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Viral video: शिक्षा व्यवस्था पर फूटा युवक का गुस्सा, कहा -“जिसके पास जितना अधिक पैसा, वो पा सकता है उतनी बेहतर शिक्षा”

देश का युवा शिक्षा और बेरोजगारी से बुरी तरह त्रस्त है। रोजगार की तलाश में सड़कों पर लाठी खा रहा है तो गरीब के बच्चे शिक्षा के लिए तरस रहे हैं। देश में बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक युवा का वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है।

By प्रिन्सी साहू 
Updated Date

देश का युवा शिक्षा और बेरोजगारी से बुरी तरह त्रस्त है। रोजगार की तलाश में सड़कों पर लाठी खा रहा है तो गरीब के बच्चे शिक्षा के लिए तरस रहे हैं। देश में बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक युवा का वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है।

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वायरल वीडियो में हाथ में चंद किताबें और न्यूजपेपर लिए यह युवा जो भी बातें बोलता नजर आ रहा है लोग इसकी तारीफे करते नहीं थक रहे है। युवक देश की शिक्षा व्यवस्था पर जिस बेबाकी से बोल रहा है वो लोगो को सोचने पर मजबूर कर दे रहा है। ट्रेन में मौजूद किसी शख्स ने इस युवक का वीडियो बना लिया। जो अब खूब वायरल हो रहा है।

वायरल वीडियो में वह युवक कहता हुआ सुनाई दे रहा है कि चाहे राष्ट्रपति का बच्चा हो या मजदूर का हो, सबको मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए।आखिर आप सोचिए कि उस बच्चे की गलती क्या होती है जो एक गरीब घर में पैदा होता है और उसको शिक्षा से वंचित होना पड़ता है। शिक्षा के बीच पैसे की दीवार खड़ी है, जो जितनी ऊंची दीवार लांघ सकता है, उतनी अच्छी शिक्षा हासिल कर सकता है।

युवक कहता है कि ‘2019 का पुराना आंकड़ा है कि हर सौ में से 52 स्कूलों में या तो एक टीचर हैं दो टीचर हैं और उन्हीं टीचर पर जिम्मेदारी डाल दी जाती है कि जनगणना करो, मतगणना करो, पशुगणना करो, तमाम काम करवाए जाते हैं। 2019 के बाद से कितने टीचर रिटायर हुए होंगे लेकिन 2018 के बाद से कोई भर्ती नहीं हुई है। इसीलिए हम मांग उठा रहे हैं कि चाहे राष्ट्रपति का बच्चा हो या किसी मजदूर का हो, सबको एकसमान और निशुल्क शिक्षा मिलनी चाहिए।

रोजगार के मुद्दे पर इस युवक ने कहा, ‘सरकारी सेक्टर हो या प्राइवेट, सबकुछ ठेका-संविदा के हवाले किया जा रहा है। पर्मानेंट नौकरियां घटाई जा रही हैं। इसी रेलवे में पहले 18.5 लाख नौकरियां थीं अब 12 लाख लोग नौकरी कर रहे हैं।

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तमाम पेपर लीक हो चुके हैं, अभी नीट की धांधली में पता चला कि ये पेपर 30-30 लाख में बिका। इस सबको भुगतते हैं आम घरों के लोग जो सालों-साल की मेहनत के बाद सिर्फ हताशा पाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं। विडंबना है कि यह किसी भी नेता के लिए मुद्दा नहीं है।

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