1. हिन्दी समाचार
  2. जॉब्स
  3. UP Jobs Scam : यूपी विधानसभा और विधान परिषद में 186 प्रशासनिक पदों पर हर 5 में से 1 नियुक्ति VVIP या नेता के रिश्तेदार की, HC ने बताया ‘चौंकाने वाला घोटाला’

UP Jobs Scam : यूपी विधानसभा और विधान परिषद में 186 प्रशासनिक पदों पर हर 5 में से 1 नियुक्ति VVIP या नेता के रिश्तेदार की, HC ने बताया ‘चौंकाने वाला घोटाला’

UP Jobs Scam: केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार देश में प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार देने वादाकर सत्ता पाई थी, लेकिन बीते 10 वर्षों बाद वह वादा जुमला ही साबित हुआ। इसी बीच यूपी में योगी सरकार (Yogi Government) के तरफ से उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद (UP Legislative Assembly and Legislative Council) में 186 प्रशासनिक पदों पर की गई नियुक्तियों ने एक बड़ा विवाद सामने आया है।

By टीम पर्दाफाश 
Updated Date

UP Jobs Scam: केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार देश में प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार देने वादाकर सत्ता पाई थी, लेकिन बीते 10 वर्षों बाद वह वादा जुमला ही साबित हुआ। इसी बीच यूपी में योगी सरकार (Yogi Government) के तरफ से उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद (UP Legislative Assembly and Legislative Council) में 186 प्रशासनिक पदों पर की गई नियुक्तियों ने एक बड़ा विवाद सामने आया है। इसको लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने यहां तक कह दिया कि ये एक चौंकाने वाला घोटाला है। इसकी सीबीआई (CBI) जांच होनी चाहिए। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए इसको लेकर सरकार में ईमानदारी की कमी और भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप लगाए हैं।

पढ़ें :- IndiGo Crisis : आपदा में अवसर, हवाई किराए ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, पटना-मुंबई का टिकट 60 हजार के पार

बता दें कि यूपी विधानसभा और विधान परिषद (UP Legislative Assembly and Legislative Council) में प्रशासनिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों के लिए साल 2020-21 में दो राउंड की परीक्षा हुई थी। इस परीक्षा के लिए 2.5 लाख लोगों ने आवेदन किया था। हैरानी की बात यह है कि हर 5 में से 1 नियुक्ति उन कैंडिडेट्स को मिली जो कि वीवीआईपी अधिकारी या नेता के रिश्तेदार हैं। बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) की एक इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट बताती है कि ये वही अधिकारी हैं, जिनकी निगरानी में परीक्षा आयोजित की गई थी।

VVIP के रिश्तेदारों को मिली नियुक्तियां

परीक्षा में सफल होने वाले कैंडिडेट्स की बात करें तो तत्कालीन विधानसभा के अध्यक्ष के पीआरओ और उनके भाई को मौका मिला। एक कैंडिडेट भतीजा, एक विधानसभा परिषद सचिवालय प्रभारी का बेटा, विधानसभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदार, एक संसदीय कार्य विभाग का बेटा और बेटी, एक उप लोकायुक्त के बेटे, दो मुख्यमंत्रियों के पूर्व विशेष कार्यअधिकारी का बेटे को नियुक्ति दी गई थी।

इतना ही नहीं, इन नियुक्तियों में कम से कम पांच ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो दो निजी फर्मों, टीआर डाटा प्रोसेसिंग और राभव के मालिकों के रिश्तेदार हैं, जिन्होंने कोरोना की पहली लहर के दौरान एग्जाम दिया था। इन सभी को तीन साल पहले यूपी विधानमंडलों को प्रशासित करने वाले दो सचिवालयों में नियुक्त किया गया था।

पढ़ें :- भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समेत 112 के खिलाफ FIR दर्ज, पहाड़ी पर दीप जलाने के लिए जबरन कर रहे थे चढ़ाई

असफल कैंडिडेट्स ने दायर की थी याचिका

18 सितंबर 2023 को एक आदेश में, तीन असफल कैंडिडेट्स, सुशील कुमार, अजय त्रिपाठी और अमरीश कुमार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसकी सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इसे चौंकाने वाला और भर्ती से कम नहीं कहा। जहां कुछ भर्तियां गैर कानूनी तरीके से हुईं जिसके चलते उनकी विश्वसनीयता ही कम हो गई।

विधान परिषद की अपील पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सीबीआई (CBI) जांच पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई 6 जनवरी, 2025 को निर्धारित की गई है। ये नियुक्तियां कम से कम 15 समीक्षा अधिकारियों (RO), 27 सहायक आरओ और जूनियर पदों से संबंधित हैं।

एक्सप्रेस ने संबंधित लोगों से की बात

इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) ने पूरे मामले के रिकॉर्ड की जांच की।उन लोगों से बात की जो दोनों सचिवालयों के लिए चुने गए 38 उम्मीदवारों का पता लगाने में शामिल थे, जिनके अधिकारियों और राजनेताओं से संबंध थे।

पढ़ें :- UKPSC Main Exam Postponed : उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने पीसीएस मुख्य परीक्षा की स्थगित, हाईकोर्ट के आदेश के बाद लिया फैसला

एचएन दीक्षित के पीआरओ जो भर्ती के समय यूपी विधानसभा अध्यक्ष थे। वे विशेष कार्यकारी अधिकारी (प्रकाशन), विधान परिषद। उन्होंने कहा कि वह मेरे साथ थे और बाद में परिषद (सचिवालय) में नियुक्त हुए। इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी। पीआरओ के भाई का भी विधानसभा में समीक्षा अधिकारी (RO) के रूप में चयन हुआ। दीक्षित का कहना है कि वे इस बारे में कुछ नहीं जानते हैं।

अपने कार्यकाल में हुई भर्तियों के बारे में पूछे जाने पर, पूर्व भाजपा विधायक और 2017-2022 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे दीक्षित ने कहा कि यह हमारी ओर से स्वीकृत एजेंसी द्वारा किया गया था, लेकिन मेरी भूमिका सीमित थी और मामला अब अदालत में है। मेरे किसी भी करीबी रिश्तेदार को किसी भी पद पर नियुक्त नहीं किया गया है।

अधिकारियों ने खुद की भूमिका से किया इनकार

इसमें दूसरा नाम उत्तर प्रदेश के संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव जय प्रकाश सिंह के बेटे और बेटी का है। पद: आरओ, विधानसभा। जय प्रकाश सिंह ने कहा कि उनका चयन उनकी योग्यता के आधार पर हुआ है। मैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहता। प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे के चार रिश्तेदार जिन्हें दो रिश्तेदार चचेरे भाई के बेटे को मिले और दो अन्य चचेरे भाई और मामा के बेटे को मिले। इसको लेकर उनका कहना है कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, मेरे लिए इस पर चर्चा करना उचित नहीं होगा।

विधानपरिषद के प्रमुख सचिव महेंद्र सिंह के बेटे की आर ओ विधानसभा के तौर पर नियुक्ति को लेकर महेंद्र सिंह ने कहा कि दुबे जी ने आपसे बात की है। मैं कुछ नहीं कहना चाहता। उपलोकायुक्त और पूर्व प्रमुख सचिव दिनेश कुमार सिंह के बेटे की आरओ के पद पर नियुक्त को लेकर दिनेश सिंह ने कहा किउनकी नियुक्ति (विधानसभा सचिवालय में) में मेरी कोई भूमिका नहीं है। वह अब न्यायिक अधिकारी हैं।

 नियुक्ति को लेकर हाई कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

पढ़ें :- Vladimir Putin India Visit : हैदराबाद हाउस में Putin - Modi की मुलाकात , PM बोले- भारत तटस्थ नहीं, शांति का पक्षधर

यह भर्ती 2021 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई याचिकाओं का विषय रही है। 18 सितंबर 2023 को दो याचिकाओं को जोड़ते हुए, मामले को जनहित याचिका में बदलने और सीबीआई जांच का आदेश देते हुए, दो न्यायाधीशों की पीठ ने बाहरी एजेंसियों को शामिल करने को लेकर आलोचना की। अदालत के रिकॉर्ड से पता चलता है कि दोनों निजी फर्मों के मालिकों को पहले एक अन्य भर्ती में कथित हेराफेरी के आरोप में जेल भेजा गया था, और मामला अभी भी लंबित होने के कारण वे जमानत पर हैं।

3 अक्टूबर, 2023 को उच्च न्यायालय ने विधान परिषद द्वारा दायर समीक्षा आवेदन को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि इस न्यायालय ने मूल अभिलेखों का अवलोकन करके स्वयं ही लगाए गए आरोपों के सार पर अपनी प्रथम दृष्टया संतुष्टि दर्ज कर ली है, और अब आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। खासकर तब जब न्यायालय ने तथ्यों के पूरे दायरे से पाया है कि यह किसी भर्ती घोटाले से कम नहीं है, जिसमें सैकड़ों भर्तियां अवैध और गैरकानूनी तरीके से एक बाहरी एजेंसी द्वारा की गई हैं, जिसकी विश्वसनीयता कम हो गई है।

इस बीच सीबीआई ने प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की और भर्ती से संबंधित कुछ रिकॉर्ड अपने कब्जे में ले लिए, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट 13 अक्टूबर, 2023 को रोक जारी नहीं कर देता। उच्च न्यायालय के अभिलेखों में भी भर्ती की समयावधि का विवरण दिया गया है।

निजी फर्म के पास गया ठेका

इन परीक्षाओं के लिए आवेदन करने वाले कुल उम्मीदवारों की संख्या के बारे में कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। कई अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह संख्या लगभग 2.5 लाख थी। कोर्ट के रिकॉर्ड से पता चलता है कि विधानसभा में भर्ती का ठेका ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज (BECIL) को दिया गया था, जो केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।

BECIL ने TSR डेटा प्रोसेसिंग को काम पर रखा था। BECIL के वरिष्ठ प्रबंधक अविनाश खन्ना ने कहा कि हमने विधानसभा सचिवालय के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए और हमने इसे आगे सब-लेट कर दिया। हम इस समय इस बारे में और कुछ नहीं कह सकते क्योंकि मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

सूत्रों ने पुष्टि की कि परिषद ने राभव को भर्ती प्रक्रिया संचालित करने का कार्य सौंपा था। हालांकि सचिवालय ने परीक्षा प्रक्रिया की गोपनीयता का हवाला देते हुए अदालत में फर्म का नाम उजागर नहीं किया। विधानसभा सचिवालय के लिए चयनित उम्मीदवारों की कथित सूची हाईकोर्ट में एक अन्य याचिकाकर्ता विपिन कुमार सिंह ने पेश की थी। उन्होंने अनिर्दिष्ट माध्यमों से प्राप्त ओएमआर उत्तर पुस्तिकाओं और टाइपिंग शीट का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि योग्यता अंकों में हेराफेरी की गई थी।

पढ़ें :- Toxic Cough Syrup Scandal : UPSTF की जांच में बड़ा खुलासा, फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र से लिया ड्रग लाइसेंस, अब ड्रग इंस्पेक्टरों पर गिरेगी गाज

Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...