जौनपुर अपहरण केस (Jaunpur Kidnapping Case) में पूर्व सांसद व जदयू के राष्ट्रीय महासचिव धनंजय सिंह (Former MP Dhananjay Singh) मंगलवार को दोषी करार दिए गए। इसके बाद जेल भेज दिए गए हैं। सजा का ऐलान बुधवार को होगा।
लखनऊ। जौनपुर अपहरण केस (Jaunpur Kidnapping Case) में पूर्व सांसद व जदयू के राष्ट्रीय महासचिव धनंजय सिंह (Former MP Dhananjay Singh) मंगलवार को दोषी करार दिए गए। इसके बाद जेल भेज दिए गए हैं। सजा का ऐलान बुधवार को होगा।
जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह और और उनके सहयोगी संतोष विक्रम को अपहरण और रंगदारी मामले में अपर सत्र न्यायाधीश शरद त्रिपाठी द्वारा दोषी करारा दिया गया है। उन पर बुधवार 6 मार्च को सुनवाई होगी।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर निवासी नमामि गंगे को पोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने 10 मई 2020 को लाइन बाजार थाने में अपहरण रंगदारी व अन्य धाराओं मे पूर्व सांसद धंनजय सिंह और साथी संतोष विक्रम पर FIR दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि संतोष विक्रम दो साथियों के साथ वादी का अपहरण कर पूर्व सांसद के आवास पर ले गए थे। वहां धनंजय सिंह पिस्टल लेकर आए और गालियां देते हुए वादी को कम गुणवत्ता वाली सामग्री की आपूर्ति करने के लिए दबाव बनाए। इंकार करने पर धमकी देते हुए रंगदारी मांगी।
जौनपुर से चुनाव लड़ने का किया था ऐलान
बाहुबली धनंजय सिंह ने हाल ही में जौनपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। इस ऐलान के कुछ ही दिन बाद उनके अरमानों पर पानी फिर गया है। जौनपुर अपहरण केस में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को दोषी करार दिया गया है। इसके बाद उन्हें हिरासत में भी ले लिया गया है। ऐसे में उनके चुनाव लड़ने की संभावना पर संकट के बादल छा गए हैं। बता दें कि जौनपुर सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी के नाम का ऐलान होते ही धनंजय सिंह ने भी चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। धनंजय सिंह ने जौनपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए पोस्टर भी जारी किया था, जिसमें लिखा था- जीतेगा जौनपुर।
धनंजय सिंह का राजनैतिक करियर
बता दें कि धनंजय सिंह ने पहली बार 2002 में रारी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता। इसके बाद 2007 में उन्हें जेडीयू से टिकट मिला और वह विधानसभा पहुंचे। लेकिन 2008 में धनंजय जेडीयू छोड़कर बसपा में शामिल हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें जौनपुर से टिकट दिया और पहली बार धनंजय सिंह सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे। लेकिन बसपा से उनके संबंध ज्यादा समय तक नहीं चले। मायावती ने 2011 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगाकर बाहर कर दिया।