सल्तनत काल में सिराजे हिन्द कहा जाने वाला जौनपुर आज बाहुबलियों की भूमि के रूप में जाना जाता है। वर्तमान दौर में यहां लखनऊ से ज्यादा तहजीब और नजाकत देखने को मिलती है। यहां शहर और गांवों के अन्दर आपको बाइक सवारों और गाड़ियों की रफ्तार में भी तहजीब देखने को मिलती है।
जौनपुर। सल्तनत काल में सिराजे हिन्द कहा जाने वाला जौनपुर आज बाहुबलियों की भूमि के रूप में जाना जाता है। वर्तमान दौर में यहां लखनऊ से ज्यादा तहजीब और नजाकत देखने को मिलती है। यहां शहर और गांवों के अन्दर आपको बाइक सवारों और गाड़ियों की रफ्तार में भी तहजीब देखने को मिलती है। अन्य शहरों की अपेक्षा यहां के लोगों के बर्ताव में दूसरों के प्रति सहानुभूति और सहायता अधिक देखने को मिलती है।
वैसे भी जौनुपर देश को बड़े अफसर, डॉक्टर और इंजीनियर की बड़ी तदाद देने में शुमार है। यहां के माधोपट्टी गांव से हर घर से कोई न काई आईएएस, आईपीएस और आईआरएस है। आकर्षक सल्तनतकालीन स्थापत्यकला, प्राकृतिक खूबसरती, ऊपजाऊ जमीन, बिना केमिकल की देशी सब्जियाँ और फल सबका जी ललचाते हैं।
यहां की मिठाइयां इतनी शुद्ध, आकर्षक और स्वादिष्ट हैं कि आप बिना खाये रह नहीं सकते और खाने के बाद यहां की मिठाइयों के दीवाने होने से बच नहीं सकते। यहां के देशी घी में जो खुशबू और स्वाद मिलता है वो आपको दशकों पीछे ले जाता है। यानी मिलावट से दूर खूशबू, स्वाद और स्वास्थ्य की ओर। जौनपुर के चुनावी दौरे पर यह सब देखने और समझने को मिला।
अब बात केंद्रित करते हैं 18वीं लोकसभा के चुनाव पर। उत्तर प्रदेश में चुनाव हो और जाति की चर्चा न हो तो ऐसा तो संभव नहीं। चुनावी पंडितों व राजनीतिक विश्लेषज्ञों के लिए यही तो पंचांग का कार्य करती है। जौनपुर में अभी तक 17 चुनावों में 11 बार क्षत्रियों ने, 4 बार यादवों ने, 2 बार ब्राह्मणों ने जीत दर्ज की है।
यहां सर्वाधिक ब्राह्मण मतदाता हैं। लगभग ढाई लाख के आसपास। फिर दलित मतदाता जो की लगभग 2 लाख 30 हजार के पास हैं। यादवों और मुस्लिमों की आबादी लगभग 4 लाख 50 हजार के पास है। क्षत्रिय यहां पौने दो लाख के आसपास है। सर्ववैश्य भी यहां डेढ़ लाख के आस पास हैं। मौर्य मतदाताओं की संख्या भी यहां एक लाख से अधिक है। सबसे अच्छा यहां दलवाद कम देखने को मिलता है। यहां संख्या में सभी बड़ी जातियां सभी बड़े दलों में अपनी पैठ बनाए हैं। आप जाति देखकर उसके राजनीतिक मत के बारे में कुछ आंक नहीं सकते।
जौनपुर लोकसभा सीट (Jaunpur Lok Sabha Seat) में पांच विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें दो पर सपा, दो पर बीजेपी, व एक सीट पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी निषाद पार्टी से विधायक हैं। सपा का बेसवोट मुस्लिम और यादव यहां सर्वाधिक है तथा मौर्य (कुशवाहा) वोट सवा लाख के आसपास है अबतक यह वोट यहां बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है। किन्तु सपा से सजातीय प्रत्याशी होने के कारण इनका पूरा फायदा सपा लेने जा रही है। सपा नेतृत्व ने यहां से बसपा के पूर्व कद्दावर नेता व अतिपिछड़ों के बड़े नेता जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबूसिंह कुशवाहा को अपनी पार्टी से टिकट देकर एक अच्छी सियासी चाल चली है। जिसका लाभ जौनपुर समेत पूरे प्रदेश में सपा की कई सीटों पर मिलता नजर आया है और आ रहा है। कुशवाहा, शाक्य, मौर्य और सैनी वोट इस बार प्रदेश की सभी सीटों पर सपा के पक्ष में नजर आया है।
यहां बीजेपी का कोर वोटर कहे जाने वाले व्यापारियों का एक बड़ा हिस्सा इस बार इंडिया गठवंधन की ओर पूरा मन बनाये है। शाहगंज, मल्हनी और जौनपुर के कई व्यापारियों ने खुलकर यह बात सामने रखी है। संविधान बचाने को लेकर इंडिया गठबंधन ने जो प्रचार-प्रसार किया उससे बीएसपी का कुछ कोर वोटर भी इंडिया गठवंधन को वोट करने का पूरा मन बना कर रखा है। बहन जी की रैली के बाद बीएसपी के अधिकांश बेस वोट ने बीएसपी में ही जाने का मन बना कर रखा है। किन्तु बहुत से दलित बीजेपी के शासन से खुश नजर आये हैं कि उन्हें राशन, शौचालय, अपना पक्का मकान बनाने में काफी मदद मिली और शासन व्यवस्था भी बसपा सरकार से कम किन्तु अन्य सरकारों से अच्छी रही है। इसलिए ये लोग बीजेपी को वोट करने का मन बनाये हुए हैं।
यहां बीजेपी के प्रत्याशी महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री कृपाशंकर सिंह हैं। इनके खेमे में भी वोटों की एक बड़ी संख्या है। लगभग 6 लाख सवर्ण वोट जो बीजेपी का बेसवोट है, इसके अलावा इन्हें निषाद, राजभर, कुछ दलित व कुछ मुस्लिम वोट भी मिल रहा है। ये वोट धनंजय सिंह के बीजेपी में समर्थन के कारण मिल रहा है तो और भी कई कारण है जिससे ये वोट बीजेपी को ट्रांसफर हो रहा है। मुस्लिम इसलिये की यहां का अधिकांश मुस्लिम मुंबई में काम के सिलिसले से जाता है और कृपाशंकर सिंह यहां जौनपुर व पूरब का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं। यूपी सरकार में ही जौनपुर से बीजेपी के मंत्री गिरीशचन्द्र यादव हैं जिनके कारण उनके क्षेत्र का यादव वोटर उनके साथ लगा हुआ है। वो बता रहे हैं कि उनके विधानसभा सीट से जितना ज्यादा वोट बीजेपी प्रत्याशी को मिलेगा उतना कद उनका पार्टी में बढ़ेगा। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की जौनपुर की मड़ियाहु में 23 मई की रैली का गिरीश चन्द्र के समर्थकों पर कितना प्रभाव पड़ता है यह तो 4 जून को जनता के समक्ष होगा।
बीएसपी से प्रत्याशी के तौर पर श्यामसिंह यादव हैं जो जौनपुर से निवर्तमान सांसद हैं। क्षेत्र में लोग बोलते हैं कि सांसद 5 साल तक लोगों को दिखाई नहीं दिये। वहीं श्यामसिंह ने अपने कार्यों की लम्बी फेहरिस्त बना कर रखी है जिसे वो जनता के समक्ष रखते हैं। बसपा प्रत्याशी भी खुद को लड़ाई में मान रहे हैं। यदि मौसम ने करवट ली यादव और दलित एकजुट होकर वोट करता है तो परिणाम अप्रत्याशित भी हो सकते हैं। किन्तु यादवों का 90 प्रतिशत वोट यहां अब एक ही चेहरा देख रहे हैं अपने बड़े नेता सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का। ऐसे में जौनपुर में सीधी लड़ाई बीजेपी और सपा में आकर रुकती है। अब यहां के जनता के मन में 25 मई तक क्या उतार-चढ़ाव आते हैं वो तो परिणाम के बाद गहरी समीक्षा से ही पता चल सकता है।
जौनपुर में धनंजय फैक्टर कितना प्रभावी?
बाहुबलियों की इस जमीन में अभी भी कुछ बाहुबली बचे हैं जिनका जनता में काफी सम्मान है। यह सम्मान हो भी क्यों नहीं! यहां के बाहुबली भी जनहितों के लिए आगे रहते हैं। वर्चस्व की लड़ाई में भले वो बाहुबल दिखाते हों लेकिन जनता का कोई नुकसान नहीं करते। दो-तीन दशकों से जौनपुर से एक सर्वप्रसिद्ध नाम है धनंजय सिंह का। जौनपुर जिले में ही नहीं आसपास के जिलों में भी धनंजय सिंह का नाम बहुत से लोग बड़े अदब से लेते हैं। हाँ! कुछ लोग जरूर इस नाम से खुश नजर नहीं आये।
मीडिया में आज भी जौनपुर को धनंजय सिंह का पर्याय बनाकर दिखाया जाता है। जबकि अब पहले की अपेक्षा उनके प्रभाव में जिले में कुछ कमी सी देखने और सुनने में आयी है। जौनपुर में उनके गढ़ से सपा विधायक लकी यादव के वायरल वीडियो में उन्होंने बताया कि धनंजय के गढ़ मल्हनी विधानसभा से उनकी जीत सबकुछ स्पष्ट कर रही है। किसका कितना प्रभाव क्षेत्र में बचा है। जौनपुर का नाम आये और धनंजय सिहं के बारे में जिक्र न हो तो आप जौनपुर के बारे में अधूरा ही बता रहे हैं। धनंजय सिंह के समर्थकों में सभी जाति और धर्म के लोग हैं। जिनकी तादाद वाकई काफी है।
उनके समर्थकों में पिछड़े, दलितों, सवर्णों और अल्पसंख्यकों की भारी तादाद है। उनके कुछ चाहने वालों का कहना है कि धनंजय भइया जहां जिस पार्टी से होते हम जरूर उनके साथ होते। किन्तु बीजेपी ने उन्हें जिस प्रकार से परेशान कर अपने पाले में जबरन मिलाया है तो बीजेपी की इस कूटनीति पर हम बीजेपी को करारा जवाब देंगे। किन्तु कई समर्थक जो सवर्ण हैं वो धनंजय सिंह के कहने पर ही वोट करेंगे। धनंजय सिंह के मैदान पर रहने से सपा व भाजपा दोनों को बराबर का नुकसान था। किन्तु उनके चुनावी महासमर से बाहर होने पर सपा और भाजपा दोनों प्रत्याशियों का लाभ होना तय है पर कितना-कितना? यह तो 25 मई को मतदान के बाद 4 जून को आने वाले परिणाम से ही पता चलेगा।
रिपोर्ट:राहुल गुप्ता