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विजय दशमी उत्सव शौर्य, पराक्रम, पौरुष के जागरण का पर्व : डॉ. कृष्ण गोपाल

आश्विन शुक्ल दशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लखनऊ पूरब भाग द्वारा विजयदशमी उत्सव के अवसर पर सम्पूर्ण जिले में दस स्थानों पर आयोजित किया गया। विजय दशमी का पर्व शौर्य, पराक्रम, पौरुष के जागरण का पर्व है। साथ ही यह पर्व संघ के लिए और महत्व का हो जाता है, क्योंकि आज ही के दिन 1925 को आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की।

By संतोष सिंह 
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लखनऊ। आश्विन शुक्ल दशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लखनऊ पूरब भाग द्वारा विजयदशमी उत्सव के अवसर पर सम्पूर्ण जिले में दस स्थानों पर आयोजित किया गया। विजय दशमी का पर्व शौर्य, पराक्रम, पौरुष के जागरण का पर्व है। साथ ही यह पर्व संघ के लिए और महत्व का हो जाता है, क्योंकि आज ही के दिन 1925 को आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की। गोमती नगर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने देशवासियों को विभाजनकारी और राष्ट्रविरोधी ताकतों की गतिविधियों से सावधान रहने की चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग समाज में शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों और किसानों के भेष में छुपे हुए हैं और उन राष्ट्र-विरोधी तत्वों को मदद करते हैं।

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उन्होंने एकजुट, समरूप हिंदू समाज की अवधारणा पर जोर देने के लिए स्वामी विवेकानंद और सिख गुरु गोविंद सिंह का आह्वान किया । कहा कि संघ अपनी दैनिक शाखाओं में इस संस्कार को विकसित करता है। उन्होंने कहा कि आरएसएस के कारण दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। संघ की स्थापना हिंदू समाज की कायरता और कमजोरी को दूर करने और जाति, पंथ, भाषा और प्रांतों और संप्रदायों के मतभेदों को भुलाकर इसे जीवंत, शक्तिशाली और मजबूत बनाने के लिए की गई थी। उक्त कार्यक्रम में लखनऊ विभाग के विभाग कार्यवाह अमितेश उपस्थित रहे।

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समाज में महिषासुर रुपी आसुरी शक्तियों का वध करने के लिए सभी शक्तियों को संगठित होना होगा : रामलाल 

वहीं पूरब भाग के प्राथमिक शिक्षा वर्ग में अंबेडकर और संत रविदास नगर के कार्यक्रम में अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख रामलाल ने विजयादशमी असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। संघ का भी कार्य यही है। अपने सभी पर्वों के पीछे धार्मिकता के साथ-साथ सामाजिकता एवं वैज्ञानिकता छिपी है। शरीर को शुद्ध करना वैज्ञानिकता है। यह शरीर विज्ञान है,जिसे हमारे ऋषियों ने समाज में रखा। सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित किया था,इन्ही शक्तियों के द्वारा माँ दुर्गा ने महिषासुर ने पराजित किया था। समाज में महिषासुर रुपी आसुरी शक्तियों का वध करने के लिए सभी शक्तियों को संगठित होना होगा।

दूसरों को सुख देना ही धर्म है। धर्म के लिए ही भारत में युद्ध हुए। “सर्वे भवंतु सुखिनः” प्रार्थना में सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना की गयी है। भारत में धर्म यानि कर्त्तव्य तथा संस्कार,अपने यहाँ जो भी युद्ध हुए धर्म की रक्षा के लिए हिन्दुत्व यानि विश्व कल्याण,प्रकृति का संरक्षण। हमारी परंपराओं के पीछे वैज्ञानिकता है। बाकी के सभी मजहब पंथों में विश्व कल्याण या दूसरे के कल्याण की बात नहीं होती केवल हिंदुत्व में दूसरों के कल्याण की बात है ,सभी के कल्याण की बात की जाती है।

भगवान राम ने पूरे समाज का संगठन किया था वह अकेले रावण का संहार कर सकते थे परंतु सामान्य व आदिवासी लोगों को संगठित कर वह समाज को यही संदेश देना चाहते थे सबको संगठित करना तब रावण को समाप्त करना,अकेले नहीं।

डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना की तो उनका मत था कुछ लोग तो देश को आजाद कर सकते हैं,परंतु जन सामान्य में राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा करना यही उनका उद्देश्य था। पूरे भारत में प्रांतवाद, जातिवाद,भाषावाद आदि परेशानियां है परंतु संघ ने एक मॉडल खड़ा किया कि समाज कैसा होना चाहिए, हमारे मन में जातिवाद ऊंच- नीच नहीं आता है। आचरण से सिद्धांत समझ आता है ,सिद्धांत से सिद्धांत समझ में नहीं आता। खेलों और संस्कारो द्वारा शाखा में यही सिखाया जाता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे स्वामी भास्करानंद सरस्वती जी कहा कि हमारा देश परम वैभव को प्राप्त करे। यह पावन पर्व हमें शक्ति को संकलित करके, सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता है। हमारा सनातन धर्म उदार है। उसी परम्परा को डॉ। साहब और पूज्य श्रीगुरुजी ने निभाया। हमारा ध्येय सकारात्मक होना चाहिए। हम किसी को सतायेंगे नहीं,परन्तु कमजोर भी नहीं होंगे।

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हमारी प्रभु से यही प्रार्थना रहती है कि जिस देश-धर्म में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जायें। इस कार्यक्रम में विभाग प्रचारक अनिल, भाग संघचालक प्रभात अधौलिया  व भाग कार्यवाह ज्योति प्रकाश उपस्थित रहे। सरदार पटेल नगर के कार्यक्रम में अवध प्रान्त के प्रान्त प्रचारक कौशल किशोर ने अपने संबोधन में कहा कि ६ उत्सव में से एक प्रमुख उत्सव विजयदशमी में हम सब उपस्थित हुए हैं। माँ दुर्गा ने राक्षसों का वध किया था। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।

ईसा से 700 वर्ष पूर्व तक्षशिला व नालन्दा जैसे 64 से ज्यादा विश्व विद्यालय हुआ करते थे। जिसमे ज्ञान विज्ञान आदि की शिक्षा दी जाती थी। उन्होने सभी स्वयंसेवकों से संघ द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों के कार्य को और अधिक मजबूत करने तथा शाखाओं का विस्तार व समाज में एकत्व स्थापित किए जाने का आह्वाहन किया। उक्त कार्यक्रम में सह भाग कार्यवाह रामलखन जी उपास्थित रहे। लखनऊ पूरब भाग द्वारा आयोजित हुए सभी कार्यक्रमों में लगभग 2000 से अधिक स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में सम्मिलित हुए।

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