नक्सलियों को एमपी पुलिस का खौफ है। क्योंकि जैसे ही कोई नक्सली पुलिस को दिखता है वैसे ही उसे गोली मारकर ढेर कर दिया जाता है।
भोपाल। नक्सलियों को एमपी पुलिस का खौफ है। क्योंकि जैसे ही कोई नक्सली पुलिस को दिखता है वैसे ही उसे गोली मारकर ढेर कर दिया जाता है। यही कारण है कि भले ही नक्लवादी छिपने की जगह मध्यप्रदेश में तलाशने आते है लेकिन पुलिस की निगाह से वे बच नहीं पाते है।
पुलिस और सरकार के कड़े रूख का ही यह परिणाम है कि कभी नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित पनाहगार रहा मप्र अब उनके लिए बेहद खतरनाक हो गया है। इसकी वजह है जब भी वे प्रदेश में छिपने आते हैं,पुलिस उन्हें मार गिराती है। यही वजह है कि प्रदेश में नक्सलवादी अपना प्रभाव नहीं बड़ा पा रहे हैं। इस मामले में राज्य सरकार का रुख भी स्पष्ट है कि प्रदेश में हर हाल में नक्सलवाद समाप्त हो। फिलहाल प्रदेश के तीन जिले बालाघाट, मंडला और डिंडोरी में ही कभी-कभी नक्सलवादियों की आवाजाही देखी जाती है।
मार गिराने वाले पुलिसकर्मियों को प्रमोशन देने का प्रावधान
इसे भी समाप्त करने के लिए उच्च स्तर की योजना तैयार की जा चुकी है। इस पर तेजी से अमल करने भी तैयारी पूरी कर ली गई है। इसके साथ ही पुलिसकर्मीयों को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी पुलिस मुख्यालय के उस प्रस्ताव पर सहमत हैं, जिसमें नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराने वाले पुलिसकर्मियों को आउट ऑफ टर्न (ओटी) प्रमोशन देने का प्रावधान किया गया है। यह उन्हें ही मिलेगा जो पुलिसकर्मी नक्सली मुठभेड़ में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पूर्व में नक्सलवाद को लेकर समीक्षा भी कर चुके हैं। इस दौरान उनके द्वारा केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार नक्सल प्रभावित जिलों-बालाघाट, मंडला और डिंडोरी को लेकर केंद्र सरकार के निर्देश अनुसार कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे। बैठक में डीजीपी कैलाश मकवाना, स्पेशल डीजी पंकज श्रीवास्तव समेत वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। हाल में मंडला जिले में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ में दो महिला नक्सलियों को ढेर किया गया, जिन पर 14-14 लाख रुपए का इनाम था। सीएम ने अफसरों से कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2026 तक नक्सलवाद के सफाए की डेडलाइन तय की है और उसी को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करें।