बचपन में ही बच्चों पर ध्यान दे दिया जाए तो बड़े होने पर उन पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत नहीं पड़ती है।
बचपन से ही बच्चों को लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है कैसे रहना है, क्या बोलना है सिखाना ज़रूरी है। जब बच्चा दो-तीन साल का होता है, तब ही इनकी नींव डालना और इस कौशल को मज़बूती देना शुरू कर देना चाहिए।
बचपन में ही बच्चों पर ध्यान दे दिया जाए तो बड़े होने पर उन पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत नहीं पड़ती है। दो-तीन साल की उम्र ऐसी होती है, जब बच्चे बहुत तेज़ी से सबकुछ सीखना और करना चाहते हैं।
अब आपको थोड़ा प्यार से काम लेना होगा। इस उम्र के बच्चे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलते-कूदते हैं और दोस्त बनाते हैं।इसलिए अब बच्चों को अपने खिलौने शेयर करना सिखाएं। बच्चों को बताएं कि अपने साथी को चोट पहुंचाना बिल्कुल भी सही नहीं है और उन्हें झूठ बोलने की आदत से दूर रहना है।
कभी हड़बड़ी में काम ख़ूब बिगाड़ भी देते हैं। इसीलिए उन्हें सुकून से काम करने की समझ देते समय अभिभावकों को भी ख़ूब सारा धैर्य रखना होगा।
यह भी ध्यान रखें कि जो बच्चे ने सीख लिया, जिसका 4-5 साल की आयु तक ख़ूब अभ्यास कर लिया, वही उसके व्यक्तित्व में आकार ले लेगा। किताब पढ़कर सुनाने या कहानी कहने का एक समय तय कीजिए और उस समय का पूरी प्रतिबद्धता से पालन कीजिए। यह बच्चे की पढ़ाई, अक्षरों से लगाव व भाषा ज्ञान की तरफ़ बढ़ने का अहम क़दम होगा।
वहीं आपको भी कई बातों पर ध्यान देने की जरुरत है। घर के बड़े भी अख़बार, किताबें आदि पढ़ें। कोशिश करें कि मोबाइल से ज्यादा परिवार के साथ समय बिताएं आपस में अच्छा व्यवहार करें। क्योंकि बच्चे बड़ों को जो करते हुए देखते है वहीं करते है।