सनातन धर्म भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा की जाती है। हर वर्ष की भॉती इस वर्ष भी 07 जुलाई के दिन पुरी में भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाएगी। बता दें कि इस भव्य यात्रा के लिए रथ निर्माण कार्य शुरू हो चुका है, जिसमें 320 कारीगर जुटे हुए हैं।
Jagannath Rath Yatra 2024 : सनातन धर्म भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा की जाती है। हर वर्ष की भॉती इस वर्ष भी 07 जुलाई के दिन पुरी में भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाएगी। बता दें कि इस भव्य यात्रा के लिए रथ निर्माण कार्य शुरू हो चुका है, जिसमें 320 कारीगर जुटे हुए हैं। पैराणिक कथाओं के अनुसार , ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को विश्वभर में ख्याति प्राप्त है। जगन्नाथ रथ यात्रा में लाखों भक्त शामिल होते है। यह कई दिनों तक चलने वाला उत्सव है। धूमधाम के साथ श्रद्धालु रथ यात्रा को अविस्मरणीय बना देते है।
बता दें कि इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र तीन अलग-अलग रथों पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं। इस वर्ष होने वाले भव्य रथ यात्रा के लिए रथों का निर्माण कार्य 10 मई से शुरू हो चुका है, जिसमें 320 कारीगर प्रतिदिन 14 घंटे इस कार्य में जुटे हुए हैं।
रथों के निर्माण में जुटे सभी कारीगरों को कड़े नियमों का पालन करना होता है। बता दें कि 35 से 40 डिग्री की भीषण गर्मी में भी सभी कारीगर 12 से 14 घंटे रथ निर्माण कार्य जुटे हैं। साथ ही रथ यात्रा की मर्यादा और अटूट श्रद्धा बनाए रखने के लिए सभी कारीगर 10 जुलाई तक केवल एक बार ही भोजन ग्रहण करेंगे। साथ ही इस दौरान प्याज-लहसुन का सेवन वर्जित है। यह सभी इस कठिन दिनचर्या का पालन इसलिए करते हैं ताकि थकान, बीमारी दूर रहे।
800 साल से 20 इंच की ‘जादू की छड़ी’ से बन रहा रथ
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदी घोष या गरुड़ध्वज, उनके बड़े भाई बलभद्र जी के रथ का नाम तालध्वज और बहन सुभद्रा के रथ को दर्प दलन कहते हैं। इन्हें लकड़ी के 812 टुकड़ों से बनाया जा रहा है। नंदीघोष रथ के मुख्य विश्वकर्मा विजय महापात्र बताते हैं, तीनों रथ अत्याधुनिक औजार से नहीं, बल्कि 20 इंच के लकड़ी के डंडे से नाप लेकर बनते हैं। यह 800 साल पुरानी परंपरा है। इस डंडे में 3 अंगुली, 4 अंगुली, आधा अंगुली के चिह्न हैं। दर्प दलन रथ के मुख्य विश्वकर्मा कृष्ण सी लकड़ी को रथ निर्माण के लिए आई लकड़ियों के ऊपर रखकर नाप लेते हैं। पहिया, ध्वज, सीढ़ियां, दीवारों की लकड़ी के नाप अंगुलियों से तय हैं। हम इसे जादू की छड़ी कहते हैं, क्योंकि इससे आज तक एक इंच भी इधरं से उधर नहीं हुआ।