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यूपी बोर्ड की सरकारी किताब में बाजार से नदारद, महंगी प्राइवेट किताबें खरीदने को मजबूर अभिभावक

माध्यमिक शिक्षा परिषद (UP Board) की किताबों को लेकर आम आदमी काफी परेशान दिख रहे हैं। हालांकि सरकार द्वारा कहा जाता है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत कोर्स को काफी सरल किया जाए । शिक्षा को महंगाई से मुक्त करने का प्रयास किया गया है जिससे कि हर किसी को उपलब्ध हो सके, लेकिन यहां बिल्कुल उलट है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। माध्यमिक शिक्षा परिषद (UP Board) की किताबों को लेकर आम आदमी काफी परेशान दिख रहे हैं। हालांकि सरकार द्वारा कहा जाता है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (New National Education Policy) के तहत कोर्स को काफी सरल किया जाए । शिक्षा को महंगाई से मुक्त करने का प्रयास किया गया है जिससे कि हर किसी को उपलब्ध हो सके, लेकिन यहां बिल्कुल उलट है। यदि आप बाजारों में देखेंगे तो हालत इतनी खराब है कि किताबों के दाम सुनेंगे तो आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। सरकारी स्कूल की फीस भले ही 1 साल की मात्र 1000 रुपये से कम जाती हो लेकिन इन स्कूलों की पढ़ाई के लिए जिन किताबों का प्रयोग किया जा रहा है।

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वह किताब काफी महंगी है । एक उदाहरण के तौर पर आपको बताते हैं कि सबसे बड़ी चीज इन सभी किताबों पर लिखा हुआ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ( National Education Policy 2020) व एनसीईआरटी द्वारा पुनर संयोजक पाठ्यपुस्तक वस्तु पर आधारित न की यह लिखा हुआ है कि एनसीईआरटी द्वारा अनुमोदित जानी केवल आधारित के नाम पर किताबों का खेल चल रहा है । सरकारी किताब में जिस रेट के हिसाब से दी जाती हैं । वह किताब में बाजार से गायब हैं, थक हार कर अभिभावक महंगी किताबें खरीद रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर यदि नवीं की विज्ञान की किताब की बात करें तो 275 रुपये उसकी कीमत है।  इसी तरह से हिंदी की कीमत 172 रुपये है । सामाजिक विज्ञान की कीमत 275 रुपये है यानी कि प्राइवेट किताब के तौर पर कोई भी किताब 100 रुपये से कम कीमत की नहीं है, जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत एनसीईआरटी की किताबें मात्र सबसे नई किताब 100 रुपये से ऊपर नहीं देती जा सकती, लेकिन बाजार में यह किताबें नहीं है । अभिवावक इन किताबों को खरीदने पर मजबूर हैं और दुकानदार और प्राइवेट पब्लिकेशन चांदी काट रहे हैं।

रिपोर्ट रवि यादव

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