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सुप्रीम कोर्ट ने UP मदरसा एक्ट को बताया संवैधानिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटा, 17 लाख छात्रों को राहत

यूपी के मदरसों में पढ़ने वाले लाखों छात्रों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें अदालत ने यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) को संविधान के खिलाफ बताया था।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। यूपी के मदरसों में पढ़ने वाले लाखों छात्रों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें अदालत ने यूपी मदरसा एक्ट (UP Madrasa Act) को संविधान के खिलाफ बताया था।

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मदरसा एक्ट पर यह फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला ठीक नहीं था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ ने मदरसा एक्ट को भी सही बताया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के 16 हजार मदरसों को राहत मिल गई है। यानी अब यूपी में मदरसे चलते रहेंगे।

यूपी प्रदेश में मदरसों की कुल संख्या लगभग 23,500 है। इनमें 16,513 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं। यानी ये सभी रजिस्टर्ड हैं। इसके अलावा करीब 8000 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं। मान्यता प्राप्त मदरसों में 560 ऐसे हैं, जो एडेड हैं। यानी 560 मदरसों का संचालन सरकारी पैसों से होता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 22 अक्टूबर को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। हालांकि, सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि फाजिल और कामिल के तहत डिग्री देना राज्य के दायरे में नहीं है। यह यूजीसी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

हाईकोर्ट ने क्यों रद्द किया था कानून?

मदरसा बोर्ड कानून (Madrasa Board Law) के खिलाफ अंशुमान सिंह राठौड़ नाम के शख्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में याचिका दायर की थी। राठौड़ ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। इसी पर हाईकोर्ट ने 22 मार्च को फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 ‘असंवैधानिक’ (UP Board of Madrasa Education Act 2004 ‘Unconstitutional’) है और इससे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।

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साथ ही राज्य सरकार को मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूलिंग सिस्टम में शामिल करने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा था, ‘मदरसा कानून 2004 (Madrasa Law 2004)धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है, जो भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है। अदालत ने ये भी कहा था कि सरकार के पास धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या किसी विशेष धर्म के लिए स्कूली शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है।

क्या है मदरसा कानून?

उत्तर प्रदेश में 2004 में ये कानून बनाया गया था। इसके तहत मदरसा बोर्ड (Madrasa Board ) का गठन किया गया था। इसका मकसद मदरसा शिक्षा को सुव्यवस्थित करना था। इसमें अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामिक स्टडीज, तिब्ब (ट्रेडिशनल मेडिसिन), फिलोसॉफी जैसी शिक्षा को परिभाषित किया गया है। यूपी में 25 हजार मदरसे हैं, जिनमें से लगभग 16 हजार को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा (UP Board of Madrasa) से मान्यता मिली हुई है। साढ़े आठ हजार मदरसे ऐसे हैं, जिन्हें मदरसा बोर्ड ने मान्यता नहीं दी है।

मदरसा बोर्ड (Madrasa Board ) ‘कामिल’ नाम से अंडर ग्रेजुएशन और ‘फाजिल’ नाम से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री देता है। इसके तहत डिप्लोमा भी किया जाता है, जिसे ‘कारी’ कहा जाता है। बोर्ड हर साल मुंशी और मौलवी (10वीं क्लास) और आलिम (12वीं क्लास) के एग्जाम भी करवाता है।

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