Bharat Bandh: सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के भीतर कोटा लागू करने के फैसले के विरोध में दलित और आदिवासी संगठनों ने आज भारत बंद (Bharat Bandh) बुलाया है। जिसका बसपा, आरजेडी और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी समेत कई दलों ने समर्थन किया है। इस बंद का बिहार, झारखंड और राजस्थान में काफी असर दिख रहा है। हालांकि, मध्य-प्रदेश में इसका कोई खास असर नहीं है।
Bharat Bandh: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के भीतर कोटा लागू करने के फैसले के विरोध में दलित और आदिवासी संगठनों ने आज भारत बंद (Bharat Bandh) बुलाया है। जिसका बसपा, आरजेडी और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी समेत कई दलों ने समर्थन किया है। इस बंद का बिहार, झारखंड और राजस्थान में काफी असर दिख रहा है। हालांकि, मध्य-प्रदेश में इसका कोई खास असर नहीं है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने कोटा के अंदर कोटा से जुड़े मामले में 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है। इसका मतलब है कि यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं, जिससे सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके। राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में सक्षम होंगी। इसी के साथ कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है। हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने ये फैसला सुनाया।
संगठनों ने कोर्ट के फैसले के प्रति विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है। उनके अनुसार, ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले (Indra Sawhney Case) में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा लिए गए फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण की रूपरेखा स्थापित की थी। एनएसीडीएओआर (NACDAOR) ने सरकार से अनुरोध किया है कि इस फैसले को खारिज किया जाए क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है। संगठन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण पर संसद द्वारा एक नये कानून को पारित करने की भी मांग कर रहा है जिसे संविधान की नौवीं सूची में समावेश के साथ संरक्षित किया जाए।
विरोध करने वाले संगठनों का मानना है कि इससे आरक्षण व्यवस्था (Reservation System) के मौलिक सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न लग गया है। इन संगठनों ने इसे आरक्षण नीति के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि इससे आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और सामाजिक न्याय की धारणा कमजोर हो जाएगी। उनका तर्क है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए है। अस्पृश्यता यानी छुआछूत के भेद का शिकार हुईं इन जातियों को एक समूह ही माना जाना चाहिए। वे इसे आरक्षण खत्म करने की साजिश बता रहे हैं।