खरोश के साथ वापसी की थी। लेकिन उसके बाद हुए, 3 राज्यों के चुनावी नतीजे हमारी उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे। INDIA parties ने 4 में से 2 राज्यों में सरकार बनाई। पर हमारा performance below-expectation रहा। भविष्य के लिहाज से यह हमारे लिए चुनौती है।

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हमें तुरंत चुनावी नतीजों से सबक लेते हुए संगठन के स्तर पर अपनी सभी कमजोरियों और खामियों को दुरुस्त करने की जरूरत है। ये नतीजे हमारे लिए संदेश है। सबसे अहम बात जो मैं बार-बार कहता हूं कि आपसी एकता की कमी और एक दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाजी हमें काफी नुकसान पहुंचाती है। जब तक हम एक हो कर चुनाव नहीं लड़ेंगे, आपस में एक दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाजी का सिलसिला बंद नहीं करेंगे, तो अपने विरोधियों को राजनीतिक शिकस्त कैसे दे सकेंगे?

उन्होंने आगे कहा, इसलिए जरूरी है कि हम Strictly अनुशासन का पालन करें। हर हालत में united रहना है। पार्टी के पास अनुशासन का भी हथियार है। लेकिन हम नहीं चाहते कि अपने साथियों को किसी बंधन में डालें। इसलिए सबको ये सोचने की दरकार है कि कांग्रेस पार्टी की जीत में ही हम सबकी जीत है और हार में हम सबकी हार है। पार्टी की ताकत से ही हमारी ताकत है। चुनावों में माहौल हमारे पक्ष में था। लेकिन केवल माहौल पक्ष में होना भर जीत की गारंटी नहीं। हमें माहौल को नतीजों में बदलना सीखना होगा। क्या कारण है कि हम माहौल का फ़ायदा नहीं उठा पाते?

इसीलिए हमें पर्याप्त मेहनत करने के साथ समयबद्ध तरीके से रणनीति बनानी होगी। हमे अपने संगठन को Booth Level तक मजबूत करना होगा। हमें मतदाता सूची बनाने से लेकर वोट की गिनती तक रात दिन सजग, सचेत और सावधान रहना होगा। हमारी तैयारी आरंभ से मतगणना तक ऐसी होनी चाहिए कि हमारे workers और systems मुस्तैदी से काम करें। कई राज्यों में हमारा संगठन अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। संगठन का मजबूत होना हमारी सबसे बड़ी जरूरत है। हम चुनाव भले ही हारे हो, पर इसमें कोई शक नहीं कि बेरोज़गारी, महंगाई, आर्थिक असमानता, इस देश के ज्वलंत मुद्दे हैं। जाति जनगणना भी आज का एक अहम मसला है। संविधान, सामाजिक न्याय और सौहार्द जैसे मसलों जन-जन के मुद्दे है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा, पर इसका मतलब ये नहीं की हम चुनावी राज्यों में वहां के जरूरी local मुद्दों को भूल जाए। राज्यों के अलग-अलग मुद्दों को समय रहते बारीकी से समझना और उसके इर्द-गिर्द ठोस Campaign रणनीति बनाना भी जरूरी है। National issues और National Leaders के सहारे राज्यों का चुनाव आप कब तक लड़ेंगे? हाल के चुनावी नतीजों का संकेत यह भी है कि हमें राज्यों में अपनी चुनाव की तैयारी कम से कम 1 साल पहले शुरू कर देनी चाहिए। हमारी teams समय से पहले मैदान में मौजूद रहनी चाहिए। पहला काम मतदाता सूचियों की जांच करनी चाहिए ताकि हमारे पक्ष वालों के वोट हर हालत में सूची में बने रहें। अगली बात जो मैं कहना चाहता हूँ वो है, हम पुराने ढर्रे पर चलते हुए हर समय सफलता नहीं पा सकते।

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आपका राजनीतिक प्रतिद्वंदी क्या कर रहा है, इसे रोज़मर्रा में देखना होगा। हमे समय से निर्णय लेने होगे। जवाबदेही तय करनी होगी। एक और बात मैं कहना चाहता हूँ। कई बार हम ख़ुद अपने सबसे बड़े शत्रु बन जाते हैं। हम ख़ुद अपने बारे में नकारात्मक और हताशापूर्ण बातें करेंगे और ये कहेंगे कि – हमारा कोई Narrative नहीं है तो मैं पूछता हूं कि narrative बनाना और उसको जनता तक पहुंचाना किसकी जिम्मेदारी है? ये हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। जो नैरेटिव हमने राष्ट्रीय स्तर पर set किया था, वो अभी भी लागू है।

उन्होंने आगे कहा, मैं मानता हूँ कि EVM ने चुनावी प्रक्रिया को संदिग्ध बना दिया है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है इसलिए इसे लेकर जितना कम कहा जाए उतना अच्छा। पर देश में Free और Fair चुनाव सुनिश्चित करवाना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है। बार-बार ये सवाल उठ रहे हैं कि किस हद तक ये दायित्व निभाया जा रहा है। सिर्फ़ 6 महीने पहले जिस तरह के नतीज़े लोक सभा में MVA के पक्ष में आए थे उसके बाद विधान सभा का नतीज़ा राजनीतिक पंडितों के भी समझ से परे है। जैसे परिणाम आए हैं कि कोई भी अंकगणित इसे justify करने में असमर्थ है।

 

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