जाति जनगणना-जिसे मोदी सरकार ने बरसों तक दबाने की कोशिश की-आखिरकार विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और असंख्य सामाजिक कार्यकर्ताओं, संगठनों की अडिग लड़ाई के आगे झुक गई। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई में एक अहम पड़ाव है। मोदी सरकार, जो कल तक इसके नाम से भी कतराती थी और उपहास उड़ाने, टालमटोल में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी, आज जनता के भारी दबाव और विपक्ष के संघर्ष के आगे झुककर जाति जनगणना कराने पर राजी हुई है।
नई दिल्ली। जाति जनगणना को लेकर देशभर में सियासत शुरू हो गयी है। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद श्रेय लेने की भी होड़ मची हुई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की है। उन्होंने कहा कि, जाति जनगणना-जिसे मोदी सरकार ने बरसों तक दबाने की कोशिश की-आखिरकार विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और असंख्य सामाजिक कार्यकर्ताओं, संगठनों की अडिग लड़ाई के आगे झुक गई। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई में एक अहम पड़ाव है। मोदी सरकार, जो कल तक इसके नाम से भी कतराती थी और उपहास उड़ाने, टालमटोल में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी, आज जनता के भारी दबाव और विपक्ष के संघर्ष के आगे झुककर जाति जनगणना कराने पर राजी हुई है।
उन्होंने आगे कहा, असल में यही भाजपा सरकार का पैटर्न रहा है-पहले हर अच्छी योजना या नीति का विरोध करो, उसे बदनाम करो… और जब जनता का दबाव और हकीकत का सामना करना पड़े तो उसी नीति को अपना लो। याद कीजिए, मनरेगा को लेकर प्रधानमंत्री ने संसद में क्या कहा था- “विफलता का स्मारक”! जिस योजना को दुनिया ने ग्रामीण रोजगार और गरीबी उन्मूलन का एक मॉडल कहा, उसी मनरेगा का मजाक उड़ाया गया, कहा गया लोग गड्ढे खोद रहे हैं। लेकिन जब कोरोना जैसी आपदा आई तो यही मनरेगा देश के गरीबों की रीढ़ बन गया। तब क्या हुआ? सरकार ने इसका बजट भी बढ़ाया और खुद इसका क्रेडिट लेने की कोशिश भी की।
ऐसा ही ‘आधार’ के साथ हुआ। जब भाजपा विपक्ष में थी तब यही कहती थी कि “यह निजता के लिए खतरा है और सिर्फ एक पॉलिटिकल स्टंट है” लेकिन सत्ता में आते ही उसी आधार को पूरे वेलफेयर सिस्टम की नींव बना दिया। जीएसटी की कहानी भी अलग नहीं है। कांग्रेस ने जब जीएसटी लाने की पहल की तो भाजपा ने इसका जोरदार विरोध किया, कहा कि यह राज्यों के हितों के खिलाफ है। लेकिन सत्ता में आते ही बिना बड़े बदलाव के इसे लागू कर दिया और फिर इसे “गेम चेंजर” बताकर खुद की वाहवाही करने लगे।
जयराम रमेश ने आगे कहा, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) की व्यवस्था कांग्रेस ने बनाई थी ताकि सब्सिडी सीधे जनता के खाते में पहुंचे। उस समय भाजपा ने इसे नकारा, कहा-“यह चलेगा नहीं।” लेकिन सत्ता में आते ही पूरे देश में इसी DBT को लागू किया और “डिजिटल इंडिया” का ढोल पीटने लगे। महिलाओं को नकद सहायता देने की नीति कांग्रेस ने शुरू की थी। भाजपा ने तब कहा था-“ये तो बस घोषणाओं की राजनीति है।” आज वही सरकार महिलाओं के लिए अलग-अलग नकद ट्रांसफर योजनाएं चला रही है।
इंटर्नशिप/अप्रेंटिसशिप स्कीम की बात करें तो कांग्रेस ने 2024, लोकसभा चुनाव के अपने ‘न्यायपत्र’ में युवा न्याय के तहत अप्रेंटिसशिप स्कीम का वादा किया था। चुनावों के दौरान भाजपा ने उस पर भी तंज कसा था। लेकिन बाद में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में इसकी घोषणा की। अफसोस, आज तक वह भी सिर्फ घोषणा बनकर ही रह गई है। यह लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती… असल में ये तो बस कुछ उदाहरण भर हैं। सच्चाई यह है कि इस सरकार के पास न कोई अपना विज़न है और न ही समस्याओं के समाधान की कोई दिशा। यह सरकार सिर्फ जनता का ध्यान भटकाने, असली मुद्दों से भागने और अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने में ही सिर्फ माहिर है। इसके अलावा इनके पास न कोई नीति है, न नीयत -सिर्फ झूठ, प्रचार और नफरत की राजनीति है।