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Pitru Paksha 2023 : पितृपक्ष में कुश का सर्वाधिक महत्व होता है, जानें पितरों के तर्पण में इसका उपयोग

हिंदू धर्म में पूर्वजों की की आत्मा की शान्ति के लिए पितृ पक्ष में पिंडदान, तर्पण करने की परंपरा है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Pitru Paksha 2023 : हिंदू धर्म में पूर्वजों की की आत्मा की शान्ति के लिए पितृ पक्ष में पिंडदान, तर्पण करने की परंपरा है। पौराणिक मान्यता है कि तर्पण के दौरान काले तिल और कुश से पिंडदान करने से पितरों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। पितरों को पिंडदान  और तर्पण करने से  मान्यता है उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह परिवार के सदस्यों को सुख समृद्धि का आर्शीवाद प्रदान करते है। पितृपक्ष की शुरुआत इस साल 29 सितंबर से हो रही है जो कि 14 अक्टूबर तक रहेगी। जानें धार्मिक परंपरा।

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वायु पुराण के अनुसार तिल और कुशा के साथ श्रद्धा से जो कुछ पितरों को अर्पित किया जाता है वह अमृत रूप होकर उन्हे प्राप्त होता है।पितर किसी भी योनि में हों उन्हें वह सब उसी रूप में प्राप्त होता है।

तिल और कुश दोनों ही भगवान विष्णु के शरीर से निकले हैं और पितरों को भी भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है।  गरुण पुराण में बताया गया है कि तिल तीन प्रकार के श्वेत, भूरा व काला जो क्रमश: देवता, मनुष्य व पितरों को तृप्त करने वाला होता है। गरूण पुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाभ देवताओं का, मध्य मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है।

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