भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में राष्ट्रपति के संदर्भ (Presidential Reference) में सुनवाई के दौरान भारतीय संविधान की मजबूती और महत्व की सराहना की। उन्होंने पड़ोसी देश नेपाल में चल रहे हिंसक प्रदर्शनों का हवाला देते हुए कहा कि भारत को अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए।
नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में राष्ट्रपति के संदर्भ (Presidential Reference) में सुनवाई के दौरान भारतीय संविधान (Indian Constitution) की मजबूती और महत्व की सराहना की। उन्होंने पड़ोसी देश नेपाल में चल रहे हिंसक प्रदर्शनों का हवाला देते हुए कहा कि भारत को अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संविधान की ताकत और इसकी अहमियत को लेकर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि यह जनता के अधिकारों की रक्षा करता है और लोकतंत्र को मजबूती देता है। सुनवाई के दौरान नेपाल में इस हफ्ते और बांग्लादेश में पिछले साल जुलाई में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों का भी जिक्र किया गया। चीफ जस्टिस बीआर गवई (Chief Justice BR Gavai) ने कहा कि हमारे संविधान में राष्ट्रपति को किसी भी कानून से जुड़े सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से सलाह लेने का अधिकार दिया गया है, जो इसे और मजबूत बनाता है।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई (CJI Gavai) ने टिप्पणी कि हमें अपने संविधान पर गर्व है। हमारे पड़ोसी देशों में क्या हो रहा है, यह हम देख रहे हैं? हमने नेपाल में जो कुछ होते देखा है, वो सभी के सामने है। इस दौरान, जस्टिस विक्रम नाथ ने भी सीजेआई (CJI) के विचारों का समर्थन किया और कहा कि बांग्लादेश में भी तनाव की स्थिति बनी हुई है।
नेपाल में इस सप्ताह हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों (और पिछले वर्ष जुलाई में बांग्लादेश में) का जिक्र बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हुआ, जहां सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 12 अप्रैल के आदेश पर राष्ट्रपति के संदर्भ में सुनवाई हुई। कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) और राज्यपालों के लिए राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित की थी।
दरअसल, सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने आंकड़ों के ज़रिए ये साबित करने की कोशिश कि पिछले 70 सालों में सिर्फ 20 बिल को राज्यपालों की ओर से मंजूरी नहीं दी गई है। 90 फीसदी बिल सिर्फ एक महीने ने मंजूर किए गए।
कोर्ट हालांकि इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि हम आंकड़ों की इस बहस में नहीं जाएंगे। जब दूसरा पक्ष कुछ राज्यों में बिल पेंडिंग का डेटा दे रहा था, तो खुद सरकार की ओर से SG मेहता ने इसका विरोध किया था। लिहाजा आंकड़ों के बजाए वो संवैधानिक पहलुओं पर अपनी बात रखें। बेंच के सदस्य जस्टिस बिक्रम नाथ (Justice Bikram Nath) ने कहा कि राष्ट्र पिछले 75 सालों से लोकतंत्र और संविधान के ज़रिए आगे बढ़ा रहा है। भले ही इस दरम्यान कितने बिल को मंजूरी मिली हो या नामंजूर किया गया हो।