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Israel-Iran war : ईरान-इजरायल युद्ध से भारत के चावल एक्सपोर्ट प्रभावित, ईरान को निर्यात रुका

इजरायल-ईरान में जारी संघर्ष के बीच भारत के चावल निर्यात पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। भारत के कारोबारियों का हजारों टन चावल रास्ते में फंस गया है।

By अनूप कुमार 
Updated Date

Israel-Iran war : इजरायल-ईरान में जारी संघर्ष के बीच भारत के चावल निर्यात पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। भारत के कारोबारियों का हजारों टन चावल रास्ते में फंस गया है। ईरान को होने वाली शिपमेंट लगभग रुक गई है। खबरों के अनुसार, चावल मिल मालिकों कहना है कि फैक्ट्री में तैयार माल रखने की जगह नहीं बची। एक्सपोर्ट बंद होने से काम रोकना पड़ सकता है। हम किसानों से खरीदी भी बंद करेंगे तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Rural Economy) को बड़ा झटका लगेगा। दिल्ली में निर्यातक (Exporter) से लेकर कोटा मंडियों में खड़े किसान, सब परेशान हैं। युद्ध के चलते न केवल चावल का निर्यात अटका है, बल्कि धान के दाम में भी तेज गिरावट आई है।

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राजस्थान के कोटा मंडी (Kota Mandi) में इन दिनों तीन करोड़ बोरी से अधिक धान आ चुका है, लेकिन खरीदार नहीं हैं। मध्य प्रदेश के हाड़ौती समेत कई जिलों से आए किसान यहां मंडियों में अपनी उपज बेचने के लिए पहुंचे हैं, लेकिन उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहे। पहले जहां धान का रेट 3900 रुपये क्विंटल था, अब वही घटकर 3200 रुपये तक आ गया है।

दिल्ली के चावल कारोबारियों (Rice traders) का कहना है कि ईरान-इजरायल युद्ध ने चावल एक्सपोर्ट चेन को बुरी तरह प्रभावित किया है। साल 2024 में भारत ने करीब 52 लाख टन बासमती चावल ईरान (Basmati Rice Iran) को भेजा था, जिसकी वैल्यू लगभग 6374 करोड़ रुपये थी। लेकिन इस साल हालात बिल्कुल अलग हैं। युद्ध के चलते करीब 14,000 टन चावल रास्ते में फंसा हुआ है और पेमेंट भी रुका पड़ा है।

क्रिसिल की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल और ईरान के साथ भारत का सीधा व्यापार उसके कुल व्यापार का एक प्रतिशत से भी कम है। जबकि ईरान मुख्य रूप से भारत से बासमती चावल का आयात करता है, इजराइल के साथ व्यापार अधिक विविध है, जिसमें उर्वरक, हीरे और बिजली के उपकरण शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष (FY25) में ईरान और इजरायल मिलकर भारत के बासमती चावल निर्यात का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा हैं। हालांकि, रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक वृद्धि से स्थिति और खराब हो सकती है, मुख्य रूप से तेल की कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण, जिससे मुद्रास्फीति (inflation) बढ़ सकती है।

 

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