प्रख्यात लेखिका डॉ. नीरजा माधव की सद्य: प्रकाशित पुस्तक 'भारत का सांस्कृतिक स्वभाव' का लोकार्पण करते हुए असम एवं मणिपुर के राज्यपाल श्री लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि जिस तरह से तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना स्वान्त: सुखाय की थी लेकिन कालांतर में रामचरितमानस पूरे देश ही नहीं विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग दिखाने वाला महाकाव्य बन गया।
Release of published book ‘Cultural Nature of India’ : प्रख्यात लेखिका डॉ. नीरजा माधव की सद्य: प्रकाशित पुस्तक ‘भारत का सांस्कृतिक स्वभाव’ का लोकार्पण करते हुए असम एवं मणिपुर के राज्यपाल श्री लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि जिस तरह से तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना स्वान्त: सुखाय की थी लेकिन कालांतर में रामचरितमानस पूरे देश ही नहीं विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग दिखाने वाला महाकाव्य बन गया। इसी तरह से नीरजा माधव ने भी अपनी संतुष्टि के लिए और भारतबोध की भावना के साथ इस पुस्तक की रचना की है, लेकिन मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक पूरे राष्ट्र के लिए और समाज के लिए संतुष्टि प्रदान करने वाली बनेगा। वे यहां वाराणसी के कमिश्नरी सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे। कार्यक्रम में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो.जीसी त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री डा. दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’, भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी, उप्र विधान परिषद के सदस्य डा.धर्मेंद्र राय, जम्मू दीप बौद्ध मंदिर के विहाराधिपति डा.सिरी सुमेध थेरो भी उपस्थित रहे।
“भारत का सांस्कृतिक स्वभाव”
राज्यपाल श्री आचार्य ने आगे कहा कि हाल के वर्षों में भारत में एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर चल रही है। अपने अतीत से लोग फिर से परिचित होना चाह रहे हैं। नीरजा माधव की यह कृति भारत की सांस्कृतिक विरासत से लोगों का पुनः परिचय कराने का एक सशक्त आधार बनेगी। उन्होंने कहा कि भारत को जानने की जिज्ञासा रखने वालों के लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जो लोग दूर दराज से भारत को समझना चाहते हैं , उसकी सांस्कृतिक विरासत से परिचित होना चाहते हैं, उनके लिए “भारत का सांस्कृतिक स्वभाव” पुस्तक एक आवश्यक पुस्तक है।
ग्रन्थ साहित्य और साहित्यकार के धर्म का प्रतिनिधित्व करता है
अपने अध्यक्षीय संबोधन में बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जी .सी. त्रिपाठी ने कहा कि जब किसी भूखंड पर जीव सृष्टि का निर्माण होता है तो उसे देश की संज्ञा मिलती है। जब वह जीव सृष्टि अपने साथ एक दर्शन, दृष्टि, विचार और मूल्यों के साथ कुछ सिद्धांतों और परंपराओं को अंगीकार करता है तब उसे राष्ट्र की संज्ञा मिलती है। नीरजा माधव ने अपने अथक प्रयास से भारत की संस्कृति और उसके स्वभाव को ,भारत ने अपनी जीवन पद्धति, रीति रिवाज, व्यवहार, परंपरा और त्योहार आदि के माध्यम से अनादि काल से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कैसे कायम रखा, इस पर महान कार्य किया है। यह ग्रन्थ साहित्य और साहित्यकार के धर्म का प्रतिनिधित्व करता है।
समाज को जोड़ने वाले तथा भारत बोध कराने वाले साहित्य की आवश्यकता
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य का मूल उद्देश्य ही लोकमंगल है। पिछले कुछ वर्षों में भारत अपनी जड़ों की तरफ वापसी कर रहा है। यह विचारों की घर वापसी का समय है ।सालों साल तक चले समाजतोड़क साहित्यिक अभियानों के बजाय अब समाज को जोड़ने वाले तथा भारत बोध कराने वाले साहित्य की आवश्यकता है। नीरजा माधव जी की यह किताब भारत को समझने की कुंजी है ।इससे भारत विकसित भारत बनेगा और अपने सपनों में रंग भरेगा।
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की त्रासदी
उप्र सरकार में आयुष मंत्री श्री दयाशंकर मिश्र “दयालु “ने अपने गंभीर और विचारपरक उद्बोधन में कहा कि नीरजा जी की यह पुस्तक काशी से कश्मीर तक की और कन्याकुमारी से काशी तक की यात्रा करवाती है । इस पुस्तक के अनुक्रम को देखने मात्र से पता चल जाता है कि कोई भी विषय छूटा नहीं है जो भारतीय संस्कृति को समझने के लिए आवश्यक है। यहां तक कि धारा 370 या कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की त्रासदी को भी नीरजा माधव ने बहुत ही संवेदना के साथ उकेरा है । विधान परिषद सदस्य डॉ. धर्मेंद्र राय ने नीरजा माधव की इसी कृति को भारतीय साहित्य के लिए एक मील का पत्थर बताया।
भारत की भावना ही वसुधैव कुटुंबकम की है
अपने लेखकीय उद्बोधन में साहित्यकार नीरजा माधव ने कहा कि भारतीय संस्कृति गंगा की तरह पवित्र और हिमालय की तरह बहुत विराट है लेकिन जैसे गंगा का जल हथेली में लेकर पान करते ही पूरी गंगा हमारे भीतर उतर जाती है इसी तरह से भारतीय संस्कृति की झलक इस पुस्तक से मिल जाएगी। भारतीय संस्कृति से संबंध जुड़ने का तात्पर्य ही है कि पूरी धरती के उमंग से संबंध जुड़ना और आकाश के मंगल गान से जुड़ जाना। यह पुस्तक राष्ट्र से उसी तरह जुड़ने का प्रयास है। डॉ . पद्मनाभ त्रिवेदी ने आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की भावना ही वसुधैव कुटुंबकम की है और पूरे विश्व को उसने सर्वे भवंतु सुखिनः का संदेश दिया है।
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित प्राचार्य डॉ बेनी माधव ने किया और धन्यवाद ज्ञापन जम्बू द्वीप बौद्ध मंदिर के अध्यक्ष डॉ के सिरी सुमेध थेरो ने आशीर्वचन के रूप में दिया। कार्यक्रम में इस पुस्तक के प्रकाशक जितेंद्र पात्रो तथा शब्द संयोजक अनुराग श्रीवास्तव को राज्यपाल महोदय के हाथों सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम में आचार्य संतोष मिश्रा, प्रो अरविंद जोशी, महाबोधि सोसाइटी सारनाथ के सदस्य श्री संदीप सिंह , प्रो विंध्याचल पांडेय,आलोक सैनी,अनीता मोहन, बादल, शुभम, शिवम,आकाश, पंकज, मनोज श्रीवास्तव, माधवी तिवारी, नरेंद्र मिश्रा,प्रो अशोक सिंह,हिमांशु उपाध्याय, दीपेश चौधरी, नगीना यादव, महेंन्द्र प्रताप सिंह, एसपी सिंह, कुहू माधव, केतन आदि उपस्थित थे।