यज्ञ स्थल पर हवा का दबाव, आर्द्रता, तापमान, कार्बन व गैसों की स्थिति का पता लगाने के लिए अलग-अलग यंत्र लगाए गए हैं। छह दिन के अनुसंधान के बाद विज्ञानी बता पाएंगे की हवा के कण बारिश के लिए कितने प्रतिशत तक तैयार हुए हैं।
उज्जैन। उज्जैन में सोमयज्ञ का आयोजन हो रहा है और इसका असर बारिश के मामले में कितना होगा इसका पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों की टीम उज्जैन पहुंच गई है। बता दें कि पर्याप्त बारिश के लिए महाकाल मंदिर के आंगन में सोमयज्ञ का आयोजन हो रहा है। सोमयज्ञ पर्याप्त बारिश के लिए किया जाता है और इसका उल्लेख पुराणों व शास्त्रों में प्राप्त होता है।
यज्ञ स्थल पर हवा का दबाव, आर्द्रता, तापमान, कार्बन व गैसों की स्थिति का पता लगाने के लिए अलग-अलग यंत्र लगाए गए हैं। छह दिन के अनुसंधान के बाद विज्ञानी बता पाएंगे की हवा के कण बारिश के लिए कितने प्रतिशत तक तैयार हुए हैं। सोमयज्ञ के प्रभाव से हवा में मौजूद कण भाप से जम जाते हैं। आगे चलकर यह कण बारिश की बूंद बन जाते हैं और इसी से बारिश होती है।
सोमयज्ञ का विज्ञान है कि यह हवा के कणों को नमी युक्त कर बारिश के उपयुक्त बनाता है। बादल की दो प्रकृति होती है। एक बादल ऐसे कणों से बने होते हैं, जो पानी को शिथिल कर देते हैं। दूसरे बादल पानी को खींचने वाले कणों से बने होते हैं, जो बारिश कराते हैं। ऐसे में बादल की प्रकृति को जांचने के लिए भी एक यंत्र लगाया हुआ है। एक यंत्र बारिश के कणों की संख्या पता लगाने के लिए भी लगाया गया है। उत्तम बारिश के लिए वायुमंडल में मौजूद गैसों का भी विशेष प्रभाव है।
यज्ञ के प्रभाव से किस प्रकार की गैस में वृद्धि हुई है। इसका पता लगाने के लिए भी यंत्र लगाए गए हैं। इन यंत्रों के माध्यम से सीओ, सीओ-2 तथा मिथैन गैस की मौजूदा स्थिति पता की जाएगी। विज्ञानियों की टीम में डॉ. सचिन के फिलिप, स्टेनी बेनी आदि शामिल हैं।
सोमयज्ञ एक वैदिक अनुष्ठान है
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार सोमयज्ञ एक वैदिक अनुष्ठान है। यह उत्तम वर्षा के लिए किया जाता है। त्रेतायुग से द्वापर युग तक राजा-महाराजा अपने राज्य में उत्तम वृष्टि के लिए यह अनुष्ठान करते आए हैं। इस यज्ञ की एक विशिष्ट परंपरा है। इसमें सोमवल्ली वनस्पति से तैयार सोमरस की आहुति दी जाती है। इस रस को देसी गाय के घी में मिलाकर तैयार किया जाता है।