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सुप्रीम कोर्ट के एक और फैसले पर बिल लेकर आई मोदी सरकार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाली समिति में नहीं होंगे CJI

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner)  की नियुक्ति प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) की भूमिका खत्म किए जाने को लेकर गुरुवार को मोदी सरकार (Modi Government) ने राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया है। हालांकि, फिलहाल विधेयक के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी उपलब्ध नहीं है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। दिल्ली सेवा बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराने के बाद केंद्र सरकार अब  देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner)  की नियुक्ति प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) की भूमिका खत्म किए जाने को लेकर गुरुवार को मोदी सरकार (Modi Government) ने राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया है। हालांकि, फिलहाल विधेयक के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी उपलब्ध नहीं है। वहीं, विधेयक पेश होने से पहले कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह चुनाव आयोग (Election Commission)  को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास कर रही है।

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मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसका उद्देश्य मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) और चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners) की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाना था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि इनकी नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ (Justice KM Joseph) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि यह मानदंड तब तक लागू रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद द्वारा कानून नहीं बनाया जाता।

अगले साल निकलेगी रिक्ति

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बता दें, चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे (Election Commissioner Anoop Chandra Pandey) अगली साल 14 फरवरी को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इसलिए अगले साल की शुरुआत में चुनाव आयोग (Election Commission) में एक रिक्ति निकलेगी। उनकी सेवानिवृत्ति चुनाव आयोग (Election Commission)  द्वारा निर्धारित 2024 लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले होगी। पिछले दो मौकों पर आयोग ने मार्च में संसदीय चुनावों की घोषणा की थी। विधेयक के अनुसार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे। लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नॉमिनेट एक केंद्रीय मंत्री इसके सदस्य होंगे।

प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास

इससे पहले, कांग्रेस ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति (Appointment of Election Commissioners) , सेवा की शर्तों और कार्यकाल के विनियमन के लिए सरकार द्वारा लाए जाने वाले विधेयक को ‘असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित’ करार देते हुए कहा कि वह इसका हर मंच पर विरोध करेगी। कांग्रेस के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल (Congress organization general secretary K.C. Venugopal) ने यह आरोप भी लगाया कि यह कदम निर्वाचन आयोग (Election Commission)  को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास है।

वेणुगोपाल (Venugopal) ने कहा कि यह चुनाव आयोग को पूरी तरह से प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का खुला प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के मौजूदा फैसले का क्या, जिसमें एक निष्पक्ष आयोग की आवश्यकता की बात की गई है? प्रधानमंत्री को पक्षपाती चुनाव आयुक्त (Election Commissioners)  नियुक्त करने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है? उन्होंने कहा कि यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है। हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे।

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसका उद्देश्य मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका के हस्तक्षेप को कम करना था। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने अपने फैसले में कहा था कि उनकी नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता। निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडे (Election Commissioner Anoop Chandra Pandey) अगले साल 14 फरवरी को 65 वर्ष की उम्र होने के बाद अवकाशग्रहण करेंगे। वह 2024 के लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले अवकाशग्रहण करेंगे।

केजरीवाल ने दी तीखी प्रतिक्रिया

इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) ने ऐतराज जताया है। केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि प्रधानमंत्री देश के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  को नहीं मानते। उनका संदेश साफ है। जो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  का आदेश उन्हें पसंद नहीं आएगा, वो संसद में कानून लाकर उसे पलट देंगे। यदि पीएम खुले आम सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  को नहीं मानते तो ये बेहद खतरनाक स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने एक निष्पक्ष कमेटी बनायी थी जो निष्पक्ष चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  के आदेश को पलटकर मोदी जी ने ऐसी कमेटी बना दी जो उनके कंट्रोल में होगी और जिस से वो अपने मन पसंद व्यक्ति को चुनाव आयुक्त बना सकेंगे। इस से चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होगी। एक के बाद एक निर्णयों से प्रधान मंत्री जी भारतीय जनतंत्र को कमजोर करते जा रहे हैं।

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