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BJP के आने के बाद एक के बाद एक मंदिरों पर हो जा रहा है ‘प्रशासनिक क़ब्ज़ा’, ये देश की सांस्कृतिक-धार्मिक परंपरा के है विरुद्ध : अखिलेश यादव

सपा सुप्रीमो ने आगे कहा, कारोबारी भाजपा और उनके धन लोलुप संगी-साथी याद रखें कि धर्म भलाई के लिए होता है, कमाई के लिए नहीं। ये अनायास नहीं है कि जबसे भाजपा आई है एक के बाद एक मंदिरों पर ‘प्रशासनिक क़ब्ज़ा’ होता जा रहा है। ये देश की सांस्कृतिक-धार्मिक परंपरा के विरुद्ध है।

By शिव मौर्या 
Updated Date

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि, कारोबारी भाजपा और उनके धन लोलुप संगी-साथी याद रखें कि धर्म भलाई के लिए होता है, कमाई के लिए नहीं। ये अनायास नहीं है कि जबसे भाजपा आई है एक के बाद एक मंदिरों पर ‘प्रशासनिक क़ब्ज़ा’ होता जा रहा है। ये देश की सांस्कृतिक-धार्मिक परंपरा के विरूद्ध है।

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अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, मंदिरों को सरकारी प्रशासन के भ्रष्टाचार से बचाया जाए! सभी बड़े मंदिरों पर सरकार के प्रबंधन के बहाने भाजपा और उनके संगी-साथी अप्रत्यक्ष रूप से अपना क़ब्ज़ा करते जा रहे हैं। जो परंपरागत रूप से सैकड़ों सालों से इन मंदिरों के प्रबंधन-संचालन में आस्था से अपने कर्तव्य निभाते आ रहे हैं, उनसे उनके सेवा-भाव के अधिकार छीने जा रहे हैं। साथ ही उनके ऊपर अविश्वास प्रकट करते हुए, एक तरह से ये आरोप भी लगाया जा रहा हैं कि वो इस काम में सक्षम नहीं है या फिर उनका संचालन त्रुटिपूर्ण है।

उन्होंने आगे कहा, मंदिरों में श्रद्धालु जो दान-पुण्य करते हैं उसका सदुपयोग मंदिर में दर्शन, प्रसाद-भेंट, सुरक्षा, जन सुविधा, धर्मशाला आदि धर्मार्थ कार्यों में होता आया है और सेवा-भाव से भरा आस्थावान प्रबंधन इसीको सुनिश्चित करता है क्योंकि उनका ऐसे धर्म-कर्म से एक बहुत गहरा भक्ति भावना से भरा लगाव होता है। जो लोग बाहरी होते हैं या पेशेवर होते हैं, वो इन सब धार्मिक-निवेश को लाभ-हानि की तराज़ू पर तोलते हैं, उनके लिए ये श्रद्धा का विषय नहीं होता है। ऐसे प्रकरण उपलब्ध हैं जब ऐसे प्रशासनिक लोगों ने मंदिर में चढ़ाये गये बेलपत्रों तक को बेचकर भ्रष्टाचार किया है।

सपा सुप्रीमो ने आगे कहा, कारोबारी भाजपा और उनके धन लोलुप संगी-साथी याद रखें कि धर्म भलाई के लिए होता है, कमाई के लिए नहीं। ये अनायास नहीं है कि जबसे भाजपा आई है एक के बाद एक मंदिरों पर ‘प्रशासनिक क़ब्ज़ा’ होता जा रहा है। ये देश की सांस्कृतिक-धार्मिक परंपरा के विरुद्ध है। जो भावना एक न्यास में होती है, वो प्रशासन के उन लोगों में कैसे हो सकती है, जिनका कब स्थानांतरण हो जाए, उन्हें पता नहीं होता और जो शासन के कृपापात्र होते हैं, वो ईश्वर के कृपा पात्र सच्चे न्यासियों जैसे हो ही नहीं सकते हैं। आस्थावान कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा।

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