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कुंभ का महाविज्ञान : पंच महाभूतों का त्रिगुण संपन्न आधार

प्रयागराज में संगम का तट पुनः ऊर्जा लिए प्रतीक्षा में है। 12 वर्ष बीत चुके। पृथ्वी, पवन, पानी, आकाश, वायु और अग्नि अपनी अपनी गति से रचना और विलय की यात्रा कर रहे हैं। जो निर्मिति है उसका शोधन होना है। इसी निर्माति में समस्त चराचर जगत है। इस निर्मिति का एक लय है, आधार है, अध्यात्म है, दर्शन है जिसे सनातन मनीषा महाविज्ञान की संज्ञा देती है। यह अद्भुत है। अद्वितीय है। विश्व की किसी सभ्यता के पास इसको समझने की सामर्थ्य नहीं। सनातन भारत की मनीषा ने इसका गूढ़ जान लिया है और सृष्टि के साथ ही इसके संस्कारयुक्त आकार , प्रकार और आयोजनों को स्थापित भी कर लिया है। सृष्टि में पिंड की स्थापना का आधार प्रति बारहवें वर्ष संशोधित और परिमार्जित होता है। यही कुंभ है।

By अनूप कुमार 
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