आजकल खराब जीवनशैली और खान पान की वजह से हार्ट अटैक के मामलों में तेजी आयी है। किसी भी आयु वर्ग के लोग बैठे बैठे या वर्कआउट करते हुए तो कभी डांस करते हुए हार्ट अटैक के मामले सामने आ चुके है। जिसमें दस साल तक के बच्चे भी शिकार हो रहे है।
आजकल खराब जीवनशैली और खान पान की वजह से हार्ट अटैक के मामलों में तेजी आयी है। किसी भी आयु वर्ग के लोग बैठे बैठे या वर्कआउट करते हुए तो कभी डांस करते हुए हार्ट अटैक के मामले सामने आ चुके है। जिसमें दस साल तक के बच्चे भी शिकार हो रहे है।
ऐसे में दिल की सेहत का खास ख्याल रखना बेहद जरुरी है। जब धमनियों में ब्लॉकेज बढ़ जाता है तो हृदय तक रक्त प्रवाह कम हो जाता है, जिससे हार्ट अटैक या अन्य हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ता है। ब्लॉकेज के स्तर के आधार पर डॉक्टर स्टेंट डालने की सलाह देते हैं। आज आपको बताते हैं कि कितने फीसदी ब्लॉकेज में स्टेंट डालने की जरूरत पड़ती है।
धमनियां शरीर में रक्त प्रवाह को बनाए रखने का जरुरी काम करती हैं। जब ये कोलेस्ट्रॉल, फैट और कैल्शियम के जमाव से संकीर्ण हो जाती हैं, तो इसे धमनी ब्लॉकेज या एथेरोस्क्लेरोसिस कहा जाता है। अगर इस ब्लॉकेज का समय पर इलाज न किया जाए, तो यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और अन्य गंभीर दिल के रोगों का कारण बन सकता है। पचास प्रतिशत से कम ब्लॉकेज को आमतौर पर दवाओं और लाइफस्टाइल में बदलाव करके कंट्रोल किया जाता है।
इसमें स्टेंट की जरूरत नहीं होती, लेकिन अगर सीवियर एंजाइना या सांस फूलने की समस्या है, तो एंजियोप्लास्टी और स्टेंट की जरूरत हो सकती है।अगर ब्लॉकेज 70% या उससे अधिक हो और मरीज को सीने में दर्द, सांस लेने में दिक्कत या चलने में कठिनाई हो, तो स्टेंट लगाना जरूरी हो जाता है।9 0% – 100% ब्लॉकेज होने पर स्टेंट के बजाय बायपास सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है, क्योंकि धमनियां पूरी तरह बंद हो चुकी होती हैं।
एंजियोग्राफी से जांच की जाती है कि धमनियों में ब्लॉकेज कितना है। फिर एंजियोप्लास्टी के जरिए ब्लॉकेज वाली धमनी तक एक गुब्बारा पहुंचाया जाता है और उसे फुलाकर धमनी को चौड़ा किया जाता है। फिर धमनी को खुला रखने के लिए एक धातु की जालीदार ट्यूब लगाई जाती है, जिससे रक्त प्रवाह सुचारू रूप से बना रहे।
हार्ट में ब्लॉकेज होने पर शरीर में नजर आते हैं ये लक्षण
सीने में दर्द
सांस लेने में दिक्कत
थकान और कमजोरी
हाथ-पैरों में ठंडक या सुन्न होने की समस्या
हृदय गति में अनियमितता
माइग्रेन या चक्कर आना
पैरों में दर्द या ऐंठन
इरेक्टाइल डिसफंक्शन