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SC में कॉलेजियम सिस्टम भी राजनीति से अछूता नहीं , जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत : Kiren Rijiju

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Union Law Minister Kiren Rijiju) ने न्यायपालिका पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की कार्यवाही पारदर्शी नहीं (Judiciary proceedings are not transparent) है। वहां बहुत राजनीति हो रही है। यहां की पॉलिटिक्स बाहर से दिखाई नहीं देती है, लेकिन बहुत मतभेद हैं और कई बार गुटबाजी भी देखी जाती है। रिजिजू ने कहा कि अगर जज न्याय देने से हटकर एग्जीक्यूटिव का काम करेंगे तो हमें पूरी व्यवस्था का फिर से आंकलन करना होगा।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Union Law Minister Kiren Rijiju) ने न्यायपालिका पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की कार्यवाही पारदर्शी नहीं (Judiciary proceedings are not transparent) है। वहां बहुत राजनीति हो रही है। यहां की पॉलिटिक्स बाहर से दिखाई नहीं देती है, लेकिन बहुत मतभेद हैं और कई बार गुटबाजी भी देखी जाती है। रिजिजू ने कहा कि अगर जज न्याय देने से हटकर एग्जीक्यूटिव का काम करेंगे तो हमें पूरी व्यवस्था का फिर से आंकलन करना होगा।

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यह बात श्री रिजिजू ने अहमदाबाद में RSS की पत्रिका पांचजन्य (RSS magazine Panchjanya) की तरफ से आयोजित कार्यक्रम ‘साबरमति संवाद’ में कही। रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System) भी राजनीति से अछूता नहीं है। देश में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव लाने की जरूरत है।

जज न्याय देने की बजाय दूसरे कामों में बिजी

रिजिजू ने कहा कि संविधान के मुताबिक जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है, लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System) शुरू कर दिया। दुनियाभर में कहीं भी जज दूसरे जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं। जजों का मुख्य काम है न्याय देना, लेकिन मैंने नोटिस किया है कि आधे से ज्यादा समय जज दूसरे जजों की नियुक्ति के बारे में फैसले ले रहे होते हैं। इससे ‘न्याय देने’ का उनका मुख्य काम प्रभावित होता है।

रिजिजू ने कहा कि संविधान सबसे पवित्र दस्तावेज है। इसके तीन स्तंभ विधानमंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं । मुझे लगता है कि विधानमंडल और कार्यपालिका अपने कर्तव्य को लेकर बंधे हुए हैं और न्यायपालिका उन्हें बेहतर बनाने का काम करती है, लेकिन परेशानी की बात यह है कि जब न्यायपालिका अपने कर्तव्य से भटक जाती है तो उसे सुधारने का कोई रास्ता नहीं है।

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रिजिजू ने कहा कि भारत में गणतंत्र जीवंत है और कई बार इसमें तुष्टिकरण की राजनीति भी देखी जा सकती है। भाजपा सरकार ने न्यायपालिका को कभी कमतर नहीं समझा और न कभी इसे चैलेंज करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि हम ऐसे काम नहीं करते हैं। अब अगर हम न्यायपालिका को नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम उठाते हैं, तो यही लोग कहेंगे कि हम न्यायपालिका को कंट्रोल या प्रभावित करना चाहते हैं या जजों की नियुक्ति में दखल देना चाहते हैं।’

रिजिजू ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Former Prime Minister Indira Gandhi) के कार्यकाल के दौरान तीन वरिष्ठ जजों को हटाकर अगले जज को CJI बनाया गया था। मोदी सरकार (Modi Government)ऐसे कामों में दखल नहीं देती है।

रिजिजू ने न्यायपालिका के अंतर्गत एक सेल्फ-रेगुलेटरी मैकेनिज्म (Self-Regulatory Mechanism) की मांग की है, ताकि जजों के तौर-तरीकों को नियंत्रित किया जा सके। रिजिजू ने कहा कि मैंने कई मौकों पर देखा है कि कई जज बिना जमीनी हकीकत जाने अपनी ड्यूटी की सीमा से बाहर जाकर एग्जीक्यूटिव फंक्शन करने की कोशिश करते हैं।

जब न्यायपालिका अपनी सीमा के बाहर जाती है तो जज वास्तविक समस्याओं और आर्थिक हालात से अनजान रहते हैं। बेहतर होगा कि जज अपनी-अपनी ड्यूटी पर ध्यान दें, वर्ना लोगों को ऐसा लग सकता है कि हम कार्यपालिका में एक्टिविज्म कर रहे हैं।

रिजिजू ने कहा कि चाहे सांसद हो या जज, सभी के पास विशेष अधिकार हैं। संसद में कोड ऑफ एथिक्स (Code of Ethics ) है, लेकिन न्यायपालिका में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। जजों के आचरण को बनाए रखने के लिए न्यायपालिका के तहत ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।

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उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया के दौर में जब कोर्ट की कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम किया जाएगा तो यह स्वाभाविक है कि लोग जजों को जज करेंगे। मैं न्यायपालिका को ऑर्डर नहीं दे रहा हूं, मैं सिर्फ उन्हें चेतावनी देना चाहता हूं कि न्यायपालिका भी डेमोक्रेसी का हिस्सा है, लोग उन्हें देख रहे हैं इसलिए उनका व्यवहार सही होना चाहिए।

1993 तक जजों की नियुक्ति सरकार करती थी। इसके लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) से सलाह ली जाती थी। उस समय तक देश में विशिष्ट जज हुआ करते थे। 1993 के बाद सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने को दखलंदाजी कहा जाने लगा। किसी और फील्ड में सलाह देने को दखलंदाजी करना नहीं कहा जाता है, सिवाय न्यायपालिका के।

1993 से पहले जजों की नियुक्ति में किसी जज का कोई हाथ नहीं होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है इसलिए न्यायपालिका पर सवाल भी उठाए जाने लगे हैं। रिजिजू ने कहा कि ‘भारत की न्यायपालिका आज भी 200 साल के ब्रिटिश राज के प्रभाव से बाहर नहीं आ सकी है। उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में CJI से बात करूंगा कि हमें ब्रिटिश ड्रेस कोड (British Dress Code) को फॉलो करते रहना है या अपने देश के मौसम और संस्कृति के मुताबिक पहनावा बदल लेना चाहिए।’

सुप्रीम कोर्ट की जिद के चलते वापस लाया गया कॉलेजियम सिस्टम

रिजिजू बोले कि 2014 में NDA सरकार नेशनल ज्युडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) एक्ट लेकर आई। सरकार को लगा था कि इससे जजों के अपॉइंटमेंट के तरीके में बदलाव लाया जा सकेगा। NJAC एक प्रस्तावित संस्था थी, जो ऊपरी न्यायपालिका में जजों के अपॉइंटमेंट और ट्रांसफर के लिए जिम्मेदार होती।

NJAC एक्ट और कॉन्स्टिट्युशनल अमेंडमेंट एक्ट (Constitutional Amendment Act) 13 अप्रैल, 2015 को लागू हुआ था, लेकिन शीर्ष कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को NJAC एक्ट को निरस्त कर दिया। इस फैसले के बाद जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System)को दोबारा ले आया गया।

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