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Zinc deficiency: महिलाओं के लिए कितना जरुरी है जिंक, इसकी कमी से होती हैं ये दिक्कतें

प्रेगनेंसी के दौरान अपने खान पान का खास ध्यान रखने की जरुरत होती है। जिससे चाइल्ड बर्थ में किसी तरह की दिक्कत न हो। शरीर में किसी भी पोषक तत्व की कमी से किसी भी तरह की समस्याएं हो सकती है। जिंक की खुराक प्रेगनेंट महिलाओं के लिए बेहद आवश्यक माना जाता है।

By प्रिन्सी साहू 
Updated Date

Zinc deficiency during pregnancy: प्रेगनेंसी के दौरान अपने खान पान का खास ध्यान रखने की जरुरत होती है। जिससे चाइल्ड बर्थ में किसी तरह की दिक्कत न हो। शरीर में किसी भी पोषक तत्व की कमी से किसी भी तरह की समस्याएं हो सकती है। जिंक की खुराक प्रेगनेंट महिलाओं के लिए बेहद आवश्यक माना जाता है।

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नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन के अनुसार प्रेगनेंसी (pregnancy) में जिंक प्रीटरम बर्थ को थोड़ा कम करने में हेल्प करता है। जिंक तीन सौ से अधिक एंजाइम्स के फंक्शन के लिए जरुरी है। ये इम्यूनिटी को बनाए रखता है और बॉडी के टिश्यूज को रिपेयर करता है। साथ ही शरीर में तमाम पोषक तत्वों को मेटाबोलाइज करने में हेल्प करता है।

चूंकि हमारा शरीर जिंक को अन्य पोषक तत्वों की तरह स्टोर नहीं करता है। इसलिए नियमित अंतराल पर इसका इनटेक करना जरुरी है। डेली जिंक की अच्छी मात्रा वाले फूड का सेवन करना चाहिए। प्रेगनेंसी के समय महिलाओं को दाल, काजू, अमरनाथ, तिल, पनीर और सूरजमुखी के बीजों का सेवन करना चाहिए। प्रेगनेंसी (pregnancy)  के दौरान पर्याप्त मात्रा में जिंक की मात्रा शरीर में होना बेहद जरुरी है।

जिंक के सेवन से गर्भवती महिलाओं का इम्यून पावर बूस्ट होता है। जिससे वे कई तरह के वायरल फीवर से बच सकते हैं। जिंक युक्त आहार लेने से गर्भवती महिला गर्भ में उत्पन्न होने वाले इंफेक्शन से बच सकती है।

इससे गर्भवती महिलाओं का हार्मोंस संतुलित रहता है। जिंक के सेवन से भ्रूण का विकास सही तरीके से होता है। इसके सेलन से शिशु के डीएनए का उत्पादन और फंक्सन सही तरीके से हो सकता है। इसकी कमी से प्रसव, एटोनिक पोस्टपर्टम हैमरेज, हाइपरटेंशन, प्रीटरम लेबर और पोस्ट टर्म प्रेगनेंसी जैसी दिक्कतें हो सकती है।

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प्रेगनेंसी (pregnancy)  के दौरान जिंक की कमी होने पर क्या होती है दिक्कतें

जिंक की कमी से प्रेगनेंट महिलाओं को इम्यून सिस्टम कमजोर होना।
समय से पहले डिलीवरी होने की संभावना।
भ्रूण के सेल्स निर्माण में परेशानी होना।
शिशुओं के विकास में रुकावट होना।
गर्भपात होने का खतरा इत्यादि।
डीएनए का सही से विकसित न होना।

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