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Pappu Yadav Jeevan Parichay: बिहार में जिसके नाम से कांपते थे लोग… आज वही नेता बना ‘मसीहा’: पढ़ें- राजेश रंजन उर्फ ‘पप्पू यादव’ की कहानी

Pappu Yadav Jivan Parichay: बिहार में एक समय ऐसा था, जब आपराधिक घटनाएं आम बात हुआ करती थी। राज्य में बाहुबलियों का बोल-बाला था और इन्हीं के दम पर राजनीतिक पार्टियां चुनाव में अपना दबदबा बनाती थीं, लेकिन वक्त बदला और हालत बदले। वहीं, बाहुबलियों का दबदबा भी खत्म हुआ। उनमें से कुछ ने अपनी छवि भी बदली और आज जनता के मसीहा बनने की दौड़ में शामिल हैं। एक ऐसा ही नाम है, जो बिहार ही नहीं पूरे देश में अपनी पहचान बना चुका है। हम बात कर रहे हैं- राजेश रंजन उर्फ 'पप्पू यादव' की। हम इस लेख के माध्यम से बताएँगे कि जिस पप्पू यादव का नाम सुनकर कभी लोग कांपते थे वो आज कैसे लोगों के मसीहा बन चुके हैं।

By Abhimanyu 
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Pappu Yadav Jivan Parichay: बिहार में एक समय ऐसा था, जब आपराधिक घटनाएं आम बात हुआ करती थी। राज्य में बाहुबलियों का बोल-बाला था और इन्हीं के दम पर राजनीतिक पार्टियां चुनाव में अपना दबदबा बनाती थीं, लेकिन वक्त बदला और हालत बदले। वहीं, बाहुबलियों का दबदबा भी खत्म हुआ। उनमें से कुछ ने अपनी छवि भी बदली और आज जनता के मसीहा बनने की दौड़ में शामिल हैं। एक ऐसा ही नाम है, जो बिहार ही नहीं पूरे देश में अपनी पहचान बना चुका है। हम बात कर रहे हैं- राजेश रंजन उर्फ ‘पप्पू यादव’ की। हम इस लेख के माध्यम से बताएँगे कि जिस पप्पू यादव का नाम सुनकर कभी लोग कांपते थे वो आज कैसे लोगों के मसीहा बन चुके हैं।

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बिहार के मधेपुरा जिले के खुर्दा करवेली गांव (कुमारखंड ब्लॉक) में एक जमींदार परिवार में 24 दिसंबर 1967 को जन्में पप्पू यादव ने सुपौल के आनंद पल्ली में आनंद मार्ग स्कूल में पढ़ाई की। राजेश रंजन उनका आधिकारिक नाम है लेकिन उपनाम पप्पू उनके दादा ने बचपन में दिया था। उन्होंने बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा से राजनीति विज्ञान में स्नातक और इग्नू से आपदा प्रबंधन और मानवाधिकार में डिप्लोमा किया है। उनकी शादी रंजीत रंजन से हुई है, जो मधेपुरा से सांसद भी रही हैं, लेकिन 2019 के आम चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू) से हार गईं। उनके बेटे सार्थक रंजन दिल्ली के लिए टी-20 क्रिकेट खिलाड़ी हैं। पप्पू यदाव आज जनता के मुद्दों को सरकार के सामने उठाते हैं, लेकिन उनके आपराधिक इतिहास ने एक बाहुबली नेताओं की श्रेणी में रखा।

राजनीतिक करियर की शुरुआत और जेल यात्रा

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साल 1990 में निर्दलीय विधायक के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले पप्पू यादव पर हत्या, किडनैपिंग, मारपीट, बूथ कैपचरिंग, आर्म्स एक्ट जैसे कई मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हुए हैं। माना जाता है कि पप्पू यादव के आपराधिक दुनिया में प्रवेश उनके मामा अर्जुन सिंह ने करायी जो अपने जिले में एक प्रभावशाली व्यक्ति थे और क्षेत्र में एक समानांतर सरकार चलाते थे। पप्पू यादव ने अर्जुन सिंह के कामों में सफलता प्राप्त की और युवा संगठन युवा शक्ति की स्थापना की , जो कथित तौर पर उसके नेतृत्व में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त था। लेकिन, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अजीत सरकार की हत्या के मामले में पप्पू यादव को जेल यात्रा करनी पड़ी, उन्हें 17 साल जेल में रहना पड़ा था।

साल 1998 में माकपा नेता अजीत सरकार, उनके एक साथी असफुल्ला खान और ड्राइवर पर अंधाधुंध फायरिंग करके उनकी हत्या कर दी गयी। इस मामले में पूर्णिया से तत्कालीन सांसद राजेश रंजन उर्फ ‘पप्पू यादव’ का नाम आया था। इस घटना में नाम आने के बाद उनकी राजनीतिक करियर को बड़ा झटका लगा, क्योंकि उन्हें जेल जाना पड़ा। इस मामले की सुनवाई सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में चलती रही। इस दौरान पप्पू यादव लंबे समय तक जेल में रहे। साल 2008 में उन पर हत्या का आरोप साबित हो गया। सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव को उम्र कैद की सजा सुनाई। सजा के ऐलान के साथ ही पप्पू यादव की सांसदी भी चली गयी थी। उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया और कई सालों तक वह जेल में रहे। राजेश रंजन उर्फ ‘पप्पू यादव’ ने उम्रकैद की सजा के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में अपील की और साल 2013 में हाई कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। हालांकि, जेल यात्रा ने पप्पू यादव को काफी बदल दिया। बाहर आने के बाद उन्होंने जनता के बीच अपनी छवि को साफ करने के लिए काम किया।

छह बार सांसद रहे हैं पप्पू यादव

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पप्पू यादव राजनीतिक यात्रा 1990 के बिहार विधान सभा चुनाव में सिंहेश्वर निर्वाचन क्षेत्र में उनकी स्वतंत्र जीत के साथ शुरू हुई। उन्होंने जल्द ही आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव सहित प्रमुख राजनेताओं का ध्यान आकर्षित किया। 1990 में विधायक बनने के बाद छह बार लोकसभा के सदस्य रहे। वह पहली बार 1991 में पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद 1996 और 1999 में भी पप्पू यादव पूर्णिया से ही निर्दलीय सांसद चुने गए। 2004 में लालू ने पप्पू यादव को मधेपुरा से आरजेडी का टिकट दिया और उन्होंने चौथी बार जीत दर्ज की। साल 2008 में उन पर हत्या का आरोप साबित हो गया तो उनकी सदस्यता रद्द हो गई। साल 2013 में पटना हाई कोर्ट से राहत मिलने के बाद पप्पू यादव फिर पांचवी बार 2014 में आरजेडी के टिकट से मधेपुरा से चुनाव लड़े और पांचवीं बार जीते भी। साल 2015 में तेजस्वी यादव की बयानबाजी के बाद वह खफा हो गए और आरजेडी से दूरी बनाकर अपनी ‘जन अधिकार पार्टी’ बनाई। साल 2019 में उन्होंने अपनी पार्टी से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। फिर 2024 में उन्होंने पूर्णिया से निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।

कोरोना काल और बाढ़ में की लोगों की मदद

17 साल का लंबा समय जेल में बिताने के बाद पप्पू यादव ने बाहुबली नेता से एक मसीहा बनने का सफर तय किया है। वह कोई घटना होती है तो आवाज उठाते हैं और पीड़ितों से जाकर मिलते हैं। 2019 में जब पटना में तेज बारिश से आई बाढ़ हो या कोरोना काल में लोगों की मदद करना हो, पप्पू यादव ने लोगों की मदद की। राजधानी पटना जलमग्न हुआ तो पप्पू यादव ने नाव के सहारे लोगों को खाना-पानी दिया था। इसके अलावा, कोरोना काल समय उन्होंने लोगों को पैसे और खाना बांटा।

पप्पू यादव ने एक पॉडकास्ट में कहा था कि उन्होंने 34 साल के सार्वजनिक जीवन में 280 करोड़ से भी ज्यादा पैसा बांट लोगों की मदद के लिए बांट दिया है। उन्होंने कहा- “कोरोना में पैसा नहीं था तो अपने ऑफिस के पीछे 90 कट्ठा जमीन 5 करोड़ में बेच दिए। बाढ़ में पैसा नहीं था तो पत्नी से चुराकर पूर्णिया में पांच बीघा जमीन बेच दिए। 3 करोड़ दे दिए बाढ़ में। बाढ़ में लोगों को खाना खिलाए। पटना में हर रोज एक करोड़ का खाना बनाते थे कोरोना में, दूध देते थे।”

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