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नवकार महामंत्र विश्व में सद्भाव और शांति की स्थापना का प्रभावी सूत्र

नवकार महामंत्र जैन धर्म का सबसे पावन एवं शक्तिशाली मंत्र है, जो विनम्रता, अहिंसा, भाईचारे और आत्मशुद्धि का संदेश देता है।

By Shital Kumar 
Updated Date

भोपाल : उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि नवकार महामंत्र जैन धर्म का सबसे पावन एवं शक्तिशाली मंत्र है, जो विनम्रता, अहिंसा, भाईचारे और आत्मशुद्धि का संदेश देता है।
यह मंत्र न केवल मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन का माध्यम है, बल्कि विश्व में सद्भाव और शांति की स्थापना का प्रभावी सूत्र भी है। उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल ने विश्व नवकार महामन्त्र दिवस पर रवीन्द्र भवन भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में मुनिश्री आचार्य प्रमाण सागर जी महाराज एवं अन्य आचार्य गण से आशीर्वाद प्राप्त किया।

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प्रधानमंत्री के संबोधन का अनुयायियों ने किया श्रवण

उप मुख्यमंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत आज आध्यात्मिक पुनरुत्थान और सांस्कृतिक जागरण की दिशा में तेज़ी से अग्रसर है। भारत की आत्मा उसकी अध्यात्म-समृद्ध परंपरा में निहित है। ऐसे आयोजनों के माध्यम से हम उस आत्मा को पुनः जाग्रत करने का कार्य कर रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘नवकार महामंत्र दिवस’ कार्यक्रम में शामिल हुए। प्रधानमंत्री श्री मोदी के संबोधन का सजीव प्रसारण सभी उपस्थित श्रद्धालुओं एवं अनुयायियों ने श्रवण एवं दर्शन किया।

जब आत्मा स्वयं को पहचानती है, तब वह महावीर बनती है

मुनिश्री आचार्य प्रमाण सागर महाराज ने वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में नवकार महामंत्र की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब विश्व आतंक, हिंसा और युद्ध के भयावह दौर से गुजर रहा है, तब नवकार महामंत्र शांति, सह-अस्तित्व और आत्मबोध की ओर मार्गदर्शन करता है। उन्होंने कहा कि महावीर का जन्म नहीं, निर्माण होता है — जब आत्मा स्वयं को पहचानती है, तब वह महावीर बनती है।

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आचार्य प्रमाण सागर महाराज ने कहा कि सच्चा वंदन केवल बाह्य अर्चना नहीं बल्कि अपने अस्तित्व के प्रति जागरूकता है। जब हम अपने अंदर के महावीर को पहचानते हैं और उसका वंदन करते हैं, तभी हम सम्पूर्ण विश्व का वंदन कर रहे होते हैं। नवकार मंत्र की आराधना सम्पूर्ण विश्व की शांति के लिए है। उन्होंने कहा कि धर्म का आश्रय, अर्थात् सत्य, तप, अनुशासन और धैर्य को जीवन में अपनाना आवश्यक है। धर्म को अपने स्वभाव और प्रवृत्ति में लाने से ही समाज और राष्ट्र का कल्याण संभव है।

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