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झारखंड का एक किसान स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति के साथ करेंगे भोज, लेडी टार्जन भी होंगी भोज में शामिल

नई दिल्ली। झारखंड के एक गरिब किसान को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति से मिलने का मौका मिला है। मिलने के साथ ही वह राष्ट्रपति के साथ भोज भी करेंगे। अनगड़ा के किसान रामदास बेदिया को यह न्यौता मिला है। वही दूसरी ओर झारखंड की ही पं सिंहभूम की पद्मश्री जमुना टुडू को भी राष्ट्रपति भवन में भोज के लिए बुलाया गया है।

By Satish Singh 
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नई दिल्ली। झारखंड के एक गरिब किसान को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति से मिलने का मौका मिला है। मिलने के साथ ही वह राष्ट्रपति के साथ भोज भी करेंगे। अनगड़ा के किसान रामदास बेदिया को यह न्यौता मिला है। वही दूसरी ओर झारखंड की ही पं सिंहभूम की पद्मश्री जमुना टुडू को भी राष्ट्रपति भवन में भोज के लिए बुलाया गया है। टुडू पेड़ों की कटाई के खिलाफ वे लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं और लोग उन्हें लेडी टार्जन कहते हैं।

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रामदास बुधवार को रांची स्टेशन से राजधानी से रवाना हो गए। अनगड़ा के बीसा गांव के रामदास बेदिया आदिवासी समुदाय से हैं। आजीविका के लिए खेतीबारी करते हैं और इसके बाद मजदूरी। तीन बच्चों के पिता 44 वर्षीय रामदास कहते हैं कि हमने इसकी कल्पना नहीं की थी। कभी सोचा भी नहीं था कि राष्ट्रपति भवन में जाएंगे और भोज में शामिल होंगे। यह मेरे लिए गौरव की बात है। पत्र देने क लिए खुद डाक निरीक्षक सिकंदर प्रधान और समीर कुमार साहू आए थे। डाकपाल बैजनाथ महतो ने आमंत्रण पत्र सौंपा। डरते-डरते पत्र खोला तो आमंत्रण था। मेरे जैसे मामूली आदमी को भोज के लिए बुलावा आया था।

रामदास को काम के लिए मिला आमंत्रण

रामदास को यह आमंत्रण उनके काम के लिए मिला है। उनको प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत आवास का आवंटन हुआ और उन्हें एक लाख बीस हजार की राशि मिली थी। रामदास ने निर्धारित समय से पहले ही महज चार महीने के अंदर ही अपने मकान का निर्माण कार्य पूरा कर लिया। समय से पहले काम पूरा करने के एवज में यह आमंत्रण मिला। हालांकि इस योजना में एक साल का समय लग जाता है, पर रामदास ने चार महीने में पूरा कर दूसरों के लिए एक नसीहत भी दे दी।

राष्ट्रपति से संथाली भाषा में बात करती है टुडू

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पद्मश्री जमुना टुडू राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दीदी ही कहती हैं। उन्होने बताया कि जब भी दिल्ली जाती हूॅं दीदी से जरूर मिलती है। राष्ट्रपति मुर्म से हमेंशा जल, जंगल, जमीन के विषय पर ही बात होती है। हमारी बात—चीत हमेंश संथाली भाषा में ही होती है। उनसे अपने क्षेत्र की समस्याओं को रखती हूं। आज पर्यावरण पर संकट है। पर्यावरण का नुकसान हर मनुष्य का नुकसान है। इससे केवल आदिवासी ही प्रभावित नहीं होंगे। आदिवासी इसे बचाने को लेकर दिन-रात अपनी जान देकर प्रयास करता है। आज हाथियों को देखिए, आए दिन वे रेलवे ट्रैक पर मृत पाए जाते हैं। हाथियों पर भी आज संकट है। माइनिंग से हम सब प्रभावित हो रहे हैं। हमें गर्व है कि भोज के लिए आमंत्रण मिला है साथ ही खुशी भी बहुत है।

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