नए सत्र की किताबों को खरीदवाने के बाद एक बार फिर से अभिभावकों को नए सिरे किताबें खरीदनी होंगी। इसका ताजा उदाहरण एक बार फिर सामने आने वाला है क्योंकि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अभिभावकों को एक बार फिर नये सिरे से किताबों को खरीदना होगा।
भोपाल। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जहां पर बच्चों को पढ़ाना अभिभावकों को बहुत भारी पड़ रहा है। इसकी वजह है निजी स्कूलों के प्रबंधन का रसूख। वे सरकार से लेकर शासन प्रशासन तक की नहीं सुनते हैं।
प्रबंधन शासन प्रशासन की सुनते ही नहीं है
यही वजह है कि नए सत्र की किताबों को खरीदवाने के बाद एक बार फिर से अभिभावकों को नए सिरे किताबें खरीदनी होंगी। भले ही शासन प्रशासन निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम कसने की कवायद करते रहे हो लेकिन बावजूद इसके जिस तरह से इन स्कूल प्रबंधनों का रसूख है उस कारण प्रबंधन शासन प्रशासन की सुनते ही नहीं है। इसका ताजा उदाहरण एक बार फिर सामने आने वाला है क्योंकि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अभिभावकों को एक बार फिर नये सिरे से किताबों को खरीदना होगा।
कक्षाओं का पाठ्यक्रम बदलने जा रहा है
दरअसल, सीबीएसई प्राइमरी और माध्यमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम बदलने जा रहा है। उधर, निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताबों से पढ़ाई कराई जा रही है। इस मामले में सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे कि सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें ही पढ़ाई जाएं। इसके बाद 29 मार्च को को स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने गाडरवारा में भी यही बयान दिया था।
इसके बाद भी इस निर्देश का पालन पूरी तरह से नहीं हुआ है। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी का दूसरा मामला ये है कि सीबीएसई इस साल कक्षा चौथी, पांचवी, सातवीं, आठवीं का सिलेबस बदल रहा है। इसका सर्कुलर भी जारी किया गया है। मगर, स्कूलों के दबाव में पेरेंट्स को पुराने सिलेबस की किताबें खरीदने पर मजबूर होना पड़ा है। इससे यह तो तय है कि इस बार पेरेंट्स को नए सिलेबस के मुताबिक जून में दोबारा किताबें खरीदनी पड़ेंगी।