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Kabirdas Jayanti 2022: कबीर साहब जी की इस दिन है जयंती, इनके दोहे जीवन जीने की खुराक बन गए

कबीरदास या कबीर साहब जी को उनके भक्त भगवान मानते है। समाज और जीवन पर मानव के मन में उठने वाली दुविधा के बारे कबीर साहब जी ने अपना अनुभव बताया है आज उनका अनुभव उनके भक्तां और अन्य लोगों के लिए जीवन जीने की खुराक बन गया है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Kabirdas Jayanti 2022: कबीरदास या कबीर साहब जी को उनके भक्त भगवान मानते है। समाज और जीवन पर मानव के मन में उठने वाली दुविधा के बारे कबीर साहब जी ने अपना अनुभव बताया है आज उनका अनुभव उनके भक्तां और अन्य लोगों के लिए जीवन जीने की खुराक बन गया है। इस लोक और परलोक की भ्रांतियों पर दुनिया को रोशनी दिखान वाले कबीर साहब भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। कबीर निर्गुण ब्रम्ह के उपासक थे। 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। कबीर साहब का दर्शन भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। वर्तमान में विश्व के सभी धर्मां और दर्शन में कबीर साहब जी की अनुभूति को महसूश किया जा रहा है।

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कबीर साहब के जीवन के बारे में   बात करने वाले स्रोत भी अपर्याप्त हैं। शुरुआती स्रोतों में बीजक और आदि ग्रंथ शामिल हैं। इसके अलावा, भक्त मल द्वारा रचित नाभाजी, मोहसिन फानी द्वारा रचित दबिस्तान-ए-तवारीख और खजीनात अल-असफिया हैं।

हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष कबीरदास जयंती 14 जून 2022 को मनाई जाएगी। संत कबीरदास के जन्म के विषय में कुछ भी सटीकता से नहीं कहा जा सकता है।  कबीर के माता- पिता के विषय में भी एक राय निश्चित नहीं है। “नीमा’ और “नीरु’ की कोख से यह अनुपम ज्योति पैदा हुई थी, या लहर तालाब के समीप विधवा ब्राह्मणी की संतान के रुप में आकर यह पतितपावन हुए थे, ठीक तरह से कहा नहीं जा सकता है। कई मत यह है कि नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। एक किवदंती के अनुसार कबीर को एक विधवा ब्राह्मणी का पुत्र बताया जाता है, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था।

मगहर में ली थी अंतिम सांस
कबीरदास ने अपना पूरा जीवन काशी में बिताया। लेकिन अपने जीवन के अंतिम समय में वे काशी को छोड़कर मगहर चले गए। कहा जाता है कि 1518 के आसपास, मगहर में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके दोहे आज भी लोगों के मुख से सुनने को मिलते हैं।

कबीर साहब के दोहे
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।

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निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।

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