HBE Ads
  1. हिन्दी समाचार
  2. जीवन मंत्रा
  3. त्याग के प्रतिमूर्ति आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज हुए ब्रह्मलीन, पूरा परिवार चुन चुका है संन्यास का मार्ग

त्याग के प्रतिमूर्ति आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज हुए ब्रह्मलीन, पूरा परिवार चुन चुका है संन्यास का मार्ग

Acharya Vidyasagar Biography : आचार्य श्री 108  विद्यासागर जी महाराज (Acharya Shri 108 Vidyasagar Maharaj )का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत (Karnataka Province) के बेलगांव जिले (Belgaum District) के सदलगा गांव (Sadalga Village) में हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) थी।

By संतोष सिंह 
Updated Date

Acharya Vidyasagar Biography : आचार्य श्री 108  विद्यासागर जी महाराज (Acharya Shri 108 Vidyasagar Maharaj )का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत (Karnataka Province) के बेलगांव जिले (Belgaum District) के सदलगा गांव (Sadalga Village) में हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) थी। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे। उनकी माता श्रीमंती थी। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज (Guru Acharya Shrigyansagar Ji Maharaj) से मुनिदीक्षा ली थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज (Acharya Shrigyansagar Ji Maharaj) ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था।

पढ़ें :- यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बदले अपने सुर, कहा-भाजपा में न मतभेद था, न है, न होगा

Jain Acharya Vidyasagar Ji Maharaj left his body on Chandragiri mountain Rajnandgaon

विद्यासागर जी ने 22 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने 30 जून 1968 में अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के शिष्य थे। 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी ने उन्हें आचार्य पद दिया था। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने शुरुआत से ही कठिन तप में खुद को लगा दिया। उन्होंने दूध, दही, हरी सब्जियां और सूखे मेवों का अपने संन्यास के साथ ही त्याग कर दिया था। संन्यास के बाद उन्होंने कभी ये चीजें ग्रहण नहीं की। पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे। बार-बार पानी नहीं पीते थे। पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया।

पूरा परिवार बन चुका है संन्यासी

पढ़ें :- अखिलेश यादव का योगी सरकार पर हमला, बोले-BJP इतनी डर गई है, DAP में भी दिख रहा है PDA…

उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी। विद्यासागर जी के बड़े भाई अभी मुनि उत्कृष्ट सागर जी है। उनके सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी के नाम से जाने जाते हैं। माता-पिता भी संन्यास ले चुके हैं।

8 भाषाओं के थे ज्ञाता, डॉक्ट्रेट भी किया था 

जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज (Jain Muni Acharya Vidyasagar Ji Maharaj)  संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ आदि 8 भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।

आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

साहित्य सर्जन

पढ़ें :- IMD Winter Forecast : यूपी-बिहार समेत इन राज्यों में बस आ ही गई ठंड, हो जाएं तैयार

हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि में एक दर्जन से अधिक मौलिक रचनाएँ प्रकाशित- ‘नर्मदा का नरम कंकर’, ‘डूबा मत लगाओ डुबकी’ , ‘तोता रोता क्यों ?’ , ‘मूक माटी’ आदि काव्य कृतियां ; गुरुवाणी , प्रवचन परिजात, प्रवचन प्रमेय आदि प्रवचन संग्रह; आचार्य कुंदकुंद के समयासार, नियमसार , प्रवचनसार और जैन गीता आदि ग्रंथों का पद्य अनुवाद |

न कोई बैंक अकाउंट , न कोई ट्रस्ट

जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज (Jain Muni Acharya Vidyasagar Ji Maharaj) ने कभी किसी से पैसा नहीं लिया। वे धन संचय के खिलाफ थे। उन्होंने ना कभी कोई ट्रस्ट बनाया, जिसके जरिए पैसा ले सकें। ना ही कभी अपने नाम का कोई बैंक अकाउंट खुलवाया। वे दक्षिणा या दान में भी कभी पैसा नहीं लेते। नजदीक से जानने वालों का दावा है कि उन्होंने कभी पैसे को हाथ नहीं लगाया। जो पैसा कभी उनके नाम पर लोग दान भी करते तो उसे वे समाज सेवा में लगाने के लिए दे देते थे।

आजीवन नमक-चीनी, हरी सब्जी, दूध-दही नहीं खाया: दिन में एक बार पीते थे पानी

चीनी का त्याग।

नमक का त्याग।

पढ़ें :- PM मोदी ने फिल्म 'द साबरमती रिपोर्ट' की तारीफ, बोले- फर्जी कहानियों का सच सामने आ ही जाता है...

चटाई का त्याग।

हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग, अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन।

दही का त्याग।

सूखे मेवा (dry fruits) का त्याग।

तेल का त्याग।

सभी प्रकार के भौतिक साधनों का त्याग

थूकने का त्याग।

पढ़ें :- महाराष्ट्र में वोटिंग से पहले एकनाथ शिंदे का बड़ा बयान , बोले-मैं सीएम पद की रेस में नहीं

एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर किसी भी मौसम में।

पूरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले। उन्होंने करीब 350 दीक्षाएं दीं।

एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय।

पूरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है

शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारों पर या पहाड़ों पर अपनी साधना करना।

अनियत विहारी यानि बिना बताए विहार करना। उन्होंने विहार के लिए कभी शेड्यूल नहीं बनाए।

जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने  चंद्रगिरी पर्वत पर त्यागा शरीर

डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी पर्वत (Chandragiri Mountain) पर जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज (Jain Muni Acharya Vidyasagar Ji Maharaj) ने शरीर त्याग दिया है। वहीं, आज रविवार को दोपहर लगभग एक बजे उन्हें पंचतत्व में विलीन किया जाएगा। इस दौरान बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद रहेंगे।

Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...