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कोरोना मरीजों में ऑक्सीजन की कमी को रोकेगी ‘2DG’ : डॉ. अनिल कुमार मिश्र

कोरोना महामरी के इलाज में '2DG' गेम चेंजर दवाई साबित हो सकती है। बलिया में जन्मे और बीएचयू से केमिस्ट्री में पीएचडी डॉ. अनिल कुमार मिश्र इस दवा की खोज करने वाली टीम के प्रमुख सदस्य हैं |दवा ऑक्सीजन की कमी रोकेगी, संक्रमण की संभावना कम करेगी। वायरस के पनपने के लिए ग्लूकोज की आवश्यकता होती है, यह दवा ग्लूकोज के बजाय कोशिकाओं में जम जाएगी और वायरस इसे खाते ही खत्म हो जाएगा।

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। कोरोना महामरी के इलाज में ‘2DG’ गेम चेंजर दवाई साबित हो सकती है। बलिया में जन्मे और बीएचयू से केमिस्ट्री में पीएचडी डॉ. अनिल कुमार मिश्र इस दवा की खोज करने वाली डीआरडीओ टीम के प्रमुख सदस्य हैं |

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बता दें डॉ. अनिल कुमार मिश्रा 1997 में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एण्ड एप्लाइड साइंसेज ज्वॉइन किया और दो साल में पीएम  यंग साइंटिस्ट अवार्ड भी जीता था। बकौल डॉ. मिश्रा, दवा कोरोना की हर स्टेज में कारगर है और बच्चों को भी दे सकते हैं। दवा ऑक्सीजन की कमी रोकेगी, संक्रमण की संभावना कम करेगी। वायरस के पनपने के लिए ग्लूकोज की आवश्यकता होती है, यह दवा ग्लूकोज के बजाय कोशिकाओं में जम जाएगी और वायरस इसे खाते ही खत्म हो जाएगा।

धनंजय मिश्र के बड़े भाई व डीआरडीओ के वैज्ञानिक अनिल मिश्र के द्वारा कोविड-19 कोरोना की दवा का आविष्कार करना निश्चित रूप से दुनिया में भारत के मान सम्मान में चार चांद लगाना है, साथ ही साथ बलिया की इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ने का काम उन्होंने किया है। उन्होंने बताया कि श्री मिश्र इसके पहले भी कैंसर जैसे असाध्य बीमारी का दवा का आविष्कार किए हैं। उसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के द्वारा इन को सम्मानित किया गया था।

जानें देश के नायक और अब पूर्वांचल के हीरो डॉ. अनिल कुमार मिश्र के बारे में

डॉ. अनिल मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी और वर्ष 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया। इसके बाद वे फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फेलो थे। बाद में वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे। वे 1994- 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक रहे।

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