कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार ने अरावली की जो नई परिभाषा दी गई है, वह तमाम विशेषज्ञों की राय के खिलाफ है। साथ ही खतरनाक और विनाशकारी भी है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) के प्रामाणिक आंकड़ों के अनुसार 20 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अरावली पहाड़ियों में से केवल 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं।
नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार ने अरावली की जो नई परिभाषा दी गई है, वह तमाम विशेषज्ञों की राय के खिलाफ है। साथ ही खतरनाक और विनाशकारी भी है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (Forest Survey of India) के प्रामाणिक आंकड़ों के अनुसार 20 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अरावली पहाड़ियों में से केवल 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं। वहीं यदि एफएसआई द्वारा चिन्हित सभी अरावली पहाड़ियों को देखा जाए तो उनमें से एक प्रतिशत भी 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली नहीं है। एफएसआई का स्पष्ट मत है और वह पूरी तरह उचित भी है कि ऊंचाई के आधार पर सीमाएं तय करना संदिग्ध है। ऊँचाई की परवाह किए बिना अरावली की पूरी पर्वतमाला को संरक्षण मिलना चाहिए।
क्षेत्रफल के हिसाब से इसका मतलब यह है कि नई परिभाषा के तहत अरावली का 90 प्रतिशत से कहीं अधिक हिस्सा संरक्षित नहीं होगा और खनन रियल एस्टेट और अन्य गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है, जो पहले से ही बुरी तरह क्षतिग्रस्त इस पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक नुकसान पहुंचाएंगी। यह एक सीधी-सादी सच्चाई है, जिस पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। यह पारिस्थितिक संतुलन पर मोदी सरकार के सुनियोजित हमले का एक और उदाहरण है, जिसमें प्रदूषण मानकों को ढीला करना, पर्यावरण और वन क़ानूनों को कमज़ोर करना, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और पर्यावरणीय शासन से जुड़ी अन्य संस्थाओं को निष्प्रभावी करना शामिल है। पर्यावरणीय चिंताओं के मामले में प्रधानमंत्री के वैश्विक मंचों पर दिए जाने वाले भाषणों और देश के भीतर ज़मीन पर किए जा रहे कामों के बीच कोई तालमेल नहीं दिखाई देता।