MAAsterG ने कहा कि भारती ने हमें दिखाया कि चेतना जाग्रत हो जाने पर शरीर की ज्वालाएं भी उसे जला नहीं सकतीं. 70 प्रतिशत शरीर जल जाने के बावजूद वह हसती रही और मौत से पहले हॉस्पिटल में डांस कर मौज मस्ती करती रही. यही है ‘आर्ट ऑफ डाइंग हैं जब मृत्यु भी प्रसाद बन जाती है.
मुरादाबाद :- मुरादाबाद में आज एक विशेष आध्यात्मिक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें ‘आर्ट ऑफ डाइंग’ अर्थात मृत्यु को स्वीकारने की कला पर गहन चिंतन हुआ. इस सभा का भावनात्मक केंद्र भारती रहीं जिनका जीवन ही नहीं बल्कि मृत्यु भी एक संदेश बनकर अशोक सभा में उपस्थित लोगों के हृदय को स्पंदित कर गई. सभा की शुरुआत मौन ध्यान और भजन ‘आनंद आयो रे’ से हुई. वही भजन जिसे भारती ने अपनी अंतिम सांसों तक गाया था. वातावरण में शांति, दिव्यता और एक अद्भुत आत्मिक स्पंदन था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मृत्यु स्वयं अपनी परिभाषा बदलने आई हो.
“मैं शरीर नहीं हूं” भारती की अंतिम चेतना ने किया प्रभावित:-
इस अवसर पर विगत 18 वर्षों से आध्यात्मिक जागृति और ‘वें ऑफ लिविंग टू आर्ट ऑफ डाइंग’ का संदेश जन-जन तक पहुंचा रहे. MAAsterG ने कहा कि भारती ने हमें दिखाया कि चेतना जाग्रत हो जाने पर शरीर की ज्वालाएं भी उसे जला नहीं सकतीं. 70 प्रतिशत शरीर जल जाने के बावजूद वह हसती रही और मौत से पहले हॉस्पिटल में डांस कर मौज मस्ती करती रही. यही है ‘आर्ट ऑफ डाइंग हैं जब मृत्यु भी प्रसाद बन जाती है. उन्होंने आगे कहा, अद्वैत अवस्था वह है जहां दूसरा कुछ नहीं बचता, जहां दर्द भी बाहर रह जाता है. भारती ने स्थितप्रज्ञ होकर परमात्मा में लीन अवस्था को प्राप्त किया. उसने जलते शरीर में भी कहा ‘मैं शरीर नहीं हूं यही सच्ची मुक्ति है. ‘अशोक रहना तेरा धर्म है’ गीता संदेश की प्रतिध्वनि सभा में ‘अशोक रहना तेरा धर्म है’ की पंक्तियों को दोहराया गया, जो श्रीमद्भगवद्गीता के संदेश “न जन्म है, न मृत्यु है” की गूंज को जीवंत करती रहीं. उपस्थित शिष्यों ने कहा कि भारती का जीवन और मृत्यु, दोनों ही मिशन 80 करोड़ लोगों तक संदेश पहुंचना हैं कि हर व्यक्ति के भीतर आलोक (प्रकाश) है, जिसे शब्दों से नहीं, अनुभव से जाना जा सकता है.
“ मेरा से मुक्ति ही भगवान के स्वरूप की पहचान” MAAsterG:-
सभा के अंत में MAAsterG ने कहा कि “जब हम ‘मेरा’ से मुक्त होते हैं, तब हम भगवान के स्वरूप को पहचानते हैं. यही धर्म की परिपूर्णता है, जो भारती के भीतर हुआ, यही यात्रा हर मनुष्य की है. भय से प्रेम तक, शरीर से असीम चेतना तक, मृत्यु से अशोक (दुखरहित) होने तक शांति, प्रेम और जागृति का संदेश छोड़ गई भारती. इस आध्यात्मिक श्रद्धांजलि सभा ने मात्र एक व्यक्ति को याद नहीं किया, बल्कि मृत्यु को नई दृष्टि से देखने का मार्ग प्रशस्त किया. भारती का जीवन एक प्रेरणा बना और मृत्यु एक जीवंत संदेश कि जब चेतना प्रखर होती है, तब मृत्यु अंत नहीं रूपांतरण होती है.
सुशील कुमार सिंह
मुरादाबाद