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मेधा पाटकर की सजा पर दिल्ली की अदालत ने लगाई रोक, LG सक्सेना को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

साकेत कोर्ट (Saket Court) ने सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना (Delhi Lieutenant Governor VK Saxena) के तरफ से दायर आपराधिक मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर (Medha Patkar) को दी गई सजा को निलंबित कर दिया है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

दक्षिणी दिल्ली। साकेत कोर्ट (Saket Court) ने सोमवार को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना (Delhi Lieutenant Governor VK Saxena) के तरफ से दायर आपराधिक मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर (Medha Patkar) को दी गई सजा को निलंबित कर दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह की कोर्ट ने पाटकर को 25 हजार रुपये के जमानत बॉन्ड और इतनी ही राशि के एक जमानती पर जमानत भी दी थी।

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कोर्ट ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना (Lieutenant Governor VK Saxena)को नोटिस जारी कर मेधा पाटकर (Medha Patkar)  द्वारा मानहानि मामले में दायर अपील पर जवाब मांगा है। उपराज्यपाल की ओर से अधिवक्ता गजिंदर कुमार ने नोटिस स्वीकार किया है। इस मामले में अगली सुनवाई चार सितंबर को होगी।

ट्रायल कोर्ट ने पाटकर को पांच महीने की सुनाई थी सजा

ट्रायल कोर्ट ने एक जुलाई को वीके सक्सेना (VK Saxena) के तरफ से दायर मानहानि के 23 साल पुराने मामले में मेधा पाटकर (Medha Patkar)  को पांच महीने की जेल की सजा सुनाई थी। साथ ही उन्हें उपराज्यपाल की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए उन्हें 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। हालांकि कोर्ट ने पाटकर को अपील दायर करने की अनुमति देने के लिए सजा को एक अगस्त तक के लिए निलंबित कर दिया गया था। मेधा पाटकर (Medha Patkar)  ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।

ये था मामला

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25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर (Medha Patkar) ने एक बयान में वीके सक्सेना (VK Saxena) पर हवाला के जरिये लेनदेन का आरोप लगाया था। साथ ही उन्हें कायर कहा था। मेधा पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे। तब वीके सक्सेना (VK Saxena) अहमदाबाद स्थित ‘काउंसिल फार सिविल लिबर्टीज’ (Council for Civil Liberties) नामक एनजीओ के प्रमुख थे। मेधा पाटकर (Medha Patkar)  के खिलाफ वीके सक्सेना (VK Saxena) ने आपराधिक मानहानि का केस अहमदाबाद की कोर्ट में 2001 में दायर किया था।

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