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Afghanistan Crisis: तालिबानियों के लिए बड़ी चुनौती है नॉर्दन अलायंस के अहमद शाह मसूद का गढ़ ”पंजशीर घाटी”

फगानिस्तान (Afghanistan)  में काबुल (Kabul)  सहित देश के अधिकतर हिस्सों पर तालिबान (Taliban) का कब्जा हो चुका है। इसके बावजूद कई ऐसे इलाके हैं जहां के लोग इस खूंखार आतंकी संगठन के खिलाफ लोग विद्रोह का झंडा उठाए हुए हैं। इन्हीं में से एक है नॉर्दन अलायंस (Northern Alliance) के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद (Former Commander Ahmed Shah Masood) का गढ़ पंजशीर घाटी (Panjshir Valley) ।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान (Afghanistan)  में काबुल (Kabul)  सहित देश के अधिकतर हिस्सों पर तालिबान (Taliban) का कब्जा हो चुका है। इसके बावजूद कई ऐसे इलाके हैं जहां के लोग इस खूंखार आतंकी संगठन के खिलाफ लोग विद्रोह का झंडा उठाए हुए हैं। इन्हीं में से एक है नॉर्दन अलायंस (Northern Alliance) के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद (Former Commander Ahmed Shah Masood) का गढ़ पंजशीर घाटी (Panjshir Valley) । एक तरफ जहां राष्ट्रपति अशरफ गनी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद देश छोड़कर फरार हो गए। वहीं उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Vice President Amrullah Saleh) अपने गढ़ यानी पंजशीर प्रांत (Panjshir Province) चले गए। उनकी एक तस्वीर भी आई है, जिसमें सालेह कई लोगों के साथ बैठकर बातें करते नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि तालिबान के खिलाफ विद्रोह का यहीं से झंडा बुलंद हो सकता है।

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राजधानी काबुल के नजदीक स्थित यह घाटी इतनी खतरनाक है कि 1980 से लेकर 2021 तक इस पर कभी भी तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है।इतना ही नहीं, सोवियत संघ और अमेरिका की सेना ने भी इस इलाके में केवल हवाई हमले ही किए हैं, भौगोलिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने भी कभी कोई जमीनी कार्यवाही नहीं की। पंजशीर प्रांत  की भगौलिक बनावट ऐसी है कि कोई भी सेना इस इलाके में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। चारों तरफ से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस इलाके में बीच में मैदानी भाग है। जहां की भूलभुलैया को समझना हर किसी के लिए आसान नहीं है।

अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह (Vice President Amrullah Saleh) भी इसी इलाके से आते हैं। रविवार को उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा।

मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं।

तालिबान ने जब जुलाई के शुरूआत में अफगानिस्तान के प्रांतो पर हमले शुरू किए तो कई जगह तो उन्हें बिना प्रतिरोध के ही जीत मिल गई। बताया जा रहा है कि अफगान नेशनल आर्मी के जवानों के बीच यह खबर फैलाई गई कि मिलिट्री के शीर्ष कमांडरों ने तालिबान के साथ समझौता कर लिया है। संचार का अभाव और असलहों की कमी से सैनिकों को भी इस पर विश्वास होने लगा। इसी कारण अफगान सेना के जवानों ने तो कई इलाकों में बिना एक भी गोली फायर किए तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया लेकिन पंजशीर एकमात्र ऐसा प्रांत है जो अब भी तालिबान के कब्जे से बाहर है।

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1990 के दशक में अहमद शाह मसूद ने तालिबान के साथ अपने संघर्ष के दौरान बड़ी प्रतिष्ठा हासिल की थी। भारत भी उनकी मदद करता रहा है। कहा जाता है कि एक बार जब अहमद शाह मसूद तालिबान के हमले में बुरी तरह घायल हो गए थे तब भारत ने ही उनको एयरलिफ्ट कर ताजिकिस्तान के फर्कहोर एयरबेस पर इलाज किया था। यह भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस भी है। इसे खासकर नार्दन अलायंस की मदद के लिए ही भारत ने स्थापित किया था।

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