HBE Ads
  1. हिन्दी समाचार
  2. तकनीक
  3. Chandrayaan-3 Mission Successful : भारत की ‘चंद्रविजय’, ISRO ने चांद पर लहराया तिरंगा

Chandrayaan-3 Mission Successful : भारत की ‘चंद्रविजय’, ISRO ने चांद पर लहराया तिरंगा

ISRO ने चांद पर भारत का परचम लहरा दिया है। अब बच्चे सिर्फ चंदा मामा नहीं बुलाएंगे। चांद की तरफ देख कर अपने भविष्य के सपने को पूरा करेंगे। करवा चौथ की छन्नी से सिर्फ चांद नहीं बल्कि देश की बुलंदी भी दिखेगी। Chandrayaan-3 ने चांद की सतह पर अपने कदम रख दिए हैं।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। ISRO ने चांद पर भारत का परचम लहरा दिया है। अब बच्चे सिर्फ चंदा मामा नहीं बुलाएंगे। चांद की तरफ देख कर अपने भविष्य के सपने को पूरा करेंगे। करवा चौथ की छन्नी से सिर्फ चांद नहीं बल्कि देश की बुलंदी भी दिखेगी। Chandrayaan-3 ने चांद की सतह पर अपने कदम रख दिए हैं।

पढ़ें :- इसरो ने PSLV-C59/PROBA-3 मिशन किया लॉन्च, सूर्य की गर्मी को लेकर करेगा स्टडी

Chandrayaan-3 ने चांद की सतह पर सफल लैंडिंग कर ली है। इसके साथ ही यह सफलता हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन चुका है। 140 करोड़ लोगों की प्रार्थना और इसरो के साढ़े 16 हजार वैज्ञानिकों की चार साल की मेहनत रंग ले लाई। अब पूरी दुनिया ही नहीं चांद भी भारत की मुठ्ठी में है।

चार साल से इसरो के साढ़े 16 हजार वैज्ञानिक जो मेहनत कर रहे थे, वो पूरी हो चुकी है। भारत का नाम अब दुनिया के उन चार देशों में जुड़ गया है, जो सॉफ्ट लैंडिंग में एक्सपर्ट हैं। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के पीछे वैज्ञानिकों की मेहनत के साथ-साथ करीब 140 करोड़ लोगों की प्रार्थना भी काम कर गई।

जानें कैसे हुई चंद्रयान-3 की लैंडिंग?

– विक्रम लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू की। अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगे। यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक।

पढ़ें :- ISRO का Proba-3 मिशन का प्रक्षेपण 5 दिसंबर को शाम 4:12 बजे होगा

– 7.4 km की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड थी। अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर था।

– 6.8 km की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकेंड हो गई। अगला लेवल 800 मीटर था।

– 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजने लगे।

– 150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकेंड थी। यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच।

– 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकेंड थी। यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच।

पढ़ें :- ISRO और SpaceX की साझेदारी कामयाब, भारत की सबसे एडवांस कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-N2 लॉन्च

– 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड थी।

– चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड थी।

विक्रम लैंडर पर चार पेलोड्स क्या काम करेंगे?

1. रंभा (RAMBHA) यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा।

2. चास्टे (ChaSTE) यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा।

3. इल्सा (ILSA) यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा।

पढ़ें :- एलन मस्क के 'ट्रंप कार्ड' से भारत में आज आधी रात बाद बदल जाएगी इंटरनेट-ब्रॉडबैंड की दुनिया, ISRO व SpaceX लांच करेंगे GSAT-N2

4. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA) यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा।

प्रज्ञान रोवर पर दो पेलोड्स हैं, वो क्या करेंगे?

1. लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (Laser Induced Breakdown Spectroscope – LIBS)। यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा। साथ ही खनिजों की खोज करेगा।

2. अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (Alpha Particle X-Ray Spectrometer – APXS). यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा। जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा। इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी।

वैज्ञानिकों के लिए क्या है फायदा

कुल मिलाकर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करेंगे। इससे इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य की स्टडी के लिए जानकारी मिलेगी। रिसर्च करने में आसानी होगी। ये तो हो गई वैज्ञानिकों के लिए फायदे की बात।

देश को क्या फायदा होगा

पढ़ें :- Good News : ISRO चीफ ने मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान लांचिंग की तारीख की फिक्स, चांद पर इंसान कब भेजेगा भारत? यहां जानें सब कुछ

दुनिया में अब तक चांद पर सिर्फ तीन देश सफलतापूर्वक उतर पाए हैं। अमेरिका, रूस (तब सोवियत संघ) और चीन। अगर भारत के चंद्रयान-3 को सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलती है, तो भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। दक्षिणी ध्रुव के इलाके में लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा।

ISRO को क्या होगा फायदा ?

इसरो दुनिया में अपने किफायती कॉमर्शियल लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है। अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ चुका है। 104 सैटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है। वह भी एक ही रॉकेट से। चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है। उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी। मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है। चंद्रयान-3 की सफलता इसरो का नाम दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेसियों में शामिल कर देगी।

आम आदमी को होगा ये फायदा

चंद्रयान और मंगलयान जैसे स्पेसक्राफ्ट्स में लगे पेलोड्स यानी यंत्रों का इस्तेमाल बाद में मौसम और संचार संबंधी सैटेलाइट्स में होता है। रक्षा संबंधी सैटेलाइट्स में होता है। नक्शा बनाने वाले सैटेलाइट्स में होता है। इन यंत्रों से देश में मौजूद लोगों की भलाई का काम होता है। संचार व्यवस्थाएं विकसित करने में मदद मिलती है। निगरानी आसान हो जाती है।

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...