दीपमालिका का त्योहार दीपावली के उत्सवों की शुरुआत करने वाला पवित्र पर्व गोवत्स द्वादशी गौमाता और उनके बछड़ों को समर्पित है। सनातन धर्म में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। गौमाता को कामघेनु भी कहा जाता है। गोवत्स द्वादशी को महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु, परिवार की समृद्धि और सुख-शांति के लिए व्रत रखती हैंं।
Govatsa Dwadashi 2025 : दीपमालिका का त्योहार दीपावली के उत्सवों की शुरुआत करने वाला पवित्र पर्व गोवत्स द्वादशी गौमाता और उनके बछड़ों को समर्पित है। सनातन धर्म में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। गौमाता को कामघेनु भी कहा जाता है। गोवत्स द्वादशी को महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु, परिवार की समृद्धि और सुख-शांति के लिए व्रत रखती हैंं। इस वर्ष गोवत्स द्वादशी 17 अक्टूबर 2025 को शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन गाय और बछड़े की पूजा होती है। गोवत्स द्वादशी, जिसे वसुबारस, नंदिनी व्रत या बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है।
पूजा के नियम
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और उसके बछड़े को स्नान कराने और उनको नए वस्त्र पहनाने का नियम है। गाय को हल्दी और चंदन का तिलक लगाएं, गेंदे के फूलों की माला पहनाएं और धूप-दीप जलाएं। गौमाता को फल, गुड़, दूध और हरा चारा अर्पित करें।
शाम को गोधूलि बेला में गौमाता की आरती करें और पौराणिक कथा सुनें। अंत में ब्राह्मणों या गौशाला को वस्त्र, अनाज या धन दान दें। गाय को गुड़ और चना खिलाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। जैन और वैष्णव समुदाय में यह पूजन संतान सुख और स्वास्थ्य लाभ के लिए विशेष रूप से किया जाता है।
गोवत्स द्वादशी के दिन गेहूं, चावल और गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।