भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव (संचार) सांसद जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने मंगलवार को एक्स पोस्ट बयान जारी कर लिखा कि मोदी सरकार (Modi Government) 100 दिन के कार्यकाल में कई यू-टर्न (U-Turns)और कई घोटालों के बीच यह एक बार फिर भारत में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी संकट (Unemployment Problem) को लेकर कुछ भी करने में विफल रही है।
नई दिल्ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव (संचार) सांसद जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने मंगलवार को एक्स पोस्ट बयान जारी कर लिखा कि मोदी सरकार (Modi Government) 100 दिन के कार्यकाल में कई यू-टर्न (U-Turns)और कई घोटालों के बीच यह एक बार फिर भारत में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी संकट (Unemployment Problem) को लेकर कुछ भी करने में विफल रही है। बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है जिसकी भयावहता को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कम से कम पिछले पांच वर्षों से लगातार आवाज़ उठा रही है। इस संकट को सरकार ने खुद पैदा किया है।
तुगलकी नोटबंदी के कारण रोज़गार सृजन करने वाले एमएसएमई के खत्म होने, जल्दबाज़ी में लागू जीएसटी, बिना तैयारी के लगाए गए कोविड-19 लॉकडाउन और चीन से बढ़ते आपात के कारण बेरोज़गारी ने निश्वित रूप से भयावह रूप धारण कर लिया है। बाकी बची कसर चुनिंदा बड़े बिजनेस ग्रुप्स के पक्ष में नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की आर्थिक नीतियों ने पूरी कर दी। भारत की बेरोज़गारी दर आज 45 वर्षों में सबसे अधिक है, बातक युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर 42% है। यह संकट कितना भयावह है। इसे साबित करने के लिए डेटा भरे पड़े हैं। दो विनाशकारी ट्रेड स्पष्ट रूप से सामने हैं-
कल अस्थिर और संकटों से घिरी मोदी सरकार के 100 दिन पूरे हो गए। कई यू-टर्न और घोटालों के बीच यह एक बार फिर भारत में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी संकट को लेकर कुछ भी करने में विफल रही है।
बेरोज़गारी एक ऐसा मुद्दा है, जिसकी भयावहता को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कम से कम पिछले पांच… pic.twitter.com/R4ZLVqe7Vc
— Congress (@INCIndia) September 17, 2024
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रोज़गार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में विफलता
हर साल लगभग 70-80 लाख युवा श्रम बल में शामिल होते हैं, लेकिन 2012 और 2019 के बीच, रोज़गार में वृद्धि लगभग न के बराबर हुई केवल 0.01%। इससे रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि 2022 में शहरी युवाओं (17.2%) के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं (10.6%) के बीच भी बेरोजगारी दर बहुत अधिक थी। शहरी क्षेत्रों में महिता बेरोजगारी दर 21.6% के साथ काफी ज्यादा थी। सिटी ग्रुप की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत को अपने युवाओं को रोज़गार देने के लिए अगले 10 वर्षों तक हर साल 1.2 करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने होंगे। यहां तक कि 7% GDP ग्रोथ भी हमारे युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं कर पाएंगी नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की सरकार में, देश ने औसतन केवल 5.8% GDP ग्रोथ हासिल की है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मोदी सरकार का पूरी तरह से विफल होना बेरोजगारी संकट का मूल कारण है।
नियमित वेतन वाली औपचारिक नौकरियों का काम होना
ILO की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि मोदी सरकार ने कम वेतन वाले अनौपचारिक क्षेत्र के रोज़गार का प्रतिशत बढ़ा दिया है, जिनमें किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। 2019-22 तक औपचारिक रोज़गार 10.5% से घटकर 9.7% हो गया। भारत की केवल 21% श्रम शाक्ति के पास नियमित वेतन वाली नौकरी है, जो कि कोविड के पहले के समय से 24% से कम है। कोविड के बाद की रिकवरी के शेप्ड रही है, जिसमें एकमात्र लाभार्थी अरबपत्ति वर्ग रहा है। इस बीच वेतनभोगी मध्यम वर्ग के लिए रास्ते बंद हो रहे हैं। कई दशकों में पहली बार, नरेंद्र मोदी के कुप्रबंधन के कारण कृषि में श्रमिकों की वास्तविक संख्या बढ़ रही है। यह आर्थिक आधुनिकीकरण की मूल अवधारणा के ख़िलाफ़ है, जिससे दुनिया भर में हर विकसित देश गुज़रा है। श्रमिक कारखानों से वापस खेतों की ओर जाने को मजबूर हैं – कुल रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 2019-22 से 42% से बढ़कर 45.4% हो गई है।
भारत का दुर्भाग्य यह है कि नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और उनकी सरकार इस वास्तविकता को स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं। वे इसके बजाय तेज़ी से बढ़ते जॉब मार्केट का दावा कर रहे हैं। स्वघोषित परमात्मा के अवतार ने RBI KLEMS के डेटा का इस्तेमाल करके दावा किया है कि अर्थव्यवस्था ने 80 मिलियन नौकरियां पैदा की है। लेकिन, इस बात के पर्याप्त सबूत सामने आए हैं कि यह डेटा बेरोज़गारी का सही आकलन करने के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि ‘रोज़गार वृद्धि’ का जो दावा किया गया है उसमें एक बड़ा हिस्सा महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक घरेलू काम को “रोज़गार” के रूप में दर्ज कर दिया गया है।
दूसरी बात वास्तव में, औपचारिक क्षेत्र की नियमित वेतन वाली नौकरियों के कम होने का स्वाभाविक नतीजा कम वेतन वाली, अनौपचारिक नौकरियों में वृद्धि है आर्थिक उपहास की यह बात RBI KLEMS में स्पष्ट रूप से सामने आई है। जो एक खतरे की घंटी है, लेकिन सरकार बेशर्मी से इसका प्रचार कर रही है। जब हम बिना रोज़गार के विकास (जॉबलेस ग्रोथ) का मुद्दा उठाते हैं तब नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और उनके लिए ढोल पीटने वाले अर्थशास्त्री इसपर हमला बोलने लगते हैं। लेकिन 2014 के बाद से जो हो रहा है उसकी वास्तविकता शायद और भी अधिक गंभीर है- रोज़गार को खत्म करने वाला विकास (जॉबलॉस ग्रोथ)!