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डिजिटल इंडिया का मकसद सशक्तिकरण होना चाहिए, न कि अधिकार छीनना…जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर साधा निशाना

जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर इसको लेकर मोदी सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा कि, मोदी सरकार व्यवस्थित तरीके से तकनीक का इस्तेमाल देश के सबसे वंचित तबकों को सामाजिक कल्याण के योजनाओं से मिलने वाले अधिकारों से वंचित करने के लिए कर रही है।

By शिव मौर्या 
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नई दिल्ली। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि, डिजिटल इंडिया का मकसद सशक्तिकरण होना चाहिए, न कि अधिकार छीनना। उन्होंने कहा, अब, गर्भवती महिलाओं के सामने एक और बाधा खड़ी कर दी गई है- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत मिलने वाले बुनियादी और कानूनी अधिकारों के लिए अब फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT) अनिवार्य कर दी गई है।

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जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर इसको लेकर मोदी सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा कि, मोदी सरकार व्यवस्थित तरीके से तकनीक का इस्तेमाल देश के सबसे वंचित तबकों को सामाजिक कल्याण के योजनाओं से मिलने वाले अधिकारों से वंचित करने के लिए कर रही है।

पहले, आधार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर करोड़ों मज़दूरों को मनरेगा से बाहर कर दिया गया। एसिड अटैक सर्वाइवर्स को सिर्फ़ आधार में नाम जुड़वाने के लिए अदालत में लड़ाई लड़नी पड़ी। देश भर के आदिवासी आज भी तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से अपने राशन से वंचित रह जाते हैं। अब, गर्भवती महिलाओं के सामने एक और बाधा खड़ी कर दी गई है-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत मिलने वाले बुनियादी और कानूनी अधिकारों के लिए अब फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT) अनिवार्य कर दी गई है।

उन्होंने आगे कहा, दुनियाभर में इस बात के सबूत हैं कि FRT जैसी तकनीक त्वचा का रंग और वर्ग के आधार पर भेदभाव करती हैं। इससे पहले भी आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS), नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (NMMS) ऐप जैसी तकनीक के विफल और रुकावट पैदा करने के सबूत सामने आ चुके हैं। संसद की शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी स्थायी समिति की 365वीं रिपोर्ट में भी इस बात का ज़िक्र किया गया था कि कैसे ABPS को प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में लागू करने से गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लाभ मिलना बाधित हुआ।

साथ ही कहा, इसका नतीजा ये हुआ कि जिस योजना के तहत 2019-20 में 96 लाख महिलाओं को भुगतान मिला था, वो घटकर 2023-24 में सिर्फ 27 लाख रह गया। डिजिटल इंडिया का मकसद सशक्तिकरण होना चाहिए, न कि अधिकार छीनना। भाषण समावेश का, व्यवहार बहिष्कार का- ये बात नहीं होनी चाहिए।

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