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गौतम अडानी को धोखाधड़ी मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट से क्लीनचिट, 2012 से चल रहा था मामला

उद्योगपति गौतम अडानी (Gautam Adani) , अडानी एंटरप्राइजेज (Adani Enterprises) के चेयरमैन और इसके प्रबंध निदेशक राजेश अडानी को राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court ) ने सेशन कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 388 करोड़ रुपये के कथित बाजार रेगुलेशन उल्लंघन मामले में उन्हें आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया गया था।

By संतोष सिंह 
Updated Date

मुंबई। उद्योगपति गौतम अडानी (Gautam Adani) , अडानी एंटरप्राइजेज (Adani Enterprises) के चेयरमैन और इसके प्रबंध निदेशक राजेश अडानी को राहत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court ) ने सेशन कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें 388 करोड़ रुपये के कथित बाजार रेगुलेशन उल्लंघन मामले में उन्हें आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया गया था।

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सिंगल जज जस्टिस राजेश लड्ढा (Single Judge Justice Rajesh Laddha) ने मुंबई की एक सेशन कोर्ट द्वारा नवंबर 2019 में पारित आदेश रद्द कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) ने उक्त बाजार रेगुलेशन उल्लंघन मामले में अडानी के खिलाफ मामला बनाया। अडानी ने सेशन कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए दिसंबर, 2019 में हाईकोर्ट का रुख किया था। उक्त आदेश पर दिसंबर, 2019 में ही रोक लगा दी गई थी और अंतरिम राहत को समय-समय पर 12 मार्च तक बढ़ाया गया, जब जस्टिस लड्ढा ने मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया था। गौतम और राजेश अडानी के साथ अडानी एंटरप्राइजेज ने 2012 में SFIO द्वारा उनके खिलाफ दर्ज मामले से मुक्ति मांगी थी। SFIO ने अडानी सहित 12 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। इसने उद्योगपति और उसके भाई पर आपराधिक साजिश रचने और धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया।

लेकिन शहर की मजिस्ट्रेट अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि SFIO द्वारा पेश किए गए सबूत अडानी के खिलाफ मुकदमा चलाने या मजबूत मामला बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं इसलिए अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। इसके बाद 2014 में SFIO ने सेशन कोर्ट के समक्ष मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी, जिसने नवंबर, 2019 में अडानी के पक्ष में बरी करने का आदेश रद्द कर दिया। अपने आदेश में सेशन कोर्ट ने कहा कि SFIO ने अडानी समूह द्वारा अवैध लाभ का एक मजबूत मामला बनाया। इस आदेश को चुनौती देते हुए अडानी एंटरप्राइजेज (Adani Enterprises) ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि सेशन कोर्ट का आदेश मनमाना और अवैध था।

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