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बिहार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण याचिका पर कपिल सिब्बल से सुप्रीम कोर्ट का सीधा सवाल, कहा-साबित कीजिए कि चुनाव आयोग गलत…

बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अभियान (Voter List Special Revision Campaign) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (Election Commission) ने कहा कि उसे विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ प्रारंभिक आपत्तियां हैं।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अभियान (Voter List Special Revision Campaign) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई जारी है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (Election Commission) ने कहा कि उसे विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ प्रारंभिक आपत्तियां हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि चुनाव आयोग (Election Commission)  जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है।

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जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने कहा कि यह मतदाता सूची का पुनरीक्षण है। इसका एकमात्र प्रासंगिक प्रावधान जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 है। अधिनियम और नियमों के तहत मतदाता सूची का नियमित पुनरीक्षण किया जा सकता है। एक गहन पुनरीक्षण है और दूसरा संक्षिप्त पुनरीक्षण। गहन पुनरीक्षण में पूरी मतदाता सूची को मिटा दिया जाता है और पूरी प्रक्रिया नई होती है, जिससे सभी 7.9 करोड़ मतदाताओं को गुजरना पड़ता है। संक्षेप में, मतदाता सूची में छोटे-मोटे संशोधन किए जाते हैं। यहां जो हुआ, वह एक विशेष गहन पुनरीक्षण का आदेश देना है।

इस पर जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि चुनाव आयोग (Election Commission) जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। उन्होंने पिछली बार 2003 में ऐसा किया था। क्योंकि गहन अभ्यास किया जा चुका है। उनके पास इसके आंकड़े हैं। वे फिर से माथापच्ची क्यों करेंगे? चुनाव आयोग के पास इसके पीछे एक तर्क है।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने कहा कि यह गहन पुनरीक्षण और संक्षिप्त पुनरीक्षण नियमों में है। हमें बताइए कि आयोग से यह कब करने की अपेक्षा की जाती है? समय-समय पर या कब? आप चुनाव आयोग की शक्तियों को नहीं, बल्कि उसके संचालन के तरीके को चुनौती दे रहे हैं। जस्टिस जॉयमाला बागची ने कहा कि क्या आपको लगता है कि धारा 21 की उपधारा 3 इसमें शामिल है? हमारा मानना है कि उपधारा 3 एक अनिवार्य खंड है जो गहन प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए चुनाव आयोग (Election Commission) को सौंपा गया है। इसलिए यह शक्ति उपधारा 3 से जुड़ी है।

इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस ने कहा कि उपधारा एक सर्वव्यापी है। उपधारा 2 सारांश है और 3 गहन है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने कहा कि तो फिर विधायिका ने दो अलग-अलग प्रावधान क्यों लागू किए? उपधारा 1 में नियमों के अनुसार प्रक्रिया निर्धारित की गई है और उपधारा 3 में एक निश्चित तरीका निर्धारित किया गया है। ऐसा क्यों है?

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इससे पहले चुनाव आयोग (Election Commission) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि याचिकाओं पर उनकी प्रारंभिक आपत्तियां हैं। द्विवेदी के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह चुनाव आयोग (Election Commission)  का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

कई और याचिकाएं भी की गईं दायर

बिहार में चुनाव से पहले एसआईआर (SIR) कराने के चुनाव आयोग (Election Commission) के फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (UBT), समाजवादी पार्टी, झामुमो, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) के नेताओं की संयुक्त याचिका सहित कई नई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  में दायर की गईं। राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की अलग-अलग याचिकाओं के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार एनसीपी गुट से सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और सीपीआई (ML) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  का रुख किया है।

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