गणेश चतुर्थी 2025 (Ganesh Chaturthi 2025) का पावन त्योहार आज 27 अगस्त को पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान गणेश (Lord Ganesha) की विधिपूर्वक पूजा और घरों में उनकी स्थापना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) को घर में विराजित करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शुभता का वास होता है।
नई दिल्ली। गणेश चतुर्थी 2025 (Ganesh Chaturthi 2025) का पावन त्योहार आज 27 अगस्त को पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान गणेश (Lord Ganesha) की विधिपूर्वक पूजा और घरों में उनकी स्थापना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) को घर में विराजित करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शुभता का वास होता है। इस शुभ अवसर पर सही समय पर गणेश स्थापना करना अत्यंत फलदायक होता है।
शास्त्रों और पंचांग के अनुसार, 27 अगस्त को गणेश प्रतिमा (Ganesh Idol) की स्थापना का शुभ समय सुबह 11:05 से दोपहर 12:42 तक है। लेकिन दोपहर 12:22 से राहुकाल शुरू हो जाएगा, जो अशुभ माना जाता है। इसलिए गणपति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा पूजन (Pran Pratishtha Puja) के लिए सबसे उत्तम समय 11:05 से 12:22 बजे तक रहेगा।
शहरों के अनुसार गणेश चतुर्थी स्थापना मुहूर्त 2025
पुणे – प्रातः 11:21 से दोपहर 01:51
नई दिल्ली -प्रातः 11:05 से दोपहर 01:40
चेन्नई – प्रातः10:56 से दोपहर 01:25
जयपुर – प्रातः11:11 से दोपहर 01:45
हैदराबाद -प्रातः 11:02 से दोपहर 01:33
गुरुग्राम – प्रातः11:06 से दोपहर 01:40
चण्डीगढ़ -प्रातः 11:07 से दोपहर 01:42
कोलकाता – प्रातः10:22 से दोपहर 12:54
मुम्बई – प्रातः 11:24 से दोपहर 01:55
बेंगलूरु – प्रातः 11:07 से दोपहर 01:36
अथर्वशीर्ष पाठ : ॐ नमस्ते गणपतये
॥ शांति पाठ ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ँसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायूः ।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ नमस्ते गणपतये ॥
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥१॥
ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥२॥
अव त्वं माम् । अव वक्तारम्।
अव श्रोतारम्। अव दातारम्।
अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पश्चात्तात्। अव पुरस्त्तात्।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात्।
अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥३॥
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥४॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति॥
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति॥
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति॥
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः॥
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥५॥
त्वं गुणत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः॥
त्वं देहत्रयातीतः ॥ त्वं कालत्रयातीतः॥
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्॥
त्वं शक्तित्रयात्मकः॥
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं॥
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं
इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम्॥६॥
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादि तदनंतरम्॥
अनुस्वारः परतरः ॥ अर्धेन्दुलसितम् ॥
तारेण ऋद्धम्॥ एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥
गकारः पूर्वरूपम्॥ अकारो मध्यमरूपम् ॥
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्॥ बिन्दुरुत्तररूपम् ॥
नादः संधानम्॥ संहितासंधिः ॥
सैषा गणेशविद्या॥ गणकऋषिः ॥
निचृद्गायत्रीच्छंदः॥ गणपतिर्देवता ॥
ॐ गं गणपतये नमः॥७॥
एकदंताय विद्महे ।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥८॥
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्ब्रिभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:॥९॥
नमो व्रातपतये।
नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्री वरदमूर्तये नमो नमः॥१०॥
॥ फल श्रुति॥
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते। स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्वतः सुखमेधते । स सर्वविघ्नैर्नबाध्यते।
स पञ्चमहापापातप्रमुच्यते ॥११॥
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रातः प्रयुञ्जानो अपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ॥१२॥
इदम् अथर्वशीर्षमऽशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते।
तं तमनेन साधयेत्॥१३॥
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति।
चतुर्थ्यामनश्नञ्जपति स विद्यावान् भवति।
इत्यथर्वण वाक्यं। ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्।
न बिभेति कदाचनेति ॥१४॥
यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति।
स मेधावान् भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति।
स सर्वं लभते स सर्वं लभते ॥१५॥
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषत् ॥ १६॥
ॐ शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः ॥
॥ अथर्ववेदीय गणपति उपनिषद समाप्त ॥
श्री गणेश आरती
जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव
भावभगत से कोई शरणागत आवे
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव
गणेश चतुर्थी : राशि अनुसार करें ये उपाय
मेष : गणेश जी को लाल फूल और मोदक चढ़ाएं, करियर में सफलता मिलेगी।
वृषभ : सफेद फूल और पंचामृत से स्नान कराएं, पारिवारिक सुख-शांति मिलेगी।
मिथुन : दूर्वा और हरी मिठाई अर्पित करें, धन संबंधी रुकावटें दूर होंगी।
कर्क : नारियल और दूध की मिठाई चढ़ाएं, मानसिक तनाव कम होगा।
ॐ गं गणपतये नमो नमः
श्री सिद्धिविनायक नमो नमः
अष्ट विनायक नमो नमः
गणपति बप्पा मोरया।
ॐ नमो सिद्धि विनायकाय सर्व कार्य कर्त्रे
सर्व विघ्न प्रशमनाय सर्वार्जाय वश्यकर्णाय
सर्वजन सर्वस्त्री पुरुष आकर्षणाय श्रृीं ॐ स्वाहा।
भगवान गणेश नाम मंत्र जाप
ऊँ सुमुखाय नम:
ऊँ एकदंताय नम:
ऊँ कपिलाय नम:
ऊँ गजकर्णाय नम:
ऊँ लंबोदराय नम:
ऊँ विकटाय नम:
ऊँ विघ्ननाशाय नम:
ऊँ विनायकाय नम:
ऊँ धूम्रकेतवे नम:
ऊँ गणाध्यक्षाय नम:
ऊँ भालचंद्राय नम:
ऊँ गजाननाय नम:
गणेश चतुर्थी का शुभकामना संदेश
क्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ,
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं
आते बड़े धूम-धाम से गणपति जी
जाते बड़े धूम-धाम से गणपति जी
आखिर सबसे पहले आकर
हमारे दिलों में बस जाते हैं गणपति जी।
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
हे देवो के देव गणेश
वर दो हमको मिटे क्लेश
सुखी हो संसार और हमारा देश
दुख संकट ना रहे कोई शेष
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं