धरती आबा बिरसा मुंडा के इस भव्य स्मरण के बीच आज 6 हजार करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण हुआ है। इनमें मेरे आदिवासी भाई-बहनों के लिए करीब 1.5 लाख पक्के घरों के स्वीकृति पत्र हैं।
जमुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार जमुई, बिहार में जनजातीय गौरव दिवस समारोह को संबोधित किये। इस दौरान उन्होंने कहा, पिछले वर्ष आज के दिन मैं धरती आबा बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में था। आज उस धरती पर आया हूं, जिसने शहीद तिलका मांझी का शौर्य देखा है। लेकिन इस बार का ये आयोजन और भी खास है। आज से पूरे देश में भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जन्मजयंती का उत्सव शुरू हो रहा है। ये कार्यक्रम अगले एक साल तक चलेंगे। आज देश के सैंकड़ों जिलों के करीब 1 करोड़ लोग टेक्नोलॉजी के माध्यम से हमारे इस कार्यक्रम से जुड़े हैं।
इसके साथ ही कहा, धरती आबा बिरसा मुंडा के इस भव्य स्मरण के बीच आज 6 हजार करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण हुआ है। इनमें मेरे आदिवासी भाई-बहनों के लिए करीब 1.5 लाख पक्के घरों के स्वीकृति पत्र हैं। आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने वाले स्कूल हैं, हॉस्टल हैं। आदिवासी महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, आदिवासी क्षेत्रों को जोड़ने वाली सैंकड़ों किमी की सड़कें शामिल हैं।
PM ने कहा, आजादी के बाद के दशकों में आदिवासी इतिहास के अनमोल योगदान को मिटाने की कोशिशें की गईं। इसके पीछे भी स्वार्थ भरी राजनीति थी। राजनीति ये थी कि भारत की आजादी के लिए सिर्फ एक ही दल को श्रेय दिया जाए। लेकिन अगर एक ही दल, एक ही परिवार ने आजादी दिलाई है, तो भगवान बिरसा मुंडा का उलगुलान आंदोलन क्यों हुआ था, संथाल क्रांति क्या थी, कोल क्रांति क्या थी?
संस्कृति हो या फिर सामाजिक न्याय, आज की NDA सरकार का मानक कुछ अलग ही है। मैं इसे भाजपा ही नहीं बल्कि NDA का सौभाग्य मानता हूं कि हमें द्रौपदी मुर्मू जी को देश का राष्ट्रपति बनाने का अवसर मिला। वो देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं।
अति पिछड़ी आदिवासी जनजातियों की पहले की सरकारों ने कोई परवाह ही नहीं की थी। इनके जीवन से मुश्किलें कम करने के लिए ही 24 हजार करोड़ रुपये की पीएम जनमन योजना शुरू की गई। इस योजना से देश की सबसे पिछड़ी जनजातियों की बस्तियों के विकास सुनिश्चित हो रहा है। आज इस योजना का एक साल पूरा हो रहा है। इस दौरान हमने अति पिछड़ी जनजातियों को हजारों पक्के घर दिए हैं। पिछड़ी जनजातियों की बस्तियों को जोड़ने के लिए सैकड़ों किमी की सड़कों पर काम शुरू हो चुका है।