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यूपी में भाजपा 2027 के चुनाव में मान चुकी है अपनी हार, हर ठेके और काम में बस पैसा बटोरने में है लगी : अखिलेश यादव

किसानों-मज़दूरों की बेकारी, युवाओं की बेरोज़गारी, परिवारवालों के लिए खानपान, दवाई, पढ़ाई, पेट्रोल-डीज़ल और हर चीज़ की महंगाई, महिलाओं का अपमान और असुरक्षा, हर काम में भ्रष्टाचार, पीडीए का उत्पीड़न और उन पर अत्याचार, भाजपा में डबल इंजन की टकराहट जैसे न जाने कितने मुद्दे हैं, जो भाजपा विरुद्ध जनता में आक्रोश का उबाल ला चुके हैं। उप्र में लोकसभा की पराजय के बाद भाजपा का सारा सियासी समीकरण और साम्प्रदायिक राजनीति का फ़ार्मूला पहली ही फ़ेल हो चुका है,

By शिव मौर्या 
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लखनऊ। उत्तर सरकार ने अपने सोशल मीडिया पर शिक्षक भर्ती निकाले जाने की घोषणा की थी। हालांकि, कुछ समय बाद इस पोस्ट को डिलिट कर दिया गया। इस पोस्ट के डिलिट होने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लगातार यूपी की भाजपा सरकार को घेरने में जुटे हुए हैं। अब उन्होंने कहा कि, यूपी में भाजपा 2027 के चुनाव में मान चुकी है अपनी हार, हर ठेके और काम में बस पैसा बटोरने में लगी है।

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अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि, 1,93,000 शिक्षक भर्तियों के जुमलाई विज्ञापन से जन्मा: 2027 के चुनाव में ‘भाजपा की हार का राजनीतिक गणित’…मान लिया जाए कि 1 पद के लिए कम-से-कम 75 अभ्यर्थी होते, तो यह संख्या होती = 1,44,75,000…⁠और एक अभ्यर्थी के साथ यदि केवल उनके अभिभावक जोड़ लिए जाएं तो कुल मिलाकर 3 लोग इससे प्रभावित होंगे अर्थात ये संख्या बैठेगी = 4,34,25,000…⁠ये सभी व्यस्क होंगे अतः इन्हें 4,34,25,000 मतदाता मानकर अगर उप्र की 403 विधानसभा सीटों से विभाजित कर दें तो ये आंकड़ा लगभग 1,08,000 वोट प्रति सीट का आयेगा।

उन्होंने आगे लिखा, अगर इनका आधा भी भाजपा का वोटर मान लें (चूंकि भाजपा 50% वोटर्स की जुमलाई बात करती आई है) तो लगभग 1,08,000 का आधा मतलब हर सीट पर 54,000 मतों का नुक़सान भाजपा को होना तय है। ⁠इस परिस्थिति में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनावों में दहाई सीटों पर ही सिमट जाएगी। पुलिस भर्ती के मामले में ‘भर्तियों का ये गणित’ भाजपा को उप्र में लगभग आधी सीटों पर हारने में सफल भी रहा है, अत: ऐसे आंकड़ों को अब सब गंभीरता से लेने लगे हैं। अब ये मानसिक दबाव का नहीं वरन सियासी सच्चाई का आंकड़ा बन चुका है।

जैसे ही ये आंकड़ा प्रकाशित होगा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भाजपाई प्रत्याशियों के बीच जाएगा वैसे ही उनका राजनीतिक गुणा-गणित टूट कर बिखर जाएगा और विधायक बनने का उनका सपना भी। इससे भाजपा में एक तरह से भगदड़ मच जाएगी। ऐसे में भाजपा को मतदाता ही नहीं बल्कि प्रत्याशियों के भी लाले पड़ जाएंगे। वैसे भी कुछ निम्नांकित उल्लेखनीय कारणों से भाजपा सरकार के विरोध में, उप्र की जनता पूरी तरह आक्रोशित है और भाजपा को 2027 के चुनाव में बुरी तरह से हराने और हटाने के लिए पूरी तरह कमर कस के तैयार है।

इसके साथ ही उन्होंने आगे लिखा कि, किसानों-मज़दूरों की बेकारी, युवाओं की बेरोज़गारी, परिवारवालों के लिए खानपान, दवाई, पढ़ाई, पेट्रोल-डीज़ल और हर चीज़ की महंगाई, महिलाओं का अपमान और असुरक्षा, हर काम में भ्रष्टाचार, पीडीए का उत्पीड़न और उन पर अत्याचार, भाजपा में डबल इंजन की टकराहट जैसे न जाने कितने मुद्दे हैं, जो भाजपा विरुद्ध जनता में आक्रोश का उबाल ला चुके हैं। उप्र में लोकसभा की पराजय के बाद भाजपा का सारा सियासी समीकरण और साम्प्रदायिक राजनीति का फ़ार्मूला पहली ही फ़ेल हो चुका है, विकास के नाम पर इन्होंने सपा सरकार के बने कामों के उद्घाटन का उद्घाटन मात्र किया है। ऐसे में भाजपा के भावी प्रत्याशियों के बीच ये संकट है कि वो जनता के बीच क्या मुंह लेकर जाएं। इसीलिए उप्र में भाजपा 2027 के चुनाव में अपनी हार मान चुकी है और जाने से पहले हर ठेके और काम में बस पैसा बटोरने में लगी है। इसीलिए उप्र ‘ऐतिहासिक महाभ्रष्टाचार’ के दौर से गुजर रहा है।

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उन्होंने आगे लिखा, भाजपा की सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता पर आधारित समाज को लड़ानेवाली बेहद कमज़ोर हो चुकी दरारवादी-विभाजनवादी नकारात्मक राजनीति के मुक़ाबले ‘सामाजिक न्याय के राज’ की स्थापना का महालक्ष्य लेकर चलनेवाली समता-समानतावादी, सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक पीडीए राजनीति का युग आ चुका है। 90% पीड़ित जनता जाग चुकी है और ‘अपनी पीडीए सरकार’ बनाने के लिए कटिबद्ध भी है और प्रतिबद्ध भी।

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