उत्तराखण्ड टनल हादसे में फंसे मंजीत सिंह आज अपने गृह जनपद खीरी पहुँचे, जहां प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उनका और उसके पिता का जोरदार स्वागत किया गया।
लखीमपुर खीरी: उत्तराखण्ड टनल हादसे में फंसे मंजीत सिंह आज अपने गृह जनपद खीरी पहुँचे, जहां प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उनका और उसके पिता का जोरदार स्वागत किया गया। जिले की तहसील निघासन के भैरमपुर गांव का रहने वाले श्रमवीर मंजीत उत्तराखंड की टनल से बाहर निकलने के बाद आज प्रशासनिक अधिकारियों के साथ जनपद खीरी पहुंचे, जहां स्थानीय कलेक्ट्रेट सभागार में प्रभारी डीएम/सीडीओ अनिल कुमार सिंह और एसपी गणेश प्रसाद साहा की अगुवाई में उनका जोरदार स्वागत हुआ।
आज श्रमवीर मंजीत के खीरी पहुंचने पर जिला प्रशासन के तत्वावधान में कलेक्ट्रेट सभागार में स्वागत समारोह आयोजित किया गया। प्रभारी डीएम/सीडीओ अनिल कुमार सिंह, एसपी गणेश प्रसाद साहा ने एडीएम संजय कुमार सिंह संग मंजीत और उनके पिता को शॉल उढ़ाकर सम्मानित किया और उन्हें मिठाई और उपहार भी प्रदान किए। इस दौरान मंजीत ने प्रभारी डीएम को 17 दिनों की टनल के अंदर से बाहर आने तक की कहानी सुनाई। कहा कि हमें लगा था कि यही मर जाएंगे। मगर सरकार के प्रयास से हम बाहर आ गये।
प्रभारी डीएम अनिल कुमार सिंह ने कहा कि पूरा शासन प्रशासन हर मुश्किल समय में आपके लिए खड़ा है और खड़ा रहेगा। इस दौरान डीएम ने श्रमवीर मनजीत के साहस और धैर्य की सराहना भी की। सीएम के निर्देश पर श्रमिकों की पल-पल जानकारी के लिए प्रदेश सरकार की ओर से एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था। साथ ही सभी परिजनों को उनकी स्थिति के विषय में हर दिन अपडेट किया जा रहा था। सीएम स्वयं इसकी मॉनीटरिंग भी कर रहे थे।
एसपी गणेश प्रसाद साहा ने कहा कि सरकार के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि श्रमिक जन सुरक्षित अपने घरों को पहुंच रहे हैं। एसपी ने श्रमवीर मंजीत के साहस और धैर्य की सराहना भी की। बताते चले कि खीरी के मंजीत उन 41 मजदूरों में से एक है, जो मंगलवार की रात जिंदगी की जंग जीतकर लौटा है। मंजीत और उसके साथियों के लिए देशभर से दुआएं मांगी जा रही थीं। अब उनके बचने के बाद हर कोई जानना चाहता है कि टनल में वे किस तरह संघर्ष करते रहे। मंजीत एक सांस में पूरी कहानी सुनाते हैं।
मंजीत ने बताया, 17 दिन का समय काफी चुनौतीपूर्ण था। करीब 10 दिन फंसे रहने के बाद बाहर से की जा रही मदद के जरिए हमारे पास तक एक पाइप पहुंचा। इसी के जरिए हमें खाना मिल सका। इससे पहले सूखा चीज ही खाने का मिल रहा था। हम लोगों को परिवार की भी चिंता हुई तो बाहर हमारी मदद में जुटी टीम ने माइक्रोफोन के जरिए परिवार के लोगों से बात कराई। इसके बाद थोड़ा सुकून मिला। समय बिताने के लिए टनल के अंदर की एक-दूसरे से बातचीत करते थे। टनल में ही थोड़ा टहल लेते थे।
रिपोर्ट – एस0 डी0 त्रिपाठी