मोदी सरकार (Modi Government) जब से देश की सत्ता में आई है। तब से पूंजीपतियों व कॉर्पोरेट घरानों द्वारा हर साल बैंकों को करोड़ों चूना लगा जा रहा है। औसतन हर साल सवा 2 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के कर्ज को बैंकों द्वारा राइट-ऑफ (बट्टे खाते) किया जाता है। केंद्र की एनडीए सरकार ने पिछले नौ सालों में करीब 18 लाख करोड़ रुपये लोन माफ किए हैं, जो कि यूपीए सरकार की तुलना में 5 गुना ज़्यादा है।
लखनऊ। मोदी सरकार (Modi Government) जब से देश की सत्ता में आई है। तब से पूंजीपतियों व कॉर्पोरेट घरानों द्वारा हर साल बैंकों को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। औसतन हर साल सवा 2 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक के कर्ज को बैंकों द्वारा राइट-ऑफ (बट्टे खाते) किया जाता है। केंद्र की एनडीए सरकार ने पिछले नौ सालों में करीब 18 लाख करोड़ रुपये लोन माफ किए हैं, जो कि यूपीए सरकार की तुलना में 5 गुना ज़्यादा है। इसका खुलासा आरटीआई (RTI) में हुआ है। इससे कहीं न कहीं बैंकों की हालात पतली होती रही है। साथ ही आरटीआई (RTI) में यह भी पता चला है कि साल 2004 से 2014 तक केंद्र की यूपीए सरकार ने 2.22 लाख करोड़ रुपये के लोन माफ किए थे, यानी मोदी सरकार (Modi Government) में बैंक लोन 5 गुना से ज्यादा राइट ऑफ हुए हैं।
सूत्र बताते हैं कि पूंजीपतियों व कॉर्पोरेट घरानों का हर साल करोड़ों रुपये कर्ज माफी के पीछे मोदी सरकार बड़ा खेल कर रही है। इसके एवज में चुनावों के दौरान देश में सत्तारूढ़ पार्टी (Modi Government) पूंजीपतियों व कॉर्पोरेट घरानों ने अच्छी खासी रकम अपरोक्ष रूप से वसूलती है। ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्षी पार्टियां चुनावी मैदान में सत्तारूढ़ दल के धनबल के आगे कहां टिकते पाएंगे? ऐसे में देश में चुनाव प्रक्रिया बेइमानी ही साबित होगी।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पिछले तीन वित्तवर्षों में 3.66 लाख करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज माफ कर दिया। आरटीआई (RTI) के जरिए प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि इन बैंकों ने इस अवधि के दौरान केवल 1.9 लाख करोड़ रुपये की वसूली की। वित्त मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि पिछले पांच वर्षों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) ने लगभग 10.6 लाख करोड़ रुपये माफ कर दिए, जिनमें से लगभग आधे ऋण बड़े उद्योगों और सेवा क्षेत्र को दिए गए।
2020 से 2023 के बीच 3.66 लाख करोड़ का कर्ज माफ
वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड (Minister of State for Finance Bhagwat Karad) ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि 2020-23 में बैंकों द्वारा कुल 3.66 लाख करोड़ रुपये के ऋण माफ किए गए, जिनमें से 52.3 प्रतिशत बड़े उद्योगों और सेवाओं से जुड़ा था। आरबीआई के तरफ से प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक खराब ऋणों की वसूली में धीमे रहे हैं। 2022-23 में देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने 24,061 करोड़ रुपये के ऋण माफ किए, जबकि इसकी वसूली केवल 13,024 करोड़ रुपये थी।
बैंक ऑफ बड़ौदा ने इतना कर्ज किया माफ
आंकड़ों के मुताबिक, बैंक ऑफ बड़ौदा ने 17,998 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाल दिए, जबकि इसकी कुल वसूली महज 6,294 करोड़ रुपये रही। केनरा बैंक, 11,919 करोड़ रुपये की कुल ऋण वसूली के साथ एक अपवाद प्रतीत होता है, जो 2022-23 में बट्टे खाते में डाले गए 4,472 करोड़ रुपये के ऋण की राशि से अधिक है। कारर्पोरेट घराने व पूंजीपति देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझे जाने वाले बैंकों को सरकार के संरक्षण में कैसे आसानी से चूना लगा रहे हैं? यह आसानी समझा जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि मोदी सरकार में करीब 18 लाख करोड़ रुपये राइट-ऑफ किये जा चुके हैं।
विलफुल डिफॉल्टर्स का किस्सा
बता दें कि वित्त राज्य मंत्री भागवत कराड (Minister of State for Finance Bhagwat Karad) ने यह जवाब लोकसभा सांसद अब्दुल खालिक, महेश साहू और एम बदरुद्दीन अजमल के द्वारा बैंकों के ऋण माफ किये जाने को लेकर उठाये गये सवाल के जवाब में दी थी। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री कराड ने विलफुल डिफॉल्टर्स के बारे में पूछे गये सवाल के जवाब में कहा कि सेंट्रल रिपोजिटरी ऑफ इंफॉर्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स (CRILC) डेटाबेस के मुताबिक, 31 मार्च 2023 तक कुल 2,623 कर्जदारों को विलफुल डिफॉल्टर्स के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस प्रकार देश के शेड्यूल कमर्शियल बैंकों (SCB) द्वारा कुल 1,96,049 करोड़ रुपये का बकाया विलफुल डिफ़ॉल्ट की श्रेणी में चला गया है।
वित्त राज्य मंत्री ने संसद में बताया कि यह सब रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) के दिशा-निर्देश एवं अनुमोदित नीति के मुताबिक किया जाता है। इसमें अन्य चीजों के साथ-साथ, एनपीए के तहत यदि चार वर्ष पूरे हो जाते हैं तो ऐसी रकम को बैंकों की बैलेंस शीट से हटाने का प्रावधान है। कराड ने बताया कि बैंक अपनी बैलेंस शीट को क्लीन करने, टैक्स लाभ प्राप्त करने एवं आरबीआई के दिशा-निर्देशों एवं अपने बोर्डों द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार पूंजी को अनुकूलित करने के अपने नियमित प्रयोग के हिस्से के तौर पर राइट-ऑफ से पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करते रहते हैं।
वित्त राज्य मंत्री से जब लोकसभा सांसदों अपरूपा पोद्दार व पीआर नटराजन ने स्पष्टीकरण मांगा तो मंत्री का जवाब था कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों को समझौता निपटान की अनुमति दिए जाने के पीछे प्राथमिक विनियामक उद्देश्य यह होता है कि ऋणदाताओं को बिना किसी देरी के पैसा वसूलने के लिए कई रास्ते अपनाने के लिए सक्षम बनाना। इसमें समय के नुकसान के अलावा, अत्यधिक देरी की वजह से परिसंपत्ति मूल्य में गिरावट का खतरा बना रहता है, और नतीजतन अंतिम वसूली में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। इसलिए कुल मिलाकर, सरकार के जवाब से यही समझा जा सकता है कि बैंकों के ऋणों को कॉर्पोरेट और उद्योगपतियों के तरफ से राइट ऑफ किया जाना और विलफुल डिफाल्ट करना एक सामान्य नियम का हिस्सा हैं और ये दाग अच्छे हैं।
मोदी सरकार और नीति आयोग तो सब कुछ चंगा है
उधर देश में सार्वजनिक बैंकों एवं शेड्यूल बैंकों की बैलेंस शीट में भारी मुनाफे में दिखाया जा रहा है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भारत को 30 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाने की हुंकार भर रहे हैं, पूरे देश में भाजपा ने हर प्रदेश में विकसित भारत बनाने के नारों के साथ प्रचार अभियान को बड़े पैमाने पर शुरु कर दिया है। जबकि भारत सरकार के उपर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। मोदी सरकार के 9 वर्षों का लेखा-जोखा करें तो इस दौरान सरकार ने 155 लाख करोड़ रुपये का कर्ज खड़ाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। यह कर्ज 2014 से 2022 के बीच लिया गया है। 2014 से पहले सभी सरकारों के द्वारा 55 लाख करोड़ रुपये कर्ज का बोझ लादा गया था।
फिर सबसे बड़ा सवाल यह भी बनता है कि क्या देश में बड़े पूंजीपति और कॉर्पोरेट घराने वास्तव में इतने गरीब और असहाय हैं कि उन्हें बैंक कर्ज माफ़ी दे दें? वे तो 5 राज्यों में चुनावों के परिणाम देखकर इतने खुश हैं कि पिछले 7 दिनों से देश का शेयर बाजार हर दिन नई-नई ऊंचाइयां छू रहा है। हर दिन लाखों करोड़ रुपये की कमाई बता रही है कि भारतीय कंपनियों की एसेट में दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की हो रही है, लेकिन देश की जनता की गाढ़ी कमाई को कर्ज पर लेकर बाद में खुद को दिवालिया बताकर सारी रकम राइट ऑफ कराने वाले ये कॉर्पोरेट घराने आखिर ऐसा कर पाने की हिम्मत कैसे जुटा रहे हैं?