यूपी की राजधानी लखनऊ में एमिटी यूनिवर्सिटी मल्हौर कैम्पस के पास रहने वाले रमेश चन्द्र ने अपने जीवन ध्येय पक्षियों की सेवा करने का ही बना लिया है। रमेश चन्द्र प्रतिदिन सुबह अपने घर से शहीदपथ सिर्फ काकभुशुण्डि (Kakabhushundi) सहित अन्य पक्षियों को दाना खिलाने 6 बजे आ जाते हैं।
लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ में एमिटी यूनिवर्सिटी मल्हौर कैम्पस के पास रहने वाले रमेश चन्द्र ने अपने जीवन ध्येय पक्षियों की सेवा करने का ही बना लिया है। रमेश चन्द्र प्रतिदिन सुबह अपने घर से शहीदपथ सिर्फ काकभुशुण्डि (Kakabhushundi) सहित अन्य पक्षियों को दाना खिलाने 6 बजे आ जाते हैं। अब आप सोंच सकते हैं कि इस भीषण ठंड में जहां लोग घरों दुबके सर्द मौसम का मजा ले रहे हैं। तो वहीं रमेश चंद्र शहीद पथ पर घने कोहरे में आकर पक्षियों को दाना चुगाते हैं, ऐसे में आप समझ सकते हैं, यह कितने खतरे का काम है। रमेश चंद्र का कहना है की डेली इसी टाइम पर सारे पक्षी आते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा कार्य कर हम अपने जीवन को धन्य मान रहे हैं।
रामचरितमानस का एक पात्र हैं काकभुशुण्डि
धार्मिक शास्त्रों में काकभुशुण्डि पात्र के बारे में बताया गया है। काकभुशुण्डि रामचरितमानस का एक पात्र हैं । तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में बताया है कि काकभुशुण्डि रामभक्त थे। शास्त्रों में बताया गया है कि काकभुशुण्डि जी का प्रथम जन्म शुद्र के रूप में अयोध्या पुरी में हुआ था। सबसे पहले श्री राम की कथा भगवान शंकर ने मां पार्वती को कथा सुनाई थी। इस कथा को एक कौवे ने सुन लिया था। शास्त्रों के अनुसार काकभुशुण्डि को पहले जन्म में भगवान शंकर द्वारा सुना कथा पूरी याद थी। उन्होंने ये कथा अपने शिष्य को सुनाई थी और इसी तरह राम कथा का प्रचार प्रसार हुआ था। भगवान शंकर के मुख से निकली श्री राम की इस कथा को अध्यात्म रामायण के नाम से जाना जाता है। बता दें कि लोमश ऋषि के शाप से काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। शाप के बाद लोमश ऋषि को पश्चाताप हुआ और उन्होंने कौवे को शाप से मुक्त करने के लिए राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। काकभुशुण्डि ने कौवे के रूप में ही अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया।