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दिल्ली उच्च न्यायालय ने सजायाफ्ता आतंकवादी मोहम्मद अयूब मीर की याचिका की खारिज, मीर ने मांगा था पैरोल

उच्च न्यायालय दिल्ली ने मोहम्मद अयूब मीर की एक याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने पैरोल की मांग की थी। अदालत ने सुरक्षा जोखिमों का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी। मीर लश्कर-ए-तैयबा का एक सजायाफ्ता आतंकवादी है जो आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के तहत आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

By Satish Singh 
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नई दिल्ली। उच्च न्यायालय दिल्ली (High Court Delhi) ने मोहम्मद अयूब मीर की एक याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने पैरोल की मांग की थी। अदालत ने सुरक्षा जोखिमों का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी। मीर लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) का एक सजायाफ्ता (convicted) आतंकवादी है जो आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के तहत आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने मीर की दो दशकों से अधिक की लंबी कैद और उसके कैंसर के निदान को देखते हुए कहा कि विचारों का संतुलन पैरोल देने के खिलाफ है।

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न्यायालय ने कहा कि पैरोल (parole) एक विवेकाधीन रियायत है। यह अधिकार का मामला नहीं है और ऐसे फैसलों में राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भारी वजन उठाना चाहिए। पैरोल से इनकार करते हुए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि मीर को जम्मू के सरकारी मेडिकल कॉलेज (Government Medical College)  में सर्वोत्तम उपलब्ध उपचार मिलना जारी रहना चाहिए। इसने यह भी आदेश दिया कि यदि जम्मू में उपलब्ध नहीं होने वाले विशेष उपचार की सिफारिश किसी मेडिकल बोर्ड द्वारा की जाती है या याचिका का विरोध करते हुए, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के स्थायी वकील रुषभ अग्रवाल (Standing Counsel Rushabh Agarwal) और दिल्ली एनसीटी के अतिरिक्त स्थायी वकील संजीव भंडारी ने कहा कि मीर का मामला चिकित्सा या मानवीय आधार पर रियायत का पात्र नहीं है।

उन्होंने तर्क दिया कि वह पहले से ही सरकारी मेडिकल कॉलेज, जम्मू में पर्याप्त उपचार प्राप्त कर रहे हैं, और उन्होंने दिल्ली के एक कैंसर अस्पताल में अदालत द्वारा सुझाए गए स्थानांतरण को भी अस्वीकार कर दिया था। अपने अपराधों की गंभीरता पर जोर देते हुए, उन्होंने प्रस्तुत किया कि उनकी रिहाई से उनके राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों (anti national activities) को फिर से शुरू करने का वास्तविक जोखिम है, खासकर अगर उन्हें श्रीनगर लौटने की अनुमति दी जाती है। प्रतिवादियों ने खुफिया सूचनाओं और पिछली घटनाओं का भी हवाला देते हुए तर्क दिया कि मीर ने पहले स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया था, जिससे पैरोल का कोई भी नया अनुदान असुरक्षित हो गया था।

मीर को 2002 में स्पेशल सेल द्वारा दर्ज एफआईआर संख्या 34/2002 के तहत दोषी ठहराया गया था उन्हें श्रीनगर (Srinagar) की 2018 की एक जेल की घटना में भी फंसाया गया था, जहां उन्होंने कथित तौर पर कैदियों को देश-विरोधी नारे (Anti-national slogans) लगाने के लिए उकसाया था, जिसके कारण उन्हें जम्मू के कोट भलवाल जेल (Bhalwal Jail) में स्थानांतरित कर दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी वर्तमान याचिका में, मीर ने कई आधारों का हवाला देते हुए आठ सप्ताह की पैरोल मांगी: उनके कैंसर का इलाज, उनकी विकलांग बेटी (disabled daughter) की देखभाल, उनके घर के विध्वंस के परिणामों को ध्यान में रखना, पारिवारिक संबंध बनाए रखना और 22 साल से अधिक की कैद से उत्पन्न मानवीय विचार।

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